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उत्तर प्रदेश

हर साल रामनवमी पर भगवान सूर्य करेंगे प्रभु श्रीराम का अभिषेक, दोपहर 12 बजे दमकेगा प्रभु का ललाट

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Lord Surya will anoint Lord Shri Ram in Ayodhya

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अयोध्या। प्रभु श्रीराम की नगरी अयोध्या को जिस दिव्यता, भव्यता और नव्यता की ओर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार लेकर जा रही है, उसकी झलक दिखने लगी है। ना केवल नगर में हो रहे विकास कार्यों में, बल्कि भगवान राम के भव्य मंदिर और यहां तक कि उनकी मूर्ति में भी अलौकिकता के दर्शन होंगे। मंदिर ट्रस्ट की ओर से भी इसपर अपनी मुहर लगा दी गई है। ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने इस बारे में विस्तार से जानकारी दी है।

उन्होंने बताया है कि प्रभु श्रीराम की मूर्ति को इस प्रकार से बनाया गया है कि प्रत्येक वर्ष रामनवमी को भगवान सूर्य स्वयं श्रीराम का अभिषेक करेंगे। उन्होंने बताया कि भारत के प्रख्यात अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की सलाह पर मूर्ति की लंबाई और उसे स्थापित करने की ऊंचाई को इस प्रकार से रखा गया है कि हर साल चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को दोपहर 12 बजे सूर्य की किरणें प्रभु श्रीराम के ललाट पर पड़ेंगी।

बेहद बारीकी से तैयार की गई है प्रभु की मूर्ति

ट्रस्ट की ओर से बताया गया है कि तीन शिल्पकारों ने प्रभु श्रीराम की मूर्ति का निर्माण अलग अलग किया, जिसमें से एक मूर्ति को प्रभु प्रेरणा से चुना गया है। चुनी गई मूर्ति की पैर से लेकर ललाट तक की लंबाई 51 इंच है और इसका वजन डेढ़ टन है। मूर्ति की सौम्यता का बखान करते हुए कहा गया कि श्यामल रंग के पत्थर से निर्मित मूर्ति में ना केवल भगवान विष्ण की दिव्यता और एक राजपुत्र की कांति है बल्कि उसमें 5 साल के बच्चे की मासूमियत भी है। चेहरे की कोमलता, आंखों की दृष्टि, मुस्कान, शरीर आदि को ध्यान में रखते हुए मूर्ति का चयन किया गया है। 51 इंच ऊंची मूर्ति के ऊपर मस्तक, मुकुट और आभामंडल को भी बारीकी से तैयार किया गया है।

16 जनवरी से प्रारंभ हो जाएगी पूजा विधि

ट्रस्ट के अनुसार मूर्ति की प्रतिष्ठा पूजा विधि को 16 जनवरी से प्रारंभ कर दिया जाएगा। इसके अलावा 18 जनवरी को गर्भगृह में प्रभु श्रीराम को आसन पर स्थापित कर दिया जाएगा। प्रभु श्रीराम की मूर्ति की एक विशेषता यह भी है कि इसे अगर जल और दूध से स्नान कराया जाएगा तो इसका नकारात्मक प्रभाव पत्थर पर नहीं पड़ेगा।

साथ ही अगर कोई उस जल या दूध का आचमन करता है तो शरीर पर भी इसका दुष्प्रभाव नहीं होगा। राममंदिर परिसर में ही महर्षि वाल्मीकि, महर्षि वशिष्ठ, महर्षि विश्वामित्र, महर्षि अगस्त्य, निषाद राज, माता शबरी और देवी अहिल्या का भी मंदिर बनाया जाएगा। इसके अलावा जटायु की प्रतिमा को यहां पहले से ही स्थापित कर दिया गया है।

अद्भुत होगा श्रीराम का मंदिर, उत्तर भारत में ऐसा कोई मंदिर नही

ट्रस्ट के अनुसार श्रीराम का मंदिर अद्भुत होगा। हालांकि ये अभूतपूर्व नहीं होगा, क्योंकि दक्षिण भारत में ऐसे मंदिर हैं, मगर उत्तर भारत में बीते 300 साल में ऐसा कोई मंदिर निर्मित नहीं हुआ है। निर्माण करने वाले इंजीनियर भी ये मानते हैं। पत्थर की आयु एक हजार साल होती है। धूप हवा पानी का प्रभाव पत्थर पर पड़ता है।

जमीन के संपर्क में होने के कारण पत्थर नमी सोखता है लेकिन यहां पर पत्थर नमी नहीं सोख पाएगा, क्योंकि नीचे ग्रेनाइट लगाया गया है। इसमें लोहे का भी इस्तेमाल नहीं हुआ है, क्योंकि लोहा ताकत को कमजोर कर देता है। जमीन के नीचे एक ग्राम भी लोहा नहीं लगा है। इस प्रकार की रचना की गई है कि जैसे-जैसे आयु बढ़ेगी जमीन के नीचे एक बहुत ताकतवर चट्टान तैयार हो जाएगी। जमीन के ऊपर किसी भी प्रकार के कांक्रीट का इस्तेमाल नहीं किया गया है, क्योंकि कांक्रीट की आयु 150 साल से ज्यादा नहीं होती। हर कार्य को करते हुए आयु का विचार किया गया है।

सबको कराएंगे दर्शन, चाहे बज जाए रात के 12

ट्रस्ट की ओर से कहा गया है कि 22 जनवरी को दिन में देशभर के पांच लाख मंदिरों में भव्य पूजन अर्चन के साथ ही उल्लास मनाया जाएगा तथा शाम के समय हर सनातनी अपने अपने घर के बाहर कम से कम पांच दीपक अवश्य जलाएं। साथ ही 26 जनवरी के बाद ही लोग मंदिर में दर्शन के लिए आएं। ट्रस्ट के महासचिव ने आश्वस्त किया कि जबतक सभी लोग दर्शन नहीं कर लेंगे तबतक मंदिर के कपाट खुले रहेंगे, फिर चाहे रात के 12 ही क्यों न बज जाएं।

उत्तर प्रदेश

महाकुंभ में कैलाश मानसरोवर शिविर का आयोजन, एनआरआई हरि गुप्ता करेंगे मानसरोवर से जुड़े रहस्यों का पर्दाफाश

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महाकुंभ में एनआरआई हरि गुप्ता द्वारा कैलाश यात्रा शिविर कैलाश मानसरोवर से जुड़ी समस्याओं और रहस्यों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए महाकुंभ में एक शिविर का आयोजन किया गया है, जिसमें भारत और विदेश से कई मशहूर हस्तियों, अधिकारियों और सफल व्यवसायियों के शामिल होने की उम्मीद है। जिसमें चर्चित भारतीय फिल्म निर्देशक दुष्यंत प्रताप सिंह मौजूद रहेंगे । दुष्यंत प्रताप सिंह अपने बेहतरीन निर्देशन के साथ – साथ पटकथा लेखन के लिए भी मशहूर हैं और साथ ही अमरजीत मिश्रा ट्रस्टी (दिव्य प्रेम सेवा मिशन) हरिद्वार और मशहूर व्यवसायी एवं सामाजिक कार्यकर्ता सुधीर हलवासिया मौजूद रहेंगे। साथ ही सुधीर हलवासिया ने कहा कि कैलाश मानसरोवर शिविर हमारी भारतीय संस्कृति और मूल्यों को बढ़ावा देगा और उसमें सभी प्रकार से सहयोग करने की बात कही।

इस अवसर पर बॉलीवुड डायरेक्टर दुष्यंत प्रताप सिंह ने कहा कि किसी भी अन्य वासि भारतीयों द्वारा कैलाश मुक्ति अभियान के बैनर तले इतने बड़े अभियान का बीड़ा उठाना अपने आप में ही अद्भुत और बहुत साहस व लगन का विषय है और इस परिपेक्ष में सारे अन्य वासि भारतीयों को तकरीबन 15 से 20 अलग-अलग देशों के भारतीयों को एक झंडे तले लाना और अपने सांस्कृतिक विरासत के लिए आध्यात्मिक विरासत के लिए भोलेनाथ शिव के लिए संघर्ष शुरू करना अपने आप में बहुत ही प्रेरणादायक है और हम लोग भी इस कार्य में जो भी योगदान हमारा हो सकता है वो हम लोग अपना योगदान दे रहे हैं हरि गुप्ता के साथ वहीं दिव्य प्रेम सेवा मिशन के ट्रस्टी अमरजीत मिश्रा जी ने कहा भारत एक सांस्कृतिक व आध्यात्मिक देश के तौर पर वैश्विक रूप से सभी देशों का अगवा है और हरि गुप्ता जी ने यह जो प्रकल्प छेड़ा है l कैलाश मुक्ति अभियान वास्तव में ही बहुत प्रेरणादायक एवं एक अरुण संकल्प है और उन्होंने यह आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास व्यक्त किया की बहुत जल्द ही सभी भारतीयों को जो देश-विदेश पूरे विश्व में जहा जाएं उन्हें अपने आराध्य देव के दर्शन सुगम रूप से उपलब्ध हो सकें।

यह एक विडंबना है कि पिछले 5 सालों से भारतीय पासपोर्ट धारकों को मानसरोवर जाने की अनुमति नहीं है, जबकि अन्य देशों के नागरिक आसानी से वहां जा सकते हैं। किसी भी सरकार द्वारा किसी भी कारण से हिंदू धर्म की तीर्थयात्रा को रोकना उचित नहीं है। यह हिंदू शिवभक्तों के मानवाधिकारों के बिल्कुल खिलाफ है। जबकि भारत सरकार ने 50 किलोमीटर दूर से कैलाश पर्वत को देखने के लिए कुछ मार्ग बनाए हैं, लेकिन यह कुछ ऐसा है जैसे भोजन की थाली को देखना लेकिन उसे सूंघना, छूना, महसूस करना या खाना नहीं। जब भोजन को देखकर सामान्य भूख नहीं मिटती है l तो 50 किलोमीटर दूर से उसे देखने से आध्यात्मिक भूख कैसे मिटेगी।

भले ही यात्रा की अनुमति मिल गई हो, लेकिन वास्तविक यात्रा से भारतीय यात्रियों को कोई लाभ नहीं होगा। उन्हें अभी भी कैलाश की यात्रा के लिए नेपाल और उसके मागों पर निर्भर रहना पड़ता है। भारत से पिथौरागढ़ या सिक्किम के रास्ते बहुत लंबे और उबड़-खाबड़ रास्ते हैं। हरि गुप्ता दिल्ली से कैलाश के लिए सीधी चार्टर उड़ानें शुरू करने के इच्छुक हैं और एयरलाइन ऑपरेटरों से बातचीत कर रहे हैं। दिल्ली से कैलाश तक की केवल 500 किमी की उड़ान है।

आचार्य हरि गुप्ता विदेश में 30 से अधिक वर्षों से रह रहे हैं और एक सफल व्यवसायी है। उन्होंने भोलेनाथ ने कई बार दर्शन किए हैं और कैलाश मुक्ति के लिए आवश्यक कार्य करने के लिए मार्गदर्शन दिया है। वे इस अनुभव को भोलेनाथ की लीला के रूप में भी लिख रहे हैं। आचार्य हरि गुप्ता ने कहा कि कैलाश न केवल हिंदुओं के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि यह सिख, जैन और बौद्धों के लिए भी उतना ही महत्वपूर्ण है। ऐसा कहा जाता है कि सिखों के पहले गुरु गुरुनानक जी ने भी कैलाश की यात्रा की थी।

पहले जैन गुरु ऋषभदेव जी ने भी कैलाश की यात्रा की थी। आचार्य हरि गुप्ता को भोलेनाथ ने कई रहस्य बताए हैं जैसे पांच कैलाश हैं, जिनमें भोलेनाथ की अलग-अलग लीलाएं हैं। इनमें से एक मुख्य कैलाश वर्तमान में तिब्बत के अंतर्गत है, जो चीन के अंतर्गत आता है। उन्हें रहस्यमयी तरीके से कई लोगों से मिलने का मौका भी मिलता है, जिनमें से एक ने भगवान शिव के एक मंदिर के बारे में बताया है जो कैलाश के पास है और जिसके बारे में शायद ही कोई जानता हो, जिसकी ऑडियो रिकॉर्डिंग उनके पास है।

यह अद्भुत शिव मंदिर पास के शहर में एक पहाड़ पर है और सीढ़ियाँ चढ़कर पहुँचा जा सकता है। इसके एक तरफ पानी का झरना है। इसकी परिक्रमा के चारों ओर गहरी घाटी है। भक्तों को खीर का प्रसाद दिया जाता है जिसे चावल को सिर्फ़ इतना पकाकर मीठा किया जाता है कि वह मीठा हो जाए और उसमें कोई मीठा पदार्थ नहीं मिलाया जाता। आगंतुकों को कभी-कभी चार काले कुत्ते भी दिखाई देते हैं जिन्हें चार वेदों का प्रतीक माना जाता है। मंदिर को हर साल पशुपति नाथ मंदिर से पहला एकमुखी रुद्राक्ष भी मिलता है जिस पर नेपाल के राजा का पहला अधिकार होता है।

कुछ साल पहले कैलाश की यात्रा करने वाले संजय जैन ने उन्हें मानसरोवर ताल के बारे में कुछ रहस्य भी बताए हैं। उन्होंने बताया कि मानसरोवर झील में कई पत्थर हैं जिन पर ओम, सांप या डमरू के प्राकृतिक निशान हैं। उन्होंने न केवल उन्हें अपनी आँखों से देखा है बल्कि उन्हें अपने साथ भी लाया है। सत्यापन के लिए दिल्ली में भी ऐसे दो पत्थर उपलब्ध हैं।

दूसरा रहस्य यह है कि मानसरोवर ताल के पास पक्षी किसी से भी भोजन ले लेते हैं जबकि राक्षस ताल के पास पक्षी कोई भी भोजन स्वीकार नहीं करते। यह जानकर आश्चर्य होता है कि यहाँ दो ताल हैं, एक में मीठा और साफ पानी है जबकि दूसरे में वह नहीं है। एक में लहरें हैं और दूसरे में नहीं। एक बर्फ में जम जाता है जबकि दूसरा नहीं। भोलेनाथ द्वारा दी गई एक बहुत ही महत्वपूर्ण अंत र्दृष्टि यह है कि जब हम गूगल मैप को 180 डिग्री घुमाते हैं- तो हम झीलों के आकार को शिवलिंग और योनि के रूप में पहचान सकते हैं।

आचार्य हरि गुप्ता सभी संतों से संपर्क कर रहे हैं और उन्हें इसके लिए आवाज उठाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। उन्होंने इसके लिए सांसदों को ईमेल के जरिए पत्र भी भेजे हैं। भोलेनाथ की प्रेरणा से उन्होंने जय कैलाश नाम से एक भजन भी लिखा है जिसमें भगवान शिव, कैलाश पर्वत और उसके महत्व के बारे में आसानी से बताया गया है। यह गीत Youtube.com/@JaiKailasha पर है। गौरतलब है कि 60 साल के अपने पूरे जीवन में उन्होंने शायद ही कभी संगीत सुना हो और कभी कोई कविता या गीत नहीं लिखा हो। आचार्य हरि गुप्ता इस उद्देश्य के लिए www.kailashmukti.com के नाम से एक वेबसाइट भी बना रहे हैं।

कैलाश आने वाले कई लोगों ने बताया है कि मानसरोवर और उसके आस-पास के स्थानों पर तीर्थयात्रियों के ठहरने, शौचालय, चिकित्सा और यात्रा के लिए शायद ही कोई सुविधा है। उनका इरादा तीर्थयात्रियों के लिए वहां भी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने का है और इसके लिए वे भारत और चीन सरकार के साथ मिलकर काम करना चाहते हैं। आचार्य हरि गुप्ता को पूरा विश्वास है कि यह काम जल्द ही पूरा हो जाएगा क्योंकि इस आंदोलन का मार्गदर्शन स्वयं भोलेनाथ कर रहे हैं। यह भोलेनाथ की ही कृपा है कि 4 महीने पहले एक व्यक्ति द्वारा शुरू किया गया प्रयास अब करोड़ों लोगों तक पहुँच रहा है। वे सभी शिवभक्तों, मीडिया, अधिकारियों और राजनेताओं से अपील कर रहे हैं कि वे इस बारे में आवाज उठाएं और इसे जल्द से जल्द हल करने के लिए मिलकर काम करें ताकि शिवभक्त बिना किसी प्रतिबंध, भय या परेशानी के इस पवित्र स्थान की यात्रा करके अपने इष्ट देव की पूजा से आध्यात्मिक लाभ उठाएँ।

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