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कॉमेडी में द्विअर्थी शब्द न कभी बोला है न बोलूंगा : असरानी

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नई दिल्ली, 16 सितंबर (आईएएनएस)| दर्शकों को हंसाने-गुदगुदाने के लिए मशहूर अभिनेता असरानी का असली नाम गोवर्धन ठाकुरदास जेठानंद असरानी है। उनका कहना है कि वह हमेशा से साफ-सुथरी कॉमेडी का हिस्सा रहे हैं और रहेंगे। न तो कभी द्विअर्थी संवाद बोले हैं और न कभी बोलेंगे।

अभिनेता ने ‘गुड्डी’, ‘बावर्ची’, ‘अभिमान’, ‘शोले’, ‘यमला पगला दीवाना : फिर से’ जैसी फिल्मों में काम किया है। फिल्म ‘शोले’ में उनके द्वारा बोले गए संवाद ‘हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर हैं’ को आज भी लोग याद करते हैं।

अपने नाटक ‘मक्खीचूस’ के मंचन के सिलसिले में नोएडा आए अभिनेता ने रंगमंच से जुड़ने के बारे में आईएएनएस से कहा, देखिए, मैं फिल्म इंस्टीट्यूट (फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, पुणे) से हूं और एक्टिंग का डिप्लोमा किया हुआ है, तो वहां पर कोर्स में स्टेजप्ले करना कंपल्सरी था। ट्रेनिंग का पार्ट था वह। जब आप स्टेज पर प्ले करते हैं तो दर्शक सामने बैठा होता है। आमने-सामने मुलाकात होती है। फिल्म में अभिनय करते समय सामने सिर्फ कैमरा होता है, तो आपको पता नहीं चलता कि दर्शक क्या रिएक्शन कर रहे हैं, वे तो हमको देख सकते हैं, लेकिन हम उनको देख नहीं सकते। स्टेजप्ले में तो हम आमने-सामने बैठते हैं, रूबरू होते हैं। हम देख सकते हैं कि देखने वाले क्या रिएक्शन कर रहे हैं और उसके मुताबिक एक्टर खुद रिएक्ट करता है, उससे हमको पता लग जाता है कि हम सही कर रहे हैं कि नहीं कर रहे हैं। अगर गलत कर रहे हैं तो फौरन उसी वक्त उसको दुरुस्त करके फिर से सामने आते हैं।

आजकल कॉमेडी शोज में द्विअर्थी शब्दों वाले संवादों का प्रयोग करने का चलन बढ़ता जा रहा है, यह बात छेड़ने पर असरानी (70) ने आईएएनएस से कहा, देखिए, हम जो ये नाटक (मक्खीचूस) कर रहे हैं, इसमें कोई द्विअर्थी शब्द या संवाद नहीं है। अगर आपने मेरी शुरुआती फिल्में देखी हों तो उसमें भी हमने ऐसा कुछ नहीं किया है। हमने न कभी डबल मीनिंग वाले शब्दों का प्रयोग किया है और न कभी करेंगे। जो लोग करते हैं, उनसे हमें कोई मतलब नहीं है।

यह पूछे जाने पर कि क्या दर्शकों के सामने अभिनय करने पर वह कोई दबाव महसूस करते हैं? उन्होंने कहा, बिल्कुल होता है, पहले जब हम नया स्टेजप्ले शुरू करते हैं तो उस वक्त तो होता ही है कि..भाई किस तरह के दर्शक आए हुए हैं। मगर जब हम बार-बार करते हैं, तो हमको मालूम पड़ता है कि दर्शक कहां-कहां पर रिएक्शन करेंगे। अब हमारा ये 12वां शो है।

‘मक्खीचूस’ की कहानी फ्रांसीसी नाटककार मॉलियर की ‘द माइजर’ पर आधारित है। ‘द माइजर’ नाटक का सबसे पहले मंचन सन् 1668 में हुआ था। इसके हिंदी रूपातंरण का नाम ‘मक्खीचूस’ प्रणव और ईशान जो प्रोड्यूसर और डायेरक्टर हैं, ने रखा है। हास्य से भरपूर इस नाटक में असरानी एक विधुर (टोपन लाल) की भूमिका में हैं जो बेहद कंजूस है और अपने बेटे की प्रेमिका से शादी करने की कोशिश में लगा रहता है।

नाटक में अपने किरदार के बारे में असरानी ने कहा, इसमें मेरा मुख्य किरदार है। मैं ही मक्खीचूस का रोल कर रहा हूं और इसमें एक बड़ा अच्छा संदेश है, वह संदेश है..चूंकि वह कंजूस है, तो वह अपने बेटे से भी, अपनी बेटी से भी, नौकर से और दूसरे लोगों से भी बिल्कुल ऐसा व्यवहार करता है कि कोई उसके पैसों का फायदा न उठा पाए। अपने बेटे को, बेटी को सबको डांटता रहता है कि पैसे क्यों खर्च करते हो और बाद में महसूस करता है कि लाइफ में सिर्फ पैसा ही सबकुछ नहीं है। पैसे के अलावा भी रिश्ते, प्यार, मोहब्बत ये सब भी होना चाहिए। ये इसका संदेश है।

उन्होंने कहा, इसमें बहुत मसाला है, इसलिए मैं चाहूंगा कि दर्शक इसे आकर देखें..इसमें हंसते-हंसते लेखक ने एक बेहतरीन संदेश दिया है।

यह पूछे जाने पर कि उनके लिए कॉमेडी करना कितना आसान रहता है, असरानी ने कहा, मुझे तो 20-25 साल हो गए, मुझे लोगों ने कॉमेडी रोल दिए और मैं इसमें बिल्कुल सहज हूं तभी तो करता आ रहा हूं।

पहले एक कॉमेडी कलाकारों की अपनी पहचान होती थी, फिल्मों में उनकी एंट्री होते ही लगता था कि अब कोई कॉमेडी सीन देखने को मिलेगा और आजकल हर कलाकार कॉमेडी करने लगा है तो क्या हास्य कलाकारों को काम मिलने में कोई दिक्कत तो नहीं आती? इस सवाल पर अभिनेता ने कहा, दिक्कत की बात क्या..आजकल किसी कॉमेडियन के पास काम तो है ही नहीं। उसका कारण यह है कि हीरो कॉमेडी करता है, हीरोइन कॉमेडी करती है, हीरो विलेन भी बना हुआ है और हीरोइन वैम्प भी बनी हुई है, वे कॉमेडी भी करते हैं तो सारा काम हीरो-हीरोइन का ही है, कॉमेडियन का कोई काम ही नहीं है।

नाटक में प्रणव सचदेव असरानी के बेटे की भूमिका में हैं। प्रणव के साथ काम करने को उन्होंने बेहतरीन अनुभव बताया। वह उनके साथ ‘क्या फैमिली है’ नाटक में भी काम कर चुके हैं। असरानी ने कहा कि वह बहुत पेशेवर हैं और बहुत अच्छा काम कर रहे हैं।

असरानी आगे भी बेहतरीन काम करने की ख्वाहिश रखते हैं। उन्होंने कहा, बहुत ख्वाहिशें हैं और किरदार हैं, 25 साल से हम करते आ रहे हैं। अच्छे-अच्छे निर्देशकों के साथ काम किया है और आगे भी करने की उम्मीद है। अच्छा रोल मिलेगा तो मैं करता रहूंगा।

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नेशनल

केजरीवाल ने सदन में पूछा सवाल, क्या लॉरेंस बिश्नोई को बीजेपी की तरफ से संरक्षण प्राप्त है

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नई दिल्ली। दिल्ली में कानून-व्यवस्था की खराब स्थिति को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शक्रवार को केंद्र सरकार और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर निशाना साधा है। अरविंद केजरीवाल ने विधानसभा में कहा कि दिल्ली में बदहाल होती कानून-व्यवस्था पर अमित शाह चुप क्यों हैं?। केजरीवाल ने कहा कि लॉरेंस बिश्नोई कौन है। इसका जवाब बीजेपी को देना होगा। क्या लॉरेंस बिश्नोई को बीजेपी की तरफ से संरक्षण प्राप्त है। उसे जेल में कौन-कौन सी सुविधाएं मिल रही हैं। वह गुजरात की जेल में रहते हुए भी देश-विदेश में गैंग कैसे चला रहा है।

उन्होंने कहा कि दिल्ली में हमने स्कूल, अस्पताल, सड़कें और बिजली ठीक करने की जिम्मेदारी पूरी की है लेकिन केंद्र सरकार और गृह मंत्री अमित शाह से दिल्ली की कानून व्यवस्था संभाली नहीं जा रही है। दिल्ली में हत्याएं और बम ब्लास्ट हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि अभी-अभी मैं देख रहा था कि एक वकील कह रहे थे कि सड़क पर हाथ में मोबाइल फोन ले जाना मुश्किल है। आप मोबाइल फोन लो जाओगे, कोई ना कोई आपका मोबाइल छीन लेगा। दिल्ली में दुष्कर्म हो रहे हैं, मर्डर कर देते हैं। मैं यह एक अखबार लेकर आया हूं। दिल्ली की कानून व्यवस्था को लेकर इसमें जानकारी दी गई है।

उन्होंने कहा कि आपके पड़ोस में गैंगवार शुरू हो गए हैं। ये लॉरेंस बिश्नोई कौन है? कैसे वह जेल में बैठ कर गैंग चला रहा है। इसके बारे में अमित शाह को बताना पड़ेगा। बिश्नोई गैंग, भाऊ ग्रैंड, गोगी गैंग… ऐसे दर्जन भर गैंग दिल्ली के अंदर सक्रिय हैं। कोई बता रहा था कि इन्होंने अपने एरिया बांट रखे हैं।

दिल्ली में कानून व्यवस्था का यह हाल हो गया है कि आज हर कोई डरा हुआ है। लोगों को वसूली के फोन आ रहे हैं। महिलाओं का रेप कर हत्या की जा रही है। लॉरेंस बिश्नोई की गैंग ने आतंक मचा रखा है। एक बात समझ नहीं आ रही कि लॉरेंस बिश्नोई BJP शासित गुजरात की साबरमती जेल में बंद है तो वह जेल में रहकर अपनी गैंग कैसे चला रहा है?

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