आध्यात्म
करतारपुर कॉरिडोर की तर्ज पर खोली जाएगी शारदा पीठ: अमित शाह
नई दिल्ली/ कुपवाड़ा। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बुधवार को जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में मां शारदा के मंदिर का उद्घाटन किया। इस दौरान एक अहम घोषणा करते हुए उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार करतारपुर कॉरिडोर की तर्ज पर शारदा पीठ को खोलने की दिशा में काम करेगी। इस एलान का पीओके के एक्टिविस्ट ने स्वागत किया है।
शारदा पीठ में अभी तक क्या हुआ है?
दशकों बाद नियंत्रण रेखा पर स्थित माता शारदा के नवनिर्मित मंदिर में पंचलोह मूर्ति स्थापित होते ही इतिहास रच गया है। नवनिर्मित मंदिर का केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बुधवार को एलजी मनोज सिन्हा के साथ वर्चुअली उद्घाटन किया है। मंदिर के खुलते ही लोग झूमते नजर आए। उन्होंने पटाखों और फूलों की बारिश कर कश्मीरी पंडित समुदाय का स्वागत किया है।
इसको लेकर क्या घोषणा हुई?
उद्घाटन समारोह के मौके पर ऑनलाइन माध्यम से कार्यक्रम में शिरकत कर रहे गृह मंत्री अमित शाह ने करतारपुर कॉरिडोर की तर्ज पर शारदा पीठ कॉरिडोर को खोलने की बड़ी घोषणा की। उन्होंने कहा कि इस मंदिर की वास्तुकला और निर्माण शारदा पीठ के तत्वाधान में पौराणिक शास्त्रों के अनुसार किया गया है।
श्रृंगेरी मठ द्वारा दान की गई शारदा मां की मूर्ति को यहां प्रतिष्ठापित किया गया है। कुपवाड़ा में मां शारदा के मंदिर का पुनर्निर्माण होना शारदा-सभ्यता की खोज व शारदा-लिपि के संवर्धन की दिशा में एक आवश्यक एवं महत्वपूर्ण कदम है।
मंदिर का निर्माण कब शुरू हुआ था?
हाल में ही उद्घाटन किए गए मंदिर का निर्माण कार्य पिछले साल ही शारदा यात्रा मंदिर समिति ने शुरू कराया था। इससे पहले समिति ने लगभग एक कनाल के भूखंड के सीमांकन के बाद 2 दिसंबर 2021 को भूमि पूजन किया था।
जिस भूमि पर यह मंदिर बनाया गया है, उसे स्थानीय लोगों के सहयोग से वापस लिया गया था। इसमें धर्मशाला और एक गुरुद्वारा हुआ करता था। इन्हें 1947 में कबायलियों ने जला दिया गया था और विभाजन के बाद 1948 में शारदा पीठ की तीर्थ यात्रा बंद कर दी गई थी।
पिछले साल स्थानीय मुस्लिम समुदाय के लोगों ने धर्मशाला की जमीन कश्मीरी पंडितों को लौटाई थी और सेव शारदा सीमिति कश्मीर के सदस्यों ने जिला प्रशासन और स्थानीय लोगों की मदद से यहां एक गुरुद्वारा, शारदा मंदिर और एक मस्जिद का निर्माण किया।
जम्मू कश्मीर में धर्मस्थलों का कैसे हो रहा है विकास?
गृह मंत्री शाह ने जानकारी दी कि सरकार ने संस्कृति के पुनरुद्धार सहित जम्मू-कश्मीर के सभी क्षेत्रों में पहल की है। इसके तहत 123 चिह्नित स्थानों का व्यवस्थित रूप से जीर्णोद्धार और मरम्मत का काम चल रहा है, जिनमें कई मंदिर और सूफी स्थान शामिल हैं।
65 करोड़ रुपए की लागत से इसके पहले चरण में 35 स्थानों का पुनरुद्धार किया जा रहा है। 75 धार्मिक और सूफी संतों के स्थानों की पहचान करके 31 मेगा सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए गए हैं।
राजनैतिक दलों की प्रतिक्रिया
पीडीपी अध्यक्ष एवं राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कहा कि नियंत्रण रेखा से सटे टीटवाल इलाके में नवनिर्मित शारदा मंदिर का उद्घाटन अच्छा कदम है लेकिन इसे तीर्थ तक ही नहीं सीमित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि कश्मीरी पंडित समुदाय के लोग काफी समय से इस शारदा माता मंदिर को खोलना चाहते थे।
वहीं, पीओके के पॉलिटिकल एक्टिविस्ट जमील मकसूद पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (POK) में शारदा पीठ कॉरिडोर खोलने की भारत की योजना की सराहना की। यूनाइटेड कश्मीर पीपुल्स नेशनल पार्टी के पदाधिकारी मकसूद ने कहा, ‘यह एक स्वागत योग्य कदम है, लेकिन इससे पहले नियंत्रण रेखा (LOC) खोली जानी चाहिए और यात्रा प्रतिबंधों में ढील दी जानी चाहिए।
उन्होंने कहा यह पीओके और भारत के लोगों के बीच धार्मिक सद्भाव लाएगा और हिंदू, मुस्लिम और सिख सहित अल्पसंख्यक समुदाय को लाभान्वित करेगा।
शारदा समिति के अध्यक्ष रविंदर पंडिता ने कहा कि कोई नहीं यकीन कर रहा था कि यहां मंदिर बनेगा। ऐसा इसलिए हो पाया क्योंकि कश्मीर ऋषि मुनियों की धरती रही है। आज का दिन बड़ा एतिहासिक है, क्योंकि मंदिर और गुरुद्वारे का शुभारंभ हुआ है। यह मंदिर ही नहीं बल्कि एक बहुमूल्य विरासत है।
कब से हो रही है कॉरिडोर की मांग?
कश्मीरी पंडित वर्षों से धार्मिक तीर्थयात्रा के लिए करतारपुर जैसे कॉरिडोर की मांग कर रहे हैं। 76 साल बाद ऐसा है कि देवी शारदा का यह मंदिर इस ऐतिहासिक क्षेत्र में बनाया गया है।
मंदिर के जिर्णोद्धार कार्य शुरू होने पर शारदा समिति के प्रमुख और संस्थापक रविंदर पंडिता ने कहा था, हम मांग करते हैं कि हमारे बड़े शारदा मिशन में करतारपुर कॉरिडोर की तर्ज पर तीर्थयात्रा के लिए शारदा पीठ खोला जाना चाहिए। टीटवाल में यह आधार शिविर शारदा पीठ यात्रा के लिए हमारे पारंपरिक मार्गों में से एक को पुन: प्राप्त करेगा और दुनिया भर में धार्मिक पर्यटन को आमंत्रित करेगा।
कॉरिडोर खुलने से क्या बदलेगा?
तीर्थयात्रा के लिए गलियारा खोलना अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद दोनों देशों के बीच संपर्क बहाल करने के लिए पहला बड़ा कदम होगा। इस कदम से टीटवाल से सटी नियंत्रण रेखा को फिर से खोलने की आवश्यकता होगी। 2019 में एलओसी पार व्यापार और बस सेवाओं को अनिश्चित काल के लिए बंद कर दिया गया था।
शारदा पीठ का महत्व क्या है?
शारदा पीठ नियंत्रण रेखा (LOC) के सटा एक खंडहर मंदिर है। यह धर्मस्थल नीलम घाटी में पीओके के शारदा गांव में स्थित है। विभाजन के बाद, पवित्र स्थल भारतीय सीमा के दूसरी ओर बना रहा और भारतीय तीर्थयात्रियों की पहुंच से दूर हो गया। यहां से पीओके के सबसे बड़े शहर मुजफ्फराबाद की दूरी लगभग 160 किमी है।
शारदा पीठ को कश्मीरी पंडित शिव का निवास मानते हैं। पीठ मंदिर कश्मीरी पंडितों की आस्था और श्रद्धा का प्रमुख केंद्र रहा है। यह कश्मीर की संस्कृति और विरासत से भी जुड़ाव रखता है। यहां आदि शंकराचार्य आसीन हुए थे। इस पर आसीन होने की प्रक्रिया बहुत कठिन है।
आसीन होने के लिए भारत के विभिन्न मत-मतांतरों और श्रेष्ठ विद्वानों से शास्त्रार्थ में विजयी होना पड़ता है। उन्होंने मंदिर में एक धार्मिक सत्र में चर्चा में भी भाग लिया था। इस वजह से यह जगह बेहद महत्वपूर्ण है।
एक जमाने में भारतीय उपमहाद्वीप में शारदा पीठ ज्ञान का केंद्र था। शास्त्रों और आध्यात्मिक ज्ञान की तलाश में देशभर के विद्वान यहां आते थे। शारदा लिपि कश्मीर की मूल लिपि है, जिसका नाम भी मां के नाम पर रखा गया है। ये महाशक्ति पीठों में से एक है। मान्यताओं के अनुसार मां सती का दाहिना हाथ यहां गिरा था।
आध्यात्म
महाकुम्भ 2025: बड़े हनुमान मंदिर में षोडशोपचार पूजा का है विशेष महत्व, पूरी होती है हर कामना
महाकुम्भनगर| प्रयागराज में संगम तट पर स्थित बड़े हनुमान मंदिर का कॉरिडोर बनकर तैयार हो गया है। यहां आने वाले करोड़ों श्रद्धालु यहां विभिन्न पूजा विधियों के माध्यम से हनुमान जी की अराधना करते हैं। इसी क्रम में यहां षोडशोपचार पूजा का भी विशेष महत्व है। षोडशोपचार पूजा करने वालों की हर कामना पूरी होती है, जबकि उनके सभी संकट भी टल जाते हैं। मंदिर के महंत और श्रीमठ बाघंबरी पीठाधीश्वर बलवीर गिरी जी महाराज ने इस पूजा विधि के विषय में संक्षेप में जानकारी दी और यह भी खुलासा किया कि हाल ही में प्रयागराज दौरे पर आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी मंदिर में षोडशोपचार विधि से पूजा कराई गई। उन्हें हनुमान जी के गले में पड़ा विशिष्ट गौरीशंकर रुद्राक्ष भी भेंट किया गया। उन्होंने भव्य और दिव्य महाकुम्भ के आयोजन के लिए पीएम मोदी और सीएम योगी का आभार भी जताया।
16 पदार्थों से ईष्ट की कराई गई पूजा
लेटे हनुमान मंदिर के महंत एवं श्रीमठ बाघंबरी पीठाधीश्वर बलवीर गिरी जी महाराज ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक यजमान की तरह महाकुम्भ से पहले विशेष पूजन किया। प्रधानमंत्री का समय बहुत महत्वपूर्ण था, लेकिन कम समय में भी उनको षोडशोपचार की पूजा कराई गई। पीएम ने हनुमान जी को कुमकुम, रोली, चावल, अक्षत और सिंदूर अर्पित किया। यह बेहद विशिष्ट पूजा होती है, जिसमें 16 पदार्थों से ईष्ट की आराधना की। इस पूजा का विशेष महत्व है। इससे संकल्प सिद्धि होती है, पुण्य वृद्धि होती है, मंगलकामनाओं की पूर्ति होती और सुख, संपदा, वैभव मिलता है। हनुमान जी संकट मोचक कहे जाते हैं तो इस विधि से हनुमान जी का पूजन करना समस्त संकटों का हरण होता है। उन्होंने बताया कि पीएम को पूजा संपन्न होने के बाद बड़े हनुमान के गले का विशिष्ट रुद्राक्ष गौरीशंकर भी पहनाया गया। यह विशिष्ट रुद्राक्ष शिव और पार्वती का स्वरूप है, जो हनुमान जी के गले में सुशोभित होता है।
सभी को प्रेरित करने वाला है पीएम का आचरण
उन्होंने बताया कि पूजा के दौरान प्रधानमंत्री के चेहरे पर संतों का ओज नजर आ रहा था। सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि उनमें संतों के लिए विनय का भाव था। आमतौर पर लोग पूजा करने के बाद साधु संतों को धन्यवाद नहीं बोलते, लेकिन पीएम ने पूजा संपन्न होने के बाद पूरे विनय के साथ धन्यवाद कहा जो सभी को प्रेरित करने वाला है। उन्होंने बताया कि पीएम ने नवनिर्मित कॉरिडोर में श्रद्धालुओं की सुविधा को लेकर भी अपनी रुचि दिखाई और मंदिर प्रशासन से श्रद्धालुओं के आने और जाने के विषय में जानकारी ली। वह एक अभिभावक के रूप में नजर आए, जिन्हें संपूर्ण राष्ट्र की चिंता है।
जो सीएम योगी ने प्रयागराज के लिए किया, वो किसी ने नहीं किया
बलवीर गिरी महाराज ने सीएम योगी की भी तारीफ की। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने प्रयागराज और संगम के विषय में जितना सोचा, आज से पहले किसी ने नहीं सोचा। संत जीवन में बहुत से लोगों को बड़े-बड़े पदों पर पहुंचते देखा, लेकिन मुख्यमंत्री जी जैसा व्यक्तित्व कभी नहीं देखने को मिला। वो जब भी प्रयागराज आते हैं, मंदिर अवश्य आते हैं और यहां भी वह हमेशा यजमान की भूमिका में रहते हैं। हमारे लिए वह बड़े भ्राता की तरह है। हालांकि, उनकी भाव भंगिमाएं सिर्फ मंदिर या मठ के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश के लिए हैं। वो हमेशा यही पूछते हैं कि प्रयागराज कैसा चल रहा है। किसी मुख्यमंत्री में इस तरह के विचार होना किसी भी प्रांत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
स्वच्छता का भी दिया संदेश
उन्होंने महाकुम्भ में आने वाले करोड़ों श्रद्धालुओं को संदेश भी दिया। उन्होंने कहा कि महाकुम्भ को स्वच्छ महाकुम्भ बनाने का जिम्मा सिर्फ सरकार और प्रशासन का नहीं है, बल्कि श्रद्धालुओं का भी है। मेरी सभी तीर्थयात्रियों से एक ही अपील है कि महाकुम्भ के दौरान स्नान के बाद अपने कपड़े, पुष्प और पन्नियां नदियों में और न ही तीर्थस्थल में अर्पण न करें। प्रयाग और गंगा का नाम लेने से ही पाप कट जाते हैं। माघ मास में यहां एक कदम चलने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। यहां करोड़ों तीर्थ समाहित हैं। इसकी पवित्रता के लिए अधिक से अधिक प्रयास करें। तीर्थ का सम्मान करेंगे तो तीर्थ भी आपको सम्मान प्रदान करेंगे। स्नान के समय प्रयाग की धरा करोड़ों लोगों को मुक्ति प्रदान करती है। यहां ज्ञानी को भी और अज्ञानी को भी एक बराबर फल मिलता है।
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