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उत्तर प्रदेश

पौष पूर्णिमा स्नान पर्व से प्रयागराज महाकुम्भ का शंखनाद , सनातन की एकता से मिला महाकुम्भ को विस्तार

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महाकुम्भ नगर। त्रिवेणी के पावन तट पर महाकुम्भ की शुरुआत भारत की सनातन परंपरा का उद्घोष और विश्व के सबसे बड़े सांस्कृतिक समागम का शंखनाद है। इसके अंदर अंतर्निहित है अनेकता में एकता का वह संदेश जो महान भारतीय संस्कृति का मूल है। महाकुम्भ एक धार्मिक आयोजन का पर्व मात्र नहीं है। आस्था और अध्यात्म के इस महापर्व में शैव , वैष्णव और उदासीन भक्ति धाराओं का मेल होता है। महाकुम्भ में शैव परंपरा के अंतर्गत आने वाले सात अखाड़े , वैष्णव परम्परा का अनुगमन करने वाले तीन अखाड़ों के साथ उदासीन सम्प्रदाय की विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व करने वाले श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन और नया उदासीन अखाड़ा निर्वाण का संगम होता है। इसी तरह श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल की सहजता और सेवाभाव के गुरुओं की वाणी यहां सभी अखाड़ों को साथ लेकर विभिन्नता में एकता का संदेश देती है। एकता के महाकुम्भ का भाव भी इसी में सम्मिलित है।

कल्पवास की परम्परा में मिटी असमानता और जातिगत भेदभाव

प्रयागराज महाकुंभ में वैसे 144 वर्ष बाद विशिष्ट खगोलीय संयोग बन रहा है जिसके चलते ग्रहों और नक्षत्रों के जानकार इसे अपने दृष्टिकोण से देखते हैं। सिद्ध महामृत्युंजय संस्थान के पीठाधीश्वर स्वामी सहजानंद सरस्वती जी बताते हैं कि महाकुम्भ एक खगोलीय घटना मात्र नहीं है। वसुधैव कुटुंबकम् का विचार लेकर सबको अपने में समाहित कर लेने वाले सनातन के इस महापर्व में जातीय भेदभाव, छुआछूत, ऊंच-नीच सब अप्रासंगिक हो जाते हैं। सभी जाति से जुड़े अमीर गरीब एक साथ मिलकर यहां पुण्य की डुबकी लगाते हैं। पौष पूर्णिमा से शुरू हुए प्रयागराज महाकुम्भ के साथ यहां कल्पवास की भी शुरुआत हुई है। महाकुम्भ में एक महीने तक तंबुओं में रहकर संयम और त्याग की साधना करने वाले कल्पवासी सभी जातियों से आते हैं। सभी तरह का ऊंच नीच का भेदभाव यहां नहीं दिखता। सब साथ में गंगा स्नान कर सामूहिक कीर्तन भजन में शामिल होते हैं। जातीय , वर्गीय एकता और समन्वय का यह विचार ही महाकुम्भ को एकता के महाकुम्भ के रूप में स्थापित करता है।

व्यक्ति नहीं समष्टि को साथ लेकर चलने का संकल्प है महाकुम्भ

पौष पूर्णिमा के साथ शुरू हुए प्रयागराज महाकुम्भ में सबको साथ लेकर चलने का संकल्प दिखता है। महाकुम्भ में तंबुओं में एक महीने तक रहकर संयम और त्याग के साथ जप, तप और साधना करने वाले कल्पवासियों की संख्या 7 लाख से अधिक है जो उस ग्राम्य संस्कृति का हिस्सा है जो कृषि प्रधान भारत का प्रतिनिधित्व करता है। इसी महाकुम्भ में डोम सिटी और निजी टेंट सिटी में रहकर पुण्य की डुबकी लगाने आने वाला अभिजात्य वर्ग भी है। लेकिन सभी पुण्य अर्जित अर्जित करने का भाव लेकर आए हैं। इस संकल्प में भी एकता और समन्वय को भी स्थान दिया गया है जो महाकुम्भ में ही संभव लगता है।

हर शिविर, आयोजन में विश्व कल्याण और प्राणियों की सद्भावना का उद्घोष

महाकुम्भ सनातन का पर्व और गर्व है। वह सनातन संस्कृति जो वसुधैव कुटुंबकम् की अवधारणा पर टिकी है। उसी की प्रेरणा से महाकुम्भ में अखाड़ों, साधु संतों और संस्थाओं के आयोजन में भी केंद्र में व्यक्ति नहीं समष्टि है, समस्त मानवता है। श्री पंच दशनाम आवाहन अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अरुण गिरी कहते हैं कि महाकुम्भ में स्थापित हर शिविर और आयोजन में हर पूजा-प्रार्थना में ‘विश्व का कल्याण हो, प्राणियों में सद्भावना हो ‘ का उदघोष और सामाजिक सरोकारों की चिंता है । पहली बार अखाड़ों ने जिस तरह से पर्यावरण प्रदूषण की चिंता को अपनी बैठकों और छावनी प्रवेश यात्रा में स्थान दिया गया वह इसी का संकेत है।

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उत्तर प्रदेश

भाजपा ने मिल्कीपुर विधानसभा सीट के लिए उतारा अपना प्रत्याशी, सपा के अजीत प्रसाद को देंगे चुनौती

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मिल्कीपुर। अयोध्या की मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव के लिए बीजेपी ने भी अपने पत्ते खोल दिए हैं. बीजेपी ने चंद्रभान पासवान को प्रत्याशी बनाया है, जो सपा के अजीत प्रसाद को चुनौती देंगे. इस तरह मिल्कीपुर उप-चुनाव की लड़ाई बीजेपी बनाम सपा ही नहीं पासी बनाम पासी की हो गई है. ऐसे में सवाल उठता है कि कौन हैं चंद्रभान पासवान, जिन्हें बीजेपी ने उपचुनाव में उम्मीदवार बनाया है?

बीजेपी के लिए मिल्कीपुर सीट नाक का सवाल बनी हुई है. 2024 में अयोध्या लोकसभा सीट हार जाने के बाद बीजेपी हर हाल में मिल्कीपुर विधानसभा उपचुनाव को जीतकर सपा को झटका देना चाहती है. ऐसे में सपा ने फैजाबाद से सांसद अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद को मैदान में उतारा है तो बीजेपी ने अब चंद्रभान पासवान पर दांव खेला है.

मिल्कीपुर विधानसभा सीट से बीजेपी से टिकट दावेदारों में पूर्व विधायक बाबा गोरखनाथ, पूर्व विधायक रामू प्रियदर्शी, जिला महामंत्री राधेश्याम, अनुसूचित जाति मोर्चा के कोषाध्यक्ष चंद्रकेश रावत और चंद्रभान पासवान शामिल थे. इसके अलावा सुरेंद्र कुमार रावत भी चुनाव लड़ने के फिराक में थे. बीजेपी ने तमाम मंथन और विचार-विमर्श के बाद बाबा गोरखनाथ के बजाय चंद्रभान पासवान को उतारा है.

कौन हैं चंद्रभान पासवान?

चंद्रभान पासवान अयोध्या जिले के रुदौली कस्बे से सटे हुए गांव परसौली के रहने वाले हैं. उनके पिता का नाम बाबा राम लखन पासवान है और उनकी शादी कंचन पासवान से हुई है. शुरुआती पढ़ाई उन्होंने रुदौली में किया और उसके बाद फैजाबाद के साकेत विश्वविद्यालय से एम कॉम और एलएलबी की पढ़ाई की है. बीजेपी के साथ लंबे समय से जुड़े हुए हैं. अयोध्या में बीजेपी जिला कार्यसमिति के चंद्रभान सदस्य हैं. गुजरात के सूरत में काम करते थे, लेकिन अब रुदौली में उनका कपड़े का कारोबार है. रुदौली बाजार में बाबा क्लाथ हाउस के नाम से कपड़े का शोरूम है.

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