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जेटली लंदन में टिप्पणी के लिए माफी मांगें : कांग्रेस

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नई दिल्ली| कांग्रेस ने रामजस कॉलेज में हुई हिंसा का संदर्भ देते हुए सोमवार को आरोप लगाया कि केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (एलएसई) में अपनी टिप्पणी से भारतीय शिक्षण संस्थानों का अपमान किया है और उन्हें इसके लिए माफी मांगनी चाहिए। जेटली ने एलएसई में एक भाषण में कहा था कि भारत के कुछ शैक्षणिक परिसरों में हिंसक गठजोड़ चल रहा है। वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी.चिदंबरम ने भी जेटली पर निशाना साधा है।

उन्होंने व्यंग्यात्मक लहजे में ट्वीट कर पूछा, “जब सन् 1975 में जेटली दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ (डूसू) के अध्यक्ष थे, तब क्या वह ‘हिंसक गठजोड़’ की अध्यक्षता कर रहे थे।” कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, “वित्तमंत्री लंदन गए। एलएसई में उन्होंने कहा कि भारत के विश्वविद्यालय परिसरों में एक हिंसक गठजोड़ चल रहा है।”

उन्होंने कहा, “उन्होंने भारतीय शिक्षकों, विद्यार्थियों तथा इस क्षेत्र के अन्य सदस्यों का अपमान किया है। उन्हें (जेटली) भारतीय शैक्षणिक संस्थानों के खिलाफ इस्तेमाल की गई अपनी भाषा के लिए माफी मांगनी चाहिए, वह भी विदेशी सरजमीं पर।” दरअसल, एलएसई में शनिवार को एक चर्चा में जेटली ने कहा, “हिंसा कोई तरीका नहीं है, किसी भी समूह को हिंसा का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, हिंसा का एक गठजोड़ है, जो चल रहा है। कुछ विश्वविद्यालय परिसरों में अलगाववादी तथा वामपंथी एक ही भाषा बोल रहे हैं। इसलिए उन्हें भी चाहिए कि अलग मत रखने वालों को भी बोलने दें, प्रतिकार करने दें।”

जेटली की यह टिप्पणी दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से संबद्ध अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) तथा वाम मोर्चा समर्थित ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) के कार्यकर्ताओं के बीच 22 फरवरी को हुई झड़प के बाद आई है।

तिवारी ने कहा कि जेटली की टिप्पणी यह दर्शाती है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के भीतर तक यह भय समाया हुआ है कि एक स्वाभाविक हिंसक गठजोड़ आ रहा है। उन्होंने कहा, “फासीवादी सिद्धांतों को धूल में मिलाने के लिए एक स्वाभाविक हिंसक गठबंधन निश्चित तौर पर उभर कर आएगा, जो भाजपा के लिए स्वाभाविक है। इस गठबंधन ने उनकी असहिष्णुता को चुनौती दी है। साथ ही इसने उनके थोपने वाले विचारों के अधिकारों को भी चुनौती दी है, जिसके कारण सरकार पीड़ोन्मादी (दूसरों की पीड़ा का आनंद उठाने वाला) बन गई है।”

कांग्रेस नेता ने कहा, “रामजस कॉलेज में जो हिंसा हुई, पूरी तरह घृणास्पद है। सबसे ज्यादा अचंभित करने वाली बात हिंसा को न्यायोचित ठहराने के लिए सरकार के वरिष्ठ सदस्यों द्वारा किया गया प्रयास है।”

उन्होंने कहा, “भारत में शत्रुता पैदा करने या अलगाववाद पैदा करने वालों की वकालत करने वालों का समर्थन करने का किसी को अधिकार नहीं है।” मोदी सरकार पर संघ परिवार के साथ मिलकर लोकतंत्र पर हमला करने का आरोप लगाते हुए कांग्रेस नेता ने यह भी कहा कि रामजस कॉलेज में विद्यार्थियों व शिक्षकों पर कथित तौर पर एबीवीपी के कार्यकर्ताओं द्वारा किया गया अत्याचार दक्षिणपंथी ताकतों के समन्वित प्रयासों का हिस्सा है।

उन्होंने कहा, “यह कोई अकेली घटना (रामजस) नहीं है। जब से यह सरकार सत्ता में आई है, विचारों को दक्षिणपंथ की तरफ मोड़ने का प्रयास कर रही है।” तिवारी ने कहा, “इस तरह का अत्याचार तथा हिंसा पूरे देश में हो रही है, जिसने उन मौलिक विचारों को चुनौती दी है, जिसपर भारत का संविधान टिका हुआ है।”

उन्होंने कहा, “इसलिए, अब समय आ गया है कि सभी प्रगतिशील, बहुलवादी तथा देशभक्त ताकतें साथ आएं तथा संघ परिवार के तत्वों द्वारा भारतीय लोकतंत्र पर निरंतर किए जा रहे हमलों के खिलाफ खड़े हों। लोकतंत्र पर इन हमलों का केंद्र सरकार, यहां तक कि प्रधानमंत्री भी समर्थन कर रहे हैं।”

इससे पहले, तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओब्रायन ने कहा कि मोदी ट्विटर पर जहर उगलने वाले, महिला विरोधी, हत्या की धमकी देने वाले ट्रोल अकाउंट को फॉलो करते हैं।

राष्ट्रद्रोह के आरोप में पिछले साल जेल जा चुके जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्र उमर खालिद को रामजस कॉलेज में ‘विरोध की संस्कृति’ नामक साहित्यिक संगोष्ठी में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित करने को लेकर झड़प हुई थी।

इस बवाल को तब नई हवा मिल गई, जब लेडी श्रीराम कॉलेज की गुरमेहर कौर नामक छात्रा ने एबीवीपी के खिलाफ सोशल मीडिया पर एक अभियान शुरू किया।

कौर ने एक तख्ती लिए सोशल मीडिया पर स्टूडेंट्सअगेंस्टएबीवीपी हैशटैग के साथ एक तस्वीर पोस्ट की, जिसमें लिखा, “मैं दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा हूं। मैं एबीवीपी से नहीं डरती। मैं अकेली नहीं हूं। भारत का हर छात्र मेरे साथ है।”

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हरियाणा में बीजेपी की हैट्रिक, कांग्रेस को भारी पड़ी गुटबाजी

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सुबह 8 बजे जब EVM खुलीं तो काँग्रेस कार्यकर्ताओं का जोश हाई था .. जैसे जैसे घड़ी की सुई आगे बढ़ती गई कार्यकर्ताओं का जोश नाच गाने और लड्डू बांटने में तब्दील हो गया.. लेकिन ये क्या अचानक से वक्त बदल गया हालात बदल गए और देखते देखते जज़्बात ठंडे पड़ गए .. हरियाणा में जो काँग्रेस रुझानों में पूर्ण बहुमत में दिख रही थी वो अर्श से फर्श पर आ गई और जो बीजेपी फर्श पर पड़ी थी वो अर्श पर पहुँच गई. अब जोश वही था लेकिन हालात और जज़्बात अपनी जगह बदल चुके थे.. अब ढोल की गूंज बीजेपी ऑफिस पहुँच चुकी थी और लड्डू बीजेपी कार्यकर्ताओं का मुंह मीठा कर रहे थे .लोकसभा चुनाव की तरह हरियाणा के नतीजों ने भी चुनावी पंडितों को मुंह छिपाने के लिए मजबूर कर दिया.. सारे  पोल धाराशाई हो गए.. बीजेपी का कमल पूरे बहुमत के साथ खिल गया.. काँग्रेस के मुख्यालय 24 अकबर रोड के जिस कमरे में कौन बनेगा हरियाणा का मुख्यमंत्री पर चर्चा हो रही थी वहाँ का माहौल गमगीन हो गया और इस बात पर चर्चा होने लगी इस हार का बलि का बकरा कौन बनेगा.. 10 साल की एंटी इनकंबेंसी को बीजेपी की रणनीति ने प्रो इनकंबेंसी में बदल कर तीसरी बार सत्ता में वापसी कर ली. जान लेते हैं वो कौन सी वजहें थीं जिसने हरियाणा में कांग्रेस की नैया डुबाने का काम किया है.

गुटबाजी कांग्रेस को भारी पड़ी

हरियाणा चुनाव प्रचार के दौरान सबसे ज्यादा चर्चा कांग्रेस के अंदर चल रही गुटबाजी की होती रही. कुमारी शैलजा और हुड्डा के साथ एक खेमा रणदीप सिंह सुरजेवाला का भी था. ऊपर के नेताओं के बीच की इस खींचतान ने संगठन को नुकसान पहुंचाने का काम किया और कार्यकर्ताओं के अंदर भी असमंजस की स्थिति बनी रही. तमाम कोशिशों के बाद भी कांग्रेस आलाकमान प्रदेश में खेमेबाजी पर लगाम लगाने में नाकामयाब रहा और पार्टी जीती हुई लड़ाई हार गई।

एंटी इनकंबेंसी को भुनाने में रही नाकामयाब

काँग्रेस अपनी अंदरूनी खींचतान से ही नहीं उबर पाई जिससे चुनाव प्रचार के दौरान काँग्रेस बीजेपी की गलतियों को भुनाने में नाकामयाब रही . हालांकि कांग्रेस के पास 10 साल की एंटी इनकंबेंसी,  मुख्यमंत्री बदलने जैसे मुद्दे थे. पहलवानों का प्रदर्शन और अग्निवीर योजना से लेकर किसान आंदोलन जैसे बड़े मुद्दों को प्रचार के दौरान ठीक से हवा नहीं दी जा सकी. लिहाजा पार्टी का पूरा ध्यान खेमेबाजी पर लगाम लगाने में ही रहा और इसका बीजेपी ने पूरा फायदा उठाया.

केजरीवाल की बेल ने बिगाड़ा खेल

चुनाव से ठीक पहले आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल जेल से बाहर आए तो गठबंधन के लिहाज से काफी देर हो चुकी थी .. केजरीवाल खुलकर हरियाणा के चुनावी मैदान में उतार चुके थे लेकिन आम आदमी पार्टी के साथ अगर काँग्रेस का गठबंधन होता तो शायद तस्वीर अलग होती.

टिकट बंटवारे में दिखी गुटबाजी

टिकट बंटवारे में गुटबाजी और भाई भतीजाबाद को अलग रखकर सिर्फ विनिंग उम्मीदवारों को ही प्राथमिकता दी जाती, तो भी नतीजे उलट सकते थे. आम आदमी पार्टी को भले ही किसी सीट पर जीत न मिली हो, लेकिन करीबी मुकाबले वाली सीटों पर उसने कांग्रेस को ही नुकसान पहुंचाने का काम किया है…

एस एन द्विवेदी के साथ शिखा मेहरोत्रा की रिपोर्ट

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