आध्यात्म
गुरु पूर्णिमा: ये हैं वे गुरु-शिष्य, जिनके किस्से आज भी हैं लोगों को याद
गुरु पूर्णिमा आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मानते हैं। इस दिन देशभर में गुरुओं की आराधना, पूजा-अर्चना की जाती है। हिन्दू शास्त्रों में कहा गया है कि आपको ईश्वर की प्राप्ति करनी है तो गुरु के पास जाएं, क्योंकि गुरु ही हैं जो ईश्वर को पाने का मार्ग दिखा सकते हैं। पूरी दुनिया में एक आपका गुरु ही होता है जो आपको समाज के लायक बनता है। गुरु के बिना ज्ञान अधूरा है। इसलिए हमारे देश में गुरुओं को पूजने की समृद्ध परंपरा है। आइए इस गुरु पूर्णिमा के मौके पर हम उन गुरुओं की बात करते हैं, जिनके ज्ञान से आलोकित शिष्यों को दुनिया ने महान माना।
गोखले-गांधी – महात्मा गांधी ने गोपाल कृष्ण गोखले को अपना राजनीतिक गुरु बताया था। यह गोखले ही थे जिन्होंने मोहनदास करमचंद गांधी को भारत को पहले समझने और फिर कुछ करने की सलाह दी थी। क्योंकि दक्षिण अफ्रीका से गांधी का भारत आना, उनकी वकालत संबंधी कार्यों की वजह से हुआ था। स्वदेश में भी दक्षिण अफ्रीका की तरह रंगभेदी सरकार की नीतियों को देख गांधी का ध्यान बरबस ही यहां पर केंद्रित हो गया। यही वह महत्वपूर्ण समय था, जब गोखले ने गांधी को देश को समझने की सलाह दी। इसके बाद महात्मा गांधी ने समूचे भारतवर्ष में जाकर यहां की संस्कृति को जाना-समझा। इसके बाद गांधी जिस भूमिका में आए और अपने जीवन के अंत तक बने रहे, वह सब इतिहास है।
परशुराम-कर्ण – रामायण के बाद जाहिर तौर पर हमें महाभारत में गुरु-शिष्य की समृद्ध परंपरा का बखान मिलता है। महाभारत में तो गुरु और शिष्य के अनगिनत उदाहरण हैं। इनमें सबसे अनोखा है परशुराम और कर्ण का। तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था के तहत कर्ण को जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा। इस कारण उन्हें कौरवों या पांडवों की तरह राजकुल के गुरु से शिक्षा नहीं मिल सकी। कर्ण ने परशुराम से शिक्षा ली। लेकिन परशुराम सिर्फ ब्राह्मण को ही शिक्षा देते थे, इसलिए कर्ण ने नकली जनेऊ पहन ली। कहते हैं कि अपने शिष्य की प्रतिभा से परशुराम इतने प्रसन्न थे कि उन्होंने कर्ण को युद्ध कला के हर वो कौशल सिखाए, जिसके वे खुद महारथी थे। कथा के अनुसार, बिच्छू के काटने से बहे खून ने परशुराम की नींद तोड़ दी और उन्हें शिष्य के अदम्य साहस का पता चला। लेकिन किसी ब्राह्मण के इतना साहसी होने पर संदेह भी हुआ। बाद में कर्ण की असलियत जानकर परशुराम ने कर्ण को श्राप दे दिया।
रामकृष्ण-विवेकानंद – शास्त्रों की कथा से इतर, आधुनिक काल में सर्वाधिक प्रसिद्ध गुरु-शिष्य की जोड़ियों में सबसे प्रमुख नाम है, स्वामी रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद का। बंगाल के दक्षिणेश्वर मंदिर के संत रामकृष्ण के ज्ञान से एक बालक नरेंद्र नाथ इतना प्रतिभाशाली बना कि दुनिया आज भी विवेकानंद के विचारों का लोहा मानती है। सही मायने में देखें तो एक महान गुरु की महत्ता और उसके विद्वान शिष्य की प्रसिद्धि का इससे अच्छा और सटीक उदाहरण आपको कहीं नहीं मिलेगा। विवेकानंद ने अपने भाषणों, लेख और वचनों में हर जगह रामकृष्ण परमहंस की महानता का वर्णन किया है। साथ ही गुरु और ईश्वर, दोनों में से किसी एक की महत्ता के मामले में गुरु को सर्वोपरि स्थान दिया है।
द्रोण-अर्जुन – महाभारत में गुरु-शिष्य परंपरा में जिस एक जोड़ी की सर्वाधिक चर्चा की जाती है, वह है द्रोणाचार्य और अर्जुन की। पांडवों में से एक अर्जुन की प्रतिभा देखकर गुरु द्रोणाचार्य ने अपने इस शिष्य को विश्व के महानतम धनुर्धर के रूप में स्थापित कर दिया। महाभारत की कथा के अनुसार, अर्जुन से सर्वाधिक स्नेह के कारण द्रोणाचार्य को कई मामलों में पक्षपाती भी बताया गया है। लेकिन अर्जुन और द्रोण के बीच गुरु-शिष्य के संबंधों को देखने पर हमें एक विद्वान गुरु के महान शिष्य बनने की कहानी का पता चलता है।
विश्वामित्र-राम – भारत में गुरु की महत्ता और गुरु-शिष्य के संबंध के बारे में पौराणिक ग्रंथों में खूब लिखा गया है। रामायण में अयोध्या के राजकुमार राम को गुरु वशिष्ठ और विश्वामित्र का अनन्य भक्त कहा गया है। वशिष्ठ ने जहां राम को बाल्य-काल में शिक्षा देकर उनके ज्ञान के आधार को मजबूत बनाया था, वहीं विश्वामित्र ने राम को तरुण अवस्था में अपने ज्ञान से आलोकित किया था। हम देखें तो इन दोनों गुरुओं के मुकाबले राम की महिमा ज्यादा है। वे मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। राजा के रूप में राम-राज्य का उदाहरण दिया जाता है। लेकिन यह गुरुओं का ही प्रभाव था कि राम को दुनिया ने एक राजकुमार के मुकाबले, बड़े व्यक्तित्व के रूप में जाना।
आध्यात्म
महाकुम्भ 2025: बड़े हनुमान मंदिर में षोडशोपचार पूजा का है विशेष महत्व, पूरी होती है हर कामना
महाकुम्भनगर| प्रयागराज में संगम तट पर स्थित बड़े हनुमान मंदिर का कॉरिडोर बनकर तैयार हो गया है। यहां आने वाले करोड़ों श्रद्धालु यहां विभिन्न पूजा विधियों के माध्यम से हनुमान जी की अराधना करते हैं। इसी क्रम में यहां षोडशोपचार पूजा का भी विशेष महत्व है। षोडशोपचार पूजा करने वालों की हर कामना पूरी होती है, जबकि उनके सभी संकट भी टल जाते हैं। मंदिर के महंत और श्रीमठ बाघंबरी पीठाधीश्वर बलवीर गिरी जी महाराज ने इस पूजा विधि के विषय में संक्षेप में जानकारी दी और यह भी खुलासा किया कि हाल ही में प्रयागराज दौरे पर आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी मंदिर में षोडशोपचार विधि से पूजा कराई गई। उन्हें हनुमान जी के गले में पड़ा विशिष्ट गौरीशंकर रुद्राक्ष भी भेंट किया गया। उन्होंने भव्य और दिव्य महाकुम्भ के आयोजन के लिए पीएम मोदी और सीएम योगी का आभार भी जताया।
16 पदार्थों से ईष्ट की कराई गई पूजा
लेटे हनुमान मंदिर के महंत एवं श्रीमठ बाघंबरी पीठाधीश्वर बलवीर गिरी जी महाराज ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक यजमान की तरह महाकुम्भ से पहले विशेष पूजन किया। प्रधानमंत्री का समय बहुत महत्वपूर्ण था, लेकिन कम समय में भी उनको षोडशोपचार की पूजा कराई गई। पीएम ने हनुमान जी को कुमकुम, रोली, चावल, अक्षत और सिंदूर अर्पित किया। यह बेहद विशिष्ट पूजा होती है, जिसमें 16 पदार्थों से ईष्ट की आराधना की। इस पूजा का विशेष महत्व है। इससे संकल्प सिद्धि होती है, पुण्य वृद्धि होती है, मंगलकामनाओं की पूर्ति होती और सुख, संपदा, वैभव मिलता है। हनुमान जी संकट मोचक कहे जाते हैं तो इस विधि से हनुमान जी का पूजन करना समस्त संकटों का हरण होता है। उन्होंने बताया कि पीएम को पूजा संपन्न होने के बाद बड़े हनुमान के गले का विशिष्ट रुद्राक्ष गौरीशंकर भी पहनाया गया। यह विशिष्ट रुद्राक्ष शिव और पार्वती का स्वरूप है, जो हनुमान जी के गले में सुशोभित होता है।
सभी को प्रेरित करने वाला है पीएम का आचरण
उन्होंने बताया कि पूजा के दौरान प्रधानमंत्री के चेहरे पर संतों का ओज नजर आ रहा था। सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि उनमें संतों के लिए विनय का भाव था। आमतौर पर लोग पूजा करने के बाद साधु संतों को धन्यवाद नहीं बोलते, लेकिन पीएम ने पूजा संपन्न होने के बाद पूरे विनय के साथ धन्यवाद कहा जो सभी को प्रेरित करने वाला है। उन्होंने बताया कि पीएम ने नवनिर्मित कॉरिडोर में श्रद्धालुओं की सुविधा को लेकर भी अपनी रुचि दिखाई और मंदिर प्रशासन से श्रद्धालुओं के आने और जाने के विषय में जानकारी ली। वह एक अभिभावक के रूप में नजर आए, जिन्हें संपूर्ण राष्ट्र की चिंता है।
जो सीएम योगी ने प्रयागराज के लिए किया, वो किसी ने नहीं किया
बलवीर गिरी महाराज ने सीएम योगी की भी तारीफ की। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने प्रयागराज और संगम के विषय में जितना सोचा, आज से पहले किसी ने नहीं सोचा। संत जीवन में बहुत से लोगों को बड़े-बड़े पदों पर पहुंचते देखा, लेकिन मुख्यमंत्री जी जैसा व्यक्तित्व कभी नहीं देखने को मिला। वो जब भी प्रयागराज आते हैं, मंदिर अवश्य आते हैं और यहां भी वह हमेशा यजमान की भूमिका में रहते हैं। हमारे लिए वह बड़े भ्राता की तरह है। हालांकि, उनकी भाव भंगिमाएं सिर्फ मंदिर या मठ के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश के लिए हैं। वो हमेशा यही पूछते हैं कि प्रयागराज कैसा चल रहा है। किसी मुख्यमंत्री में इस तरह के विचार होना किसी भी प्रांत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
स्वच्छता का भी दिया संदेश
उन्होंने महाकुम्भ में आने वाले करोड़ों श्रद्धालुओं को संदेश भी दिया। उन्होंने कहा कि महाकुम्भ को स्वच्छ महाकुम्भ बनाने का जिम्मा सिर्फ सरकार और प्रशासन का नहीं है, बल्कि श्रद्धालुओं का भी है। मेरी सभी तीर्थयात्रियों से एक ही अपील है कि महाकुम्भ के दौरान स्नान के बाद अपने कपड़े, पुष्प और पन्नियां नदियों में और न ही तीर्थस्थल में अर्पण न करें। प्रयाग और गंगा का नाम लेने से ही पाप कट जाते हैं। माघ मास में यहां एक कदम चलने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। यहां करोड़ों तीर्थ समाहित हैं। इसकी पवित्रता के लिए अधिक से अधिक प्रयास करें। तीर्थ का सम्मान करेंगे तो तीर्थ भी आपको सम्मान प्रदान करेंगे। स्नान के समय प्रयाग की धरा करोड़ों लोगों को मुक्ति प्रदान करती है। यहां ज्ञानी को भी और अज्ञानी को भी एक बराबर फल मिलता है।
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