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Valentines Day: अलग-अलग देशों में कुछ यूं मनाया जाता है प्यार का त्यौहार

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वैलेंटाइन डे यानी प्यार का दिन. इस दिन प्यार करने वाले एक दूसरे से अपने दिल की बातें कहते हैं और अपने प्यार का इजहार करते हैं. यह प्यार वालों का दिन है. हर साल 14 फरवरी को दुनियाभर के कई देशों में वैलेंटाइन डे मनाया जाता है. सभी युवा पूरे साल इस दिन का बेसब्री से इंतजार करते हैं. ज्यादातर देशों में धूमधाम और अलग-अलग परंपराओं (Rituals) के साथ वैलेंटाइन डे मनाया जाता है. कुछ देशों में तो वैलेंटाइन डे के दिन शादी करने का भी चलन है. वहीं कई ऐसे मुस्लिम देश हैं, जहां आज भी वैलेंटाइन डे मनाने पर रोक है. सऊदी अरब भी ऐसे ही देशों में से एक था. पहले सऊदी अरब में वैलेंटाइन डे को मजहब के खिलाफ समझा जाता था. यहां तक कि अगर कोई इसे मनाते हुए पाया जाता था, तो उस पर भारी जुर्माना लगाया जाता था.

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सऊदी अरब के प्रमुख धार्मिक विद्वान शेख अहमद कासिम अलगामदी की वजह से साल 2018 में पहली बार यहां पर वैलेंटाइन डे मनाया गया. शेख अहमद कासिम के अनुसार वैलेंटाइन डे मोहब्बत का त्योहार है. अब सऊदी में भी बुर्का में रहने वाली महिलाएं वैलेंटाइन डे के दिन अपने पार्टनर के लिए फूल और गिफ्ट्स खरीदती नजर आती हैं. हालांकि आज भी कई देशों में इस दिन को सेलिब्रेट करना बिल्कुल मना है. आइए आपको बताते हैं दुनिया के अलग-अलग देशों में किस तरह से मनाया जाता है वैलेंटाइन डे. क्या है इससे जुड़ी अनोखी परंपरा.

ब्राजील- 12 जून को मनाते हैं वैलेंटाइन डे

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ब्राजील में वैलेंटाइन डे 14 फरवरी के बजाए 12 जून को मनाया जाता है. ब्राजील में इस दिन को डीया डोस नमोराडोस के नाम से जाना जाता है. इसका मतलब पुर्तगाली में स्वीट हार्ट डे या बॉयफ्रेंड-गर्लफ्रेंड-डे होता है. इस दिन लव बर्ड्स एक दूसरे को गिफ्ट्स देते हैं.

इंग्लैंड- मनचाहा साथी पाने के लिए किया जाता है टोटका

Valentine's Day

इंग्लैंड में वैलेंटाइन डे की शाम को लड़कियां अपने तकिए के नीचे पांच तेजपत्ते रखकर सोती हैं. यहां एक-एक तेजपत्ता तकिए के चारों तरफ पर और पांचवां तकिए के बीच में रखने का रिवाज है. ऐसा कहा जाता है कि इससे सपने में उन लड़कियों को अपना होने वाला पति दिखाई देता है.

डेनमार्क- स्नोड्रॉप फ्लावर देने की परंपरा

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डेनमार्क में वैलेंटाइन डे के दिन लव बर्ड्स आपस में एक दूसरे को गुलाब का फूल नहीं देते. इसके बदले वहां स्नोड्रॉप फ्लावर देने की परंपरा है. यहां अपने चाहने वाले को खुद से कार्ड देने के बजाए गुमनाम कार्ड भेजा जाता है. महिलाओं को कार्ड भेजने वाले का नाम खुद से गेस करना पड़ता है.

इटली- ‘स्प्रिंग फेस्टिवल’ के रूप में मनाया जाता है वैलेंटाइन डे

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इटली में वैलेंटाइन-डे स्प्रिंग फेस्टिवल के रूप में मनाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन कुंवारी लड़किया सुबह जल्दी उठ जाती हैं और उन्हें जो पुरुष सबसे पहले दिखाई देता है वही उनका होने वाला पति बन सकता है.

वल्स- लकड़ी का चम्मच देने की परंपरा

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वल्स देश में 25 जनवरी को ‘सेंट ड्वेनवेन डे’ मनाया जाता है. ये 14 फरवरी के वैलेंटाइन डे जैसा ही होता है. इनकी एक खास परंपरा है जिसमें कपल्स एक दूसरे को लकड़ी के चम्मच तोहफे में देते हैं. इसे लव स्पून्स कहा जाता है. चम्मच के डिजाइन में देने वाले की तरफ से मैसेज होता है.

जापान- ‘थैंक्स गिविंग डे’ के रूप में मनाते हैं वैलेंटाइन डे

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जापान में 14 फरवरी को वैलेंटाइन डे मनाने की बजाए ‘थैंक्स गिविंग डे’ मनाने की परंपरा है. इस दिन महिलाएं पिता, भाई, पति, दोस्त और अपने प्रेमी को थैंक्स बोलने के लिए चॉकलेट देती हैं. पुरुषों के पास 14 मार्च तक बदले में गिफ्ट्स देने का टाइम होता है, जिसे वाइट डे कहा जाता है.

थाईलैंड- हाथी पर बैठकर शादी करने का रिवाज

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थाईलैंड में वैलेंटाइन डे के दिन एक अलग ही रिवाज है. कहते हैं कि 14 फरवरी के दिन थाईलैंड में हाथी पर बैठकर शादी करने की परंपरा है. इस रस्म को देखने के लिए बैंकॉक में हजारों लोगों की भीड़ हर वर्ष लगती है. लोग हाथियों में बैठकर नए शादीशुदा जोड़ों के साथ नाचते हैं.

फिलीपींस- शादी करने की परंपरा

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फिलीपींस में 14 फरवरी यानी वैलेंटाइन डे के दिन युवा जोड़े सरकार की तरफ से स्पॉन्सर्ड प्रोग्राम में शादी करते हैं. ये यहां के युवाओं के लिए सबसे खास दिन माना जाता है.

 

आध्यात्म

क्यों बनता है गोवर्धन पूजा में अन्नकूट, जानें इसका महत्व

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गोवर्धन पूजा का त्योहार दिवाली के अगले दिन यानी कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है। गोवर्धन पूजा को अन्नकूट भी कहा जाता है। इस दिन का हिंदू धर्म में काफी महत्व है। गोवर्धन का त्योहार श्री कृष्ण की लीला को दर्शाता है।

स दिन मंदिरों में अन्नकूट किया जाता है। अन्नकूट एक प्रकार से सामूहिक भोज का आयोजन है, जिसमें पूरा परिवार एक जगह बनाई गई रसोई से भोजन करता है। इस दिन चावल, बाजरा, कढ़ी, साबुत मूंग सभी सब्जियां एक जगह मिलाकर बनाई जाती हैं। मंदिरों में भी अन्नकूट बनाकर प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। शाम में गोबर के गोवर्धन बनाकर पूजा की जाती है।

गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती जैसे नदियों में गंगा। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं, उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। इनका बछड़ा खेतों में हल जोतकर अनाज उगाता है। इस तरह गौ संपूर्ण मानव जाति के लिए पूजनीय और आदरणीय है।

गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है और इसके प्रतीक के रूप में गाय की। वेदों में इस दिन वरुण, इंद्र, अग्नि आदि देवताओं की पूजा का विधान है। इसी दिन बलि पूजा, गोवर्धन पूजा होती हैं। इस दिन गाय-बैल आदि पशुओं को स्नान कराकर, फूल माला, धूप, चंदन आदि से उनका पूजन किया जाता है। गायों को मिठाई खिलाकर उनकी आरती उतारी जाती है।

यह ब्रजवासियों का मुख्य त्योहार है। अन्नकूट या गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारंभ हुई। उस समय लोग इंद्र भगवान की पूजा करते थे व छप्पन प्रकार के भोजन बनाकर तरह-तरह के पकवान व मिठाइयों का भोग लगाया जाता था।

महाराष्ट्र में यह दिन बलि प्रतिपदा या बलि पड़वा के रूप में मनाया जाता है। वामन जो कि भगवान विष्णु के एक अवतार है, उनकी राजा बलि पर विजय और बाद में बलि को पाताल लोक भेजने के कारण इस दिन उनका पुण्यस्मरण किया जाता है।

माना जाता है कि भगवान वामन द्वारा दिए गए वरदान के कारण असुर राजा बलि इस दिन पातल लोक से पृथ्वी लोक आते हैं। अधिकतर गोवर्धन पूजा का दिन गुजराती नववर्ष के दिन के साथ मिल जाता है जो कि कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष के दौरान मनाया जाता है। गोवर्धन पूजा उत्सव गुजराती नववर्ष के दिन के एक दिन पहले मनाया जा सकता है और यह प्रतिपदा तिथि के प्रारंभ होने के समय पर निर्भर करता है।

इस दिन प्रात: गाय के गोबर से लेटे हुए पुरुष के रूप में गोवर्धन बनाया जाता है। अनेक स्थानों पर इसके मनुष्याकार बनाकर पुष्पों, लताओं आदि से सजाया जाता है। इनकी नाभि के स्थान पर एक कटोरी या मिट्टी का दीपक रख दिया जाता है। फिर इसमें दूध, दही, गंगाजल, शहद, बताशे आदि पूजा करते समय डाल दिए जाते हैं और बाद में इसे प्रसाद के रूप में बांट देते हैं। शाम को गोवर्धन की पूजा की जाती है।

पूजा में धूप, दीप, नैवेद्य, जल, फल, फूल, खील, बताशे आदि का प्रयोग किया जाता है। पूजा के बाद गोवर्धनजी की जय बोलते हुए उनकी सात परिक्रमाएं लगाई जाती हैं। परिक्रमा के समय एक व्यक्ति हाथ में जल का लोटा व अन्य जौ लेकर चलते हैं। जल के लोटे वाला व्यक्ति पानी की धारा गिराता हुआ तथा अन्य जौ बोते हुए परिक्रमा पूरी करते हैं।

अन्नकूट में चंद्र-दर्शन अशुभ माना जाता है। यदि प्रतिपदा में द्वितीया हो तो अन्नकूट अमावस्या को मनाया जाता है। इस दिन संध्या के समय दैत्यराज बलि का पूजन भी किया जाता है। गोवर्धन गिरि भगवान के रूप में माने जाते हैं और इस दिन उनकी पूजा अपने घर में करने से धन, धान्य, संतान और गोरस की वृद्धि होती है।

इस दिन दस्तकार और कल-कारखानों में कार्य करने वाले कारीगर भगवान विश्वकर्मा की पूजा भी करते हैं। इस दिन सभी कल-कारखाने तो पूर्णत: बंद रहते ही हैं, घर पर कुटीर उद्योग चलाने वाले कारीगर भी काम नहीं करते। भगवान विश्वकर्मा और मशीनों एवं उपकरणों का दोपहर के समय पूजन किया जाता है।

गोवर्धन पूजा के संबंध में एक लोकगाथा प्रचलित है कि देवराज इंद्र को अभिमान हो गया था। इंद्र का अभिमान चूर करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने एक लीला रची। एक दिन उन्होंने देखा के सभी बृजवासी उत्तम पकवान बना रहे हैं और किसी पूजा की तैयारी में जुटे। श्रीकृष्ण ने मैया यशोदा से प्रश्न किया कि आप लोग किनकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं।

कृष्ण की बातें सुनकर यशोदा मैया बोली, “हम देवराज इंद्र की पूजा के लिए अन्नकूट की तैयारी कर रहे हैं।”

मैया के ऐसा कहने पर श्रीकृष्ण बोले “मैया, हम इंद्र की पूजा क्यों करते हैं?”

यशोदा ने कहा कि वह वर्षा करते हैं, जिससे अन्न की पैदावार होती है। उनसे हमारी गायों को चारा मिलता है। भगवान श्रीकृष्ण बोले, “हमें तो गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि हमारी गायें वहीं चरती हैं, इस दृष्टि से गोर्वधन पर्वत ही पूजनीय है और इंद्र तो कभी दर्शन भी नहीं देते व पूजा न करने पर क्रोधित भी होते हैं, अत: ऐसे अहंकारी की पूजा नहीं करनी चाहिए।”

श्रीकृष्ण की माया से सभी ने इंद्र के बदले गोवर्धन पर्वत की पूजा की। देवराज इंद्र ने इसे अपना अपमान समझा और मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी। तब श्रीकृष्ण ने अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा गोवर्धन पर्वत उठा लिया और सभी बृजवासियों को उसमें अपने गाय और बछड़े समेत शरण लेने के लिए बुलाया।

इंद्र कृष्ण की यह लीला देखकर और क्रोधित हुए फलत: वर्षा और तेज हो गई। इंद्र का मान-मर्दन करने के लिए श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के ऊपर रहकर वर्षा की गति को नियत्रित करें और शेषनाग से कहा आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें।

इंद्र लगातार सात दिन तक मूसलाधार वर्षा करते रहे, तब उन्हें अहसास हुआ कि उनका मुकाबला करने वाला कोई आम मनुष्य नहीं हो सकता अत: वे ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और सब वृतांत्त कह सुनाया। ब्रह्मा जी ने इंद्र से कहा, “आप जिस कृष्ण की बात कर रहे हैं वह भगवान विष्णु के साक्षात अंश हैं।”

ब्रह्मा जी के मुंख से यह सुनकर इंद्र अत्यंत लज्जित हुए और श्रीकृष्ण से कहा, “प्रभु मैं आपको पहचान न सका, इसलिए अहंकारवश भूल कर बैठा। आप दयालु हैं और कृपालु भी इसलिए मेरी भूल क्षमा करें।” इसके बाद देवराज ने श्रीकृष्ण की पूजा कर उन्हें भोग लगाया।”

सातवें दिन श्रीकृष्ण ने गोवर्धन को नीचे रखा और ब्रजवासियों से कहा, अब तुम प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व मनाया करो। तभी से यह पर्व अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा। इस पौराणिक घटना के बाद से ही गोवर्धन पूजा की जाने लगी। बृजवासी इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा करते हैं। गाय बैल को इस दिन स्नान कराकर उन्हें रंग लगाया जाता है व उनके गले में नई रस्सी डाली जाती है। गाय और बैलों को गुड़ और चावल मिलाकर खिलाया जाता है।

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