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राष्ट्रीय मुद्दों पर कोई समझौता नहीं : भाजपा

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नई दिल्ली | भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने शुक्रवार को कहा कि अलगाववादी नेता मसरत आलम या पाकिस्तान समर्थक नारेबाजी तथा पाकिस्तानी झंडा लहराने से संबंधित राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों से निपटने के दौरान कुछ निश्चित मौलिक सिद्धांतों के साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा।

प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री, जितेंद्र सिंह ने संवाददाताओं से यहां कहा कि केंद्र की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार ने आतंकवाद और अलगाववाद को बिल्कुल बर्दाश्त न करने की नीति का पालन किया है। मंत्री ने यह स्पष्ट किया कि भाजपा, राज्य सरकार या गठबंधन बचाने के लिए किसी भी तरह के दबाव में नहीं आएगी। उन्होंने कहा, “कोई भी यह न सोचे कि सरकार या फिर गठबंधन बचाने के लिए भाजपा अपने किसी भी सिद्धांत के साथ समझौते के लिए तैयार है।” मंत्री ने हालांकि, कहा कि जम्मू एवं कश्मीर सरकार कदम उठा रही है और मुद्दे पर ध्यान दिया जा रहा है। मसरत को गुरुवार रात नजरबंद किया गया था और वह फिलहाल बडगाम जिले में पुलिस हिरासत में है, जहां 15 मार्च को पाकिस्तान के समर्थन में नारेबाजी करने और पाकिस्तानी झंडा लहराने के मामले में पुलिस ने उसके खिलाफ मामला दर्ज किया था। एक अन्य अलगाववादी नेता सैयद अली गिलानी को भी नजरबंद किया गया है।

पुलिस ने 15 अप्रैल को उसके खिलाफ तब प्राथमिकी दर्ज कराई थी, जब उसने गिलानी के साथ अलगाववादियों की एक रैली का नेतृत्व किया था, जो दिल्ली में इलाज कराने के तीन महीने बाद उसी दिन श्रीनगर लौटे थे। इस दौरान युवकों ने पाकिस्तानी झंडा लहराया और आजादी तथा पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाए। गौरतलब है कि जम्मू एवं कश्मीर सरकार ने सात मार्च को आलम को चार साल से अधिक वर्षो के बाद रिहा कर दिया था। उसे 2010 में राज्य में हुए संघर्ष के दौरान युवाओं को उकसाने के मामले में गिरफ्तार किया गया था। इस दौरान सुरक्षा बलों और भीड़ के बीच हुई झड़पों में 112 लोगों की मौत हो गई थी।

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हरियाणा में बीजेपी की हैट्रिक, कांग्रेस को भारी पड़ी गुटबाजी

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सुबह 8 बजे जब EVM खुलीं तो काँग्रेस कार्यकर्ताओं का जोश हाई था .. जैसे जैसे घड़ी की सुई आगे बढ़ती गई कार्यकर्ताओं का जोश नाच गाने और लड्डू बांटने में तब्दील हो गया.. लेकिन ये क्या अचानक से वक्त बदल गया हालात बदल गए और देखते देखते जज़्बात ठंडे पड़ गए .. हरियाणा में जो काँग्रेस रुझानों में पूर्ण बहुमत में दिख रही थी वो अर्श से फर्श पर आ गई और जो बीजेपी फर्श पर पड़ी थी वो अर्श पर पहुँच गई. अब जोश वही था लेकिन हालात और जज़्बात अपनी जगह बदल चुके थे.. अब ढोल की गूंज बीजेपी ऑफिस पहुँच चुकी थी और लड्डू बीजेपी कार्यकर्ताओं का मुंह मीठा कर रहे थे .लोकसभा चुनाव की तरह हरियाणा के नतीजों ने भी चुनावी पंडितों को मुंह छिपाने के लिए मजबूर कर दिया.. सारे  पोल धाराशाई हो गए.. बीजेपी का कमल पूरे बहुमत के साथ खिल गया.. काँग्रेस के मुख्यालय 24 अकबर रोड के जिस कमरे में कौन बनेगा हरियाणा का मुख्यमंत्री पर चर्चा हो रही थी वहाँ का माहौल गमगीन हो गया और इस बात पर चर्चा होने लगी इस हार का बलि का बकरा कौन बनेगा.. 10 साल की एंटी इनकंबेंसी को बीजेपी की रणनीति ने प्रो इनकंबेंसी में बदल कर तीसरी बार सत्ता में वापसी कर ली. जान लेते हैं वो कौन सी वजहें थीं जिसने हरियाणा में कांग्रेस की नैया डुबाने का काम किया है.

गुटबाजी कांग्रेस को भारी पड़ी

हरियाणा चुनाव प्रचार के दौरान सबसे ज्यादा चर्चा कांग्रेस के अंदर चल रही गुटबाजी की होती रही. कुमारी शैलजा और हुड्डा के साथ एक खेमा रणदीप सिंह सुरजेवाला का भी था. ऊपर के नेताओं के बीच की इस खींचतान ने संगठन को नुकसान पहुंचाने का काम किया और कार्यकर्ताओं के अंदर भी असमंजस की स्थिति बनी रही. तमाम कोशिशों के बाद भी कांग्रेस आलाकमान प्रदेश में खेमेबाजी पर लगाम लगाने में नाकामयाब रहा और पार्टी जीती हुई लड़ाई हार गई।

एंटी इनकंबेंसी को भुनाने में रही नाकामयाब

काँग्रेस अपनी अंदरूनी खींचतान से ही नहीं उबर पाई जिससे चुनाव प्रचार के दौरान काँग्रेस बीजेपी की गलतियों को भुनाने में नाकामयाब रही . हालांकि कांग्रेस के पास 10 साल की एंटी इनकंबेंसी,  मुख्यमंत्री बदलने जैसे मुद्दे थे. पहलवानों का प्रदर्शन और अग्निवीर योजना से लेकर किसान आंदोलन जैसे बड़े मुद्दों को प्रचार के दौरान ठीक से हवा नहीं दी जा सकी. लिहाजा पार्टी का पूरा ध्यान खेमेबाजी पर लगाम लगाने में ही रहा और इसका बीजेपी ने पूरा फायदा उठाया.

केजरीवाल की बेल ने बिगाड़ा खेल

चुनाव से ठीक पहले आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल जेल से बाहर आए तो गठबंधन के लिहाज से काफी देर हो चुकी थी .. केजरीवाल खुलकर हरियाणा के चुनावी मैदान में उतार चुके थे लेकिन आम आदमी पार्टी के साथ अगर काँग्रेस का गठबंधन होता तो शायद तस्वीर अलग होती.

टिकट बंटवारे में दिखी गुटबाजी

टिकट बंटवारे में गुटबाजी और भाई भतीजाबाद को अलग रखकर सिर्फ विनिंग उम्मीदवारों को ही प्राथमिकता दी जाती, तो भी नतीजे उलट सकते थे. आम आदमी पार्टी को भले ही किसी सीट पर जीत न मिली हो, लेकिन करीबी मुकाबले वाली सीटों पर उसने कांग्रेस को ही नुकसान पहुंचाने का काम किया है…

एस एन द्विवेदी के साथ शिखा मेहरोत्रा की रिपोर्ट

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