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उत्तराखंड

रक्षाबंधन : देश का वो राज्य जहां पत्थर सिर्फ पूजे नहीं मारे भी जाते हैं

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रक्षाबंधन के पावन पर्व पर उत्तराखंड में देवीधुरा क्षेत्र में हर्षोल्लास के साथ बग्वाल त्यौहार मनाया गया। बग्वाल उत्सव देवभूमि में पौराणिक काल से खेले जाने वाले ‘पाषाण युद्ध‘ को दिखाती एक परंपरा है। इस उत्सव में देश विदेश से भारी संख्या में लोग देवीधुरा पहुंचकर जयकारे लगाते हुए मेले का आनंद लेते हैं।

हर साल रक्षाबंधन के मौके पर उत्तराखंड के चंपावत ज़िले में बग्वाल खेला जाता है। इस खेल में शामिल होने वाले लोग गुट बनाकर बंट जाते हैं और एक-दूसरे पर जमकर पत्थरबाजी करते हैं। पत्थरबाजी करने के बाद सभी गुट के लोग आपस में गले मिलते हैं और खुशियों का इज़हार करते हैं।

वर्ष 2018 में बग्वाली खेल के दौरान करीब 60 लोगों के चोटिल होने की खबर भी आई थी।

 

उत्तराखंड

शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद

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उत्तराखंड। केदारनाथ धाम में भाई दूज के अवसर पर श्रद्धालुओं के लिए शीतकाल का आगमन हो चुका है। बाबा केदार के कपाट रविवार सुबह 8.30 बजे विधि-विधान के साथ बंद कर दिए गए। इसके साथ ही इस साल चार धाम यात्रा ठहर जाएगी। ठंड के इस मौसम में श्रद्धालु अब अगले वर्ष की प्रतीक्षा करेंगे, जब कपाट फिर से खोलेंगे। मंदिर के पट बंद होने के बाद बाबा की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल की ओर रवाना हो गई है।इसके तहत बाबा केदार के ज्योतिर्लिंग को समाधिरूप देकर शीतकाल के लिए कपाट बंद किए गए। कपाट बंद होते ही बाबा केदार की चल उत्सव विग्रह डोली ने अपने शीतकालीन गद्दीस्थल, ओंकारेश्वर मंदिर, उखीमठ के लिए प्रस्थान किया।

बता दें कि हर साल शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद कर दिया जाते हैं. इसके बाद बाबा केदारनाथ की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ के लिए रवाना होती है. अगले 6 महीने तक बाबा केदार की पूजा-अर्चना शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में ही होती है.

उत्तरकाशी ज़िले में स्थिति उत्तराखंड के चार धामों में से एक गंगोत्री में मां गंगा की पूजा होती है। यहीं से आगे गोमुख है, जहां से गंगा का उदगम है। सबसे पहले गंगोत्री के कपाट बंद हुए हैं। अब आज केदारनाथ के साथ-साथ यमुनोत्री के कपाट बंद होंगे। उसके बाद आखिर में बदरीनाथ धाम के कपाट बंद किए जाएंगे।

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