अन्तर्राष्ट्रीय
यमन : विद्रोही गुटों के बीच संघर्ष में 40 मरे
सना, 2 दिसम्बर (आईएएनएस)| हौती विद्रोहियों और यमन के पूर्व राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह के वफादार बलों के बीच शनिवार को हुई लड़ाई में नागरिकों समेत कम से कम 40 लोग मारे गए और दर्जनों घायल हो गए। समाचार एजेंसी एफे के अनुसार, दोनों पक्षों के सूत्रों और प्रत्यक्षदर्शियों ने कहा कि लड़ाई देर रात उस समय शुरू हुई, जब हौती विद्रोहियों ने रिपब्लिकन गार्ड के कई कमांडरों के घरों में घुसने का प्रयास किया। रिपब्लिकन गार्ड सालेह और पूर्व राष्ट्रपति द्वारा संचालित जनरल पीपुल्स कांग्रेस पार्टी के नेताओं के प्रति वफादार हैं।
यह संर्घष हद्दाद, बगदाद, अल-जजैर और राजनीतिक जिले में स्थित सालेह के निवास स्थान के पास हुआ।
कई निवासियों ने कहा कि हौती विद्रोहियों ने टैंकों और बख्तरबंद वाहनों का इस्तेमाल उन क्षेत्रों पर हमला करने की कोशिश में किया, जहां सालेह के समर्थक मौजूद थे।
विस्फोटों की आवाज पौ फटने तक यमन की राजधानी तक सुनी गई।
हौती विद्रोहियों और सालेह समर्थकों के बीच यह अबतक का सर्वाधिक खूनी संर्घष है।
दोनों पक्ष अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त यमन के राष्ट्रपति अब्द रब्बू मंसूर हादी की सरकार के खिलाफ लड़ रहे हैं। जिसे मार्च 2015 के बाद से सऊदी अरब के नेतृत्व वाले अरब गठबंधन ने समर्थन दे रखा है।
अन्तर्राष्ट्रीय
इच्छामृत्यु को कानूनी दर्जा देने के लिए ब्रिटिश संसद में बिल पास, पूरी तरह समझे कानून
ब्रिटेन। इच्छामृत्यु को लेकर कई देशों में वाद-विवाद है, भारत में इच्छामृत्यु संबंधी कानून सक्रिय और निष्क्रिय इच्छामृत्यु के बीच अंतर करता है। देश में (India) घातक यौगिकों के प्रशासन सहित सक्रिय इच्छामृत्यु के रूप अभी भी अवैध हैं। लेकिन एक वक्त पर भारत पर राज करने वाले ब्रिटेन (Britain) ने इच्छामृत्यु को कानूनी दर्जा देने के लिए ब्रिटिश संसद में बिल पास कर दिया है। ब्रिटेन का ये विधेयक गंभीर रूप से बीमार लोगों, जिनकी जीवन प्रत्याशा 6 महीने से कम है, वे अपनी इच्छा से खुद का जीवन खत्म कर सकते हैं। ये पूरी तरह से कानूनी होगा।
क्या होगा कानून
इस विधेयक के मुताबिक इसे लागू करने के लिए दो स्वतंत्र डॉक्टर्स और एक हाईकोर्ट के जज की सहमति भी जरूरी होगी। हालांकि मरीज को इच्छामृत्यु के इस फैसले के लिए मानसिक रूप से पहले सक्षम माना जाना चाहिए और ये सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि वो किसी दबाव में तो नहीं। इसके अलावा मरीज को 2 बार अपनी मरने की इच्छा भी जतानी होगी। जिसके बीच कम से कम 7 दिनों का अंतर होना चाहिए।
विधेयक पर तीखी बहस
ब्रिटेन की संसद में इस बिधेयक को लेकर तो बहस हुई ही साथ ही अब जनता भी दो धड़ों में बंटी हुई दिखाई दे रही है। संसद में इस बिल के समर्थकों ने इसे मरीज का दर्द खत्म करने और गरिमा के साथ मौते देने का विकल्प बताया तो विरोधी पक्ष ने इसे कमजोर और बीमार लोगों के लिए जोखिम भरा बताया और इसके दुरुपयोग की संभावना जताई। बता दें कि ये विधेयक भले ही संसद से पास हो गया हो लेकिन इसे कानून बनने के लिए और भी समीक्षा प्रक्रियाओं से गुजरना होगा। इसके बाद ही कानून का रूप ले पाएगा। अब विपक्ष समेत आधी जनता के विरोध को देखते हुए जानकारों का मानना है कि शायद ही ये विधेयक इतनी आसानी से कानून का रूप ले पाएगा।
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