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पत्रकार को अपहरण के बाद जिंदा जलाया

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बालाघाट। मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में एक पत्रकार को अगवा कर जिंदा जलाकर मारने का चौंकाने वाला मामला सामने आया है। शव महाराष्ट्र के वर्धा जिले के जंगल से बरामद हुआ। पुलिस इसे आपसी रंजिश का नतीजा मानकर चल रही है। फिलहाल दो आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है। एक आरोपी फरार है। यह घटना ऐसे समय में सामने आई है, जबकि उत्तर प्रदेश में भी हाल ही में एक पत्रकार की हत्या की खबर सुर्खियों में है और जहां आरोप राज्य सरकार के एक मंत्री पर लगे हैं।

पुलिस के अनुसार, जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर कटंगी क्षेत्र से पत्रकार संदीप कोठारी (28) का कार सवार बदमाशों ने शुक्रवार देर शाम अपहरण कर लिया था। उस दौरान संदीप एक मित्र के साथ मोटरसाइकिल से जा रहे थे। बदमाशों ने उनके मित्र को पीट-पीटकर अधमरा कर दिया और संदीप को लेकर फरार हो गए।

बालाघाट परिक्षेत्र के पुलिस महानिरीक्षक डी.सी. सागर ने सोमवार को आईएएनएस को बताया कि अपहरण की सूचना मिलते ही तलाशी अभियान तेज कर दिया गया था। दो संदिग्धों-विशाल तांडी और ब्रजेश डहरवाल को हिरासत में लेकर पूछताछ की गई, तो उन्होंने संदीप को जिंदा जला देने का खुलासा किया। वर्धा पुलिस को उनका अधजला शव शनिवार को रेलवे पटरी के पास से बरामद हुआ। उन्होंने इसे अज्ञात शव के रूप में दर्ज किया था। बालाघाट पुलिस सोमवार को शव लेकर पत्रकार के घर पहुंच गई। पुलिस फिलहाल मामले की जांच कर रही है।

बताया गया कि संदीप तीन साल पहले एक दैनिक समाचार-पत्र में पत्रकार थे। फिलहाल वह लेखन कार्य से जुड़े हुए थे। हत्या के आरोपियों के चिटफंड तथा खनन सहित अन्य कारोबार हैं। संदीप आरोपियों की संदिग्ध गतिविधियों के बारे में लगातार लिखते आ रहे थे। पुलिस महानिरीक्षक ने बताया कि हत्या को अंजाम देने वाले दो आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है। एक आरोपी अब भी फरार है। कुछ वर्ष पहले दोनों पक्षों के बीच खबर लिखने को लेकर विवाद हुआ था। पत्रकार के खिलाफ भी कई आपराधिक मामले दर्ज थे।

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हरियाणा में बीजेपी की हैट्रिक, कांग्रेस को भारी पड़ी गुटबाजी

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सुबह 8 बजे जब EVM खुलीं तो काँग्रेस कार्यकर्ताओं का जोश हाई था .. जैसे जैसे घड़ी की सुई आगे बढ़ती गई कार्यकर्ताओं का जोश नाच गाने और लड्डू बांटने में तब्दील हो गया.. लेकिन ये क्या अचानक से वक्त बदल गया हालात बदल गए और देखते देखते जज़्बात ठंडे पड़ गए .. हरियाणा में जो काँग्रेस रुझानों में पूर्ण बहुमत में दिख रही थी वो अर्श से फर्श पर आ गई और जो बीजेपी फर्श पर पड़ी थी वो अर्श पर पहुँच गई. अब जोश वही था लेकिन हालात और जज़्बात अपनी जगह बदल चुके थे.. अब ढोल की गूंज बीजेपी ऑफिस पहुँच चुकी थी और लड्डू बीजेपी कार्यकर्ताओं का मुंह मीठा कर रहे थे .लोकसभा चुनाव की तरह हरियाणा के नतीजों ने भी चुनावी पंडितों को मुंह छिपाने के लिए मजबूर कर दिया.. सारे  पोल धाराशाई हो गए.. बीजेपी का कमल पूरे बहुमत के साथ खिल गया.. काँग्रेस के मुख्यालय 24 अकबर रोड के जिस कमरे में कौन बनेगा हरियाणा का मुख्यमंत्री पर चर्चा हो रही थी वहाँ का माहौल गमगीन हो गया और इस बात पर चर्चा होने लगी इस हार का बलि का बकरा कौन बनेगा.. 10 साल की एंटी इनकंबेंसी को बीजेपी की रणनीति ने प्रो इनकंबेंसी में बदल कर तीसरी बार सत्ता में वापसी कर ली. जान लेते हैं वो कौन सी वजहें थीं जिसने हरियाणा में कांग्रेस की नैया डुबाने का काम किया है.

गुटबाजी कांग्रेस को भारी पड़ी

हरियाणा चुनाव प्रचार के दौरान सबसे ज्यादा चर्चा कांग्रेस के अंदर चल रही गुटबाजी की होती रही. कुमारी शैलजा और हुड्डा के साथ एक खेमा रणदीप सिंह सुरजेवाला का भी था. ऊपर के नेताओं के बीच की इस खींचतान ने संगठन को नुकसान पहुंचाने का काम किया और कार्यकर्ताओं के अंदर भी असमंजस की स्थिति बनी रही. तमाम कोशिशों के बाद भी कांग्रेस आलाकमान प्रदेश में खेमेबाजी पर लगाम लगाने में नाकामयाब रहा और पार्टी जीती हुई लड़ाई हार गई।

एंटी इनकंबेंसी को भुनाने में रही नाकामयाब

काँग्रेस अपनी अंदरूनी खींचतान से ही नहीं उबर पाई जिससे चुनाव प्रचार के दौरान काँग्रेस बीजेपी की गलतियों को भुनाने में नाकामयाब रही . हालांकि कांग्रेस के पास 10 साल की एंटी इनकंबेंसी,  मुख्यमंत्री बदलने जैसे मुद्दे थे. पहलवानों का प्रदर्शन और अग्निवीर योजना से लेकर किसान आंदोलन जैसे बड़े मुद्दों को प्रचार के दौरान ठीक से हवा नहीं दी जा सकी. लिहाजा पार्टी का पूरा ध्यान खेमेबाजी पर लगाम लगाने में ही रहा और इसका बीजेपी ने पूरा फायदा उठाया.

केजरीवाल की बेल ने बिगाड़ा खेल

चुनाव से ठीक पहले आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल जेल से बाहर आए तो गठबंधन के लिहाज से काफी देर हो चुकी थी .. केजरीवाल खुलकर हरियाणा के चुनावी मैदान में उतार चुके थे लेकिन आम आदमी पार्टी के साथ अगर काँग्रेस का गठबंधन होता तो शायद तस्वीर अलग होती.

टिकट बंटवारे में दिखी गुटबाजी

टिकट बंटवारे में गुटबाजी और भाई भतीजाबाद को अलग रखकर सिर्फ विनिंग उम्मीदवारों को ही प्राथमिकता दी जाती, तो भी नतीजे उलट सकते थे. आम आदमी पार्टी को भले ही किसी सीट पर जीत न मिली हो, लेकिन करीबी मुकाबले वाली सीटों पर उसने कांग्रेस को ही नुकसान पहुंचाने का काम किया है…

एस एन द्विवेदी के साथ शिखा मेहरोत्रा की रिपोर्ट

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