आध्यात्म
महाकुम्भ में सभी अखाड़ों का छावनी प्रवेश हुआ पूरा, श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन का छावनी क्षेत्र में हुआ प्रवेश
महाकुम्भ नगर। प्रयागराज महाकुम्भ में सनातन के ध्वज वाहक 13 अखाड़ों की छावनी क्षेत्र में मौजूदगी दर्ज हो गई। रविवार को श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन की भव्य छावनी प्रवेश शोभा यात्रा निकाली गई जिसमें हजारों संतों ने हिस्सा लिया। रिमझिम बारिश के बावजूद खराब मौसम पर आस्था और अध्यात्म का उत्साह भारी पड़ा।
महाकुम्भ क्षेत्र में सभी 13 अखाड़ों का जमघट, श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन भी पहुंचा छावनी क्षेत्र
जनवरी 2025 में आयोजित होने जा रहे महाकुम्भ में आस्था और अध्यात्म का शहर महाकुम्भ नगर सज संवर कर तैयार है। महाकुम्भ क्षेत्र में सनातन धर्म के सभी सम्प्रदायों सिरमौर भी छावनी क्षेत्र में पहुंच गए हैं। इसी क्रम में सबसे आखिर में श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन निर्वाण ने पूरी भव्यता के साथ छावनी क्षेत्र में प्रवेश किया। अखाड़े के सचिव व्यास मुनि का कहना है कि छावनी प्रवेश यात्रा में दो हजार से अधिक महंत और संत महात्माओं ने हिस्सा लिया। राम बाग फ्लाई ओवर से प्रवेश यात्रा की शुरुआत हुई जो शहर के विभिन्न मार्गों में होते हुए सेक्टर 20 में स्थित अखाड़े की छावनी क्षेत्र पहुंची। प्रवेश यात्रा में मार्गों के दोनो तरफ खड़े लोगों ने संतों को नमन करते हुए पुष्प वर्षा से उनका स्वागत किया। इसके साथ ही अब महाकुंभ क्षेत्र में सभी अखाड़ों की छावनी प्रवेश का सिलसिला भी पूरा हो गया है।
प्रवेश यात्रा में दिखा अध्यात्म और राष्ट्रवाद का मेल
श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन निर्वाण छावनी प्रवेश यात्रा में अध्यात्म और राष्ट्रवाद का अद्भुत संगम भी देखने को मिला। छावनी प्रवेश यात्रा में रथ, बग्घी और घोड़ों पर सवार साधु संतों का समूह कीडगंज स्थित अखाड़े के मुख्यालय से राम बाग फ्लाई ओवर होता हुआ निकला। प्रवेश यात्रा में आगे अखाड़े में इष्ट देवता भगवान चंद्र देव की पालकी चल रही थी। उसके बाद अखाड़े में रमता पंच थे। यात्रा में मौजूद बड़ी संख्या में ध्वज और पताकाओं ने इसे और मनमोहक बना दिया। इन सबके साथ भारत की शान तिरंगे झंडे को भी इसमें स्थान दिया गया था। तिरंगे की 130 फीट लंबी पट्टिका भी प्रवेश यात्रा के साथ चल रही थी। यात्रा के दौरान शुरू हुई रिमझिम बारिश ने भी उत्साह में कोई बाधा नहीं डाली। यात्रा में पहली बार अयोध्या के श्री राम मंदिर का मॉडल भी झांकी के रूप में शामिल हुआ।
आध्यात्म
मकर संक्रांति पर क्यों खाते है खिचड़ी, जानें इसका महत्व और लाभ
नई दिल्ली। सनातन धर्म में मकर संक्रांति का पर्व बहुत महत्वपूर्ण है। इस साल यह त्योहार 15 जनवरी को मनाया जाएगा। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सूर्य जब मकर राशि में जातें हैं तो उसे मकर संक्रांति कहते हैं।
इस बार सूर्य और शनि का मिलन भी हो रहा है। ऐसे में यह संक्राति और भी खास रहेगी। क्योंकि, शनि भी मकर राशि में प्रवेश करेंगे। इस दिन दान पुण्य करने और खिचड़ी खिलाने का विशेष महत्व हैं।
मकर संक्रांति पर खिचड़ी का महत्व
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक मकर संक्रांति पर जो खिचड़ी बनाई जाती है उसका संबंध किसी न किसी ग्रह से रहता है। जैसे खिचड़ी में इस्तेमाल होने वाले चावल का संबंध चंद्रमा से होता है। खिचड़ी में डाली जाने वाली उड़द की दाल का संबंध शनिदेव, हल्दी का संबंध गुरु देव से और हरी सब्जियों का संबंध बुधदेव से माना गया है। खिचड़ी में देशी घी का संबंध सूर्यदेव से होता है। इसीलिए मकर संक्रांति की खिचड़ी को बेहद खास माना जाता है।
मकर संक्रांति पर खिचड़ी खाने के साथ साथ किसी ब्राह्मण को दान भी जरूर करें। उन्हें घर बुलाकर खिचड़ी का सेवन करें इसके बाद कच्चे दाल, चावल, हल्दी, नमक, हरी सब्जियों का दान भी जरुर करें। मान्यता है कि खिचड़ी खाने से आरोग्य में वृद्धि होती है।
मकर संक्रांति की पूजा विधि
इस दिन भगवान सूर्य के साथ-साथ भगवान विष्णु की भी पूजा अर्चना करनी चाहिए। यह पर्व भगवान सूर्य नारायण को समर्पित है। इस दिन सूर्य देव को तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें गुड, गुलाब की पत्तियां डालकर अर्घ्य दें।
इस दिन गुड़, तिल और खिचड़ी का सेवन भी जरूर करें। साथ ही गरीबों को भी कुछ दान जरुर दें। इस दिन गायत्री मंत्र का जप करना बहुत ही शुभ रहेगा। इस दिन भगवान सूर्य नारायण के मंत्रों का भी जप करना चाहिए।
कैसे शुरू हुई खिचड़ी की परंपरा
कई मान्यताओं के अनुसार, खिलजी से युद्ध के दौरान नाथ योगी बहुत कमजोर हो गए और भूख के कारण उनकी तबीयत बिगड़ने लगी। तब गोरखनाथ ने दाल चावल और सब्जी को एक साथ पकाकर सभी को खिलाई। जिससे नाथ योगियों को तुरंत ऊर्जा मिली साथ ही उनकी सेहत में भी सुधार हुआ। तभी से खिचड़ी बनाने की परंपरा चली आ रही है।
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