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महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों में अदालतों को संवेदनशील होना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने महिला अपराधों से जुड़े मामलों में सुनवाई को लेकर अहम टिप्पणी की है। शीर्ष कोर्ट ने कहा है कि अदालतों को महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों की सुनवाई के दौरान संवेदनशील होना चाहिए।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने शुक्रवार को मामले में फैसला सुनाया था। साथ ही अदालत ने एक व्यक्ति और उसकी मां द्वारा अपनी पत्नी के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार करने की सजा के खिलाफ दायर अपील को खारिज कर दिया। बता दें कि पीड़ित पत्नी की जहर के कारण मृत्यु हो गई थी।
अपील खारिज करते हुए शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि अदालतों से यह उम्मीद की जाती है कि अदालतें अपराधियों को प्रक्रियात्मक अपूर्ण जांच या सबूतों में कमियों के कारण सजा से बचने नहीं देंगी। अगर ऐसा होगा तो पीड़ित पूरी तरह हतोत्साहित हो जाएंगे कि अपराधियों को सजा नहीं मिलेगी।
बता दें कि शीर्ष कोर्ट ने यह फैसला उत्तराखंड हाई कोर्ट के मार्च 2014 के आदेश को चुनौती देने वाली दो दोषियों की अपील पर दिया है। उत्तराखंड हाई कोर्ट ने इस मामले में निचली अदालत के फैसले को कायम रखा था। निचली अदालत ने 2007 में दर्ज मामले में मृतका के पति और सास को दोषी ठहराया था।
निचली अदालत ने मृतका के पति बलवीर सिंह को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) और 498-ए (एक विवाहित महिला के साथ क्रूरता करना) के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराया गया था। साथ ही मृतका की सास को आईपीसी की धारा 498-ए (किसी महिला के पति या पति के रिश्तेदार द्वारा उसके साथ क्रूरता करना) के तहत दोषी ठहराया गया था।
शीर्ष अदालत में दी गई दलीलों के मुताबिक, मृतका का विवाह दिसंबर 1997 में बलवीर सिंह से शादी की थी। वहीं, जून 2007 में, उसके पिता ने एक मजिस्ट्रेट अदालत में एक आवेदन दायर किया था जिसमें मई 2007 में संदिग्ध परिस्थितियों में उनकी बेटी की मौत के संबंध में पुलिस को एफआईआर दर्ज करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।
बाद में मामले में एफआईआर दर्ज की गई और महिला के पति और सास को गिरफ्तार कर लिया गया। सुनवाई के दौरान दोनों ने खुद को निर्दोष बताया और कहा कि उन्हें झूठे मामले में फंसाया गया है। ट्रायल कोर्ट में दोषी ठहराए जाने पर दोनों ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। वहीं, हाईकोर्ट ने भी उनकी दोषसिद्धि की पुष्टि की। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि मौत का कारण जहर था।
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दिल्ली में अवैध रूप से रहने वाले बांग्लादेशियों को पकड़ने के लिए पुलिस ने शुरू किया अभियान, 175 संदिग्ध लोगों की पहचान
नई दिल्ली। देश की राजधानी दिल्ली में अवैध रूप से रहने वाले बांग्लादेशियों को पकड़ने के लिए पुलिस ने अभियान शुरू कर दिया है। अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों खिलाफ अपने सत्यापन अभियान दिल्ली पुलिस ने ऐसे 175 संदिग्ध लोगों की पहचान की है। अधिकारियों ने रविवार को इस बात की जानकारी दी है। पुलिस ने शनिवार को शाम 6 बजे से बाहरी दिल्ली क्षेत्र में 12 घंटे का सत्यापन अभियान चलाया था।
दिल्ली पुलिस ने क्या बताया?
इस अभियान को लेकर दिल्ली पुलिस के एक अधिकारी ने कहा- “पुलिस ने वैध दस्तावेजों के बिना रहने वाले व्यक्तियों की पहचान करने और उन्हें हिरासत में लेने के अपने प्रयास तेज कर दिए हैं। बाहरी दिल्ली में व्यापक सत्यापन अभियान के दौरान 175 व्यक्तियों की पहचान संदिग्ध अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों के रूप में की गई है।
एलजी के आदेश पर कार्रवाई
दिल्ली पुलिस ने बीते 11 दिसंबर की तारीख से राजधानी में रह रहे अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों को पहचानने के लिए अभियान की शुरुआत की थी। इससे एक दिन पहले 10 दिसंबर को एलजी वीके सक्सेना के सचिवालय ने अवैध प्रवासियों पर कार्रवाई का आदेश जारी किया था। इसके बाद से ही पुलिस ने अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों को पकड़ने का अभियान शुरू किया है।
इस तरीके से चल रहे अभियान
दिल्ली पुलिस के मुताबिक, बिना दस्तावेज वाले प्रवासियों की बढ़ती संख्या से चिंता बढ़ती जा रही है। बाहरी जिला पुलिस ने अपने अधिकार में आने वाले विभिन्न क्षेत्रों में कार्रवाई शुरू की है। पुलिस के मुताबिक, स्थानीय थानों, जिला विदेशी प्रकोष्ठों और विशेष इकाइयों के कर्मियों समेत विशेष टीम को घर-घर जाकर जांच करने और संदिग्ध अवैध प्रवासियों के बारे में खुफिया जानकारी इकट्ठा करने का निर्देश दिया गया है।
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