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नेशनल

कारगिल विजय दिवस: जरा याद उन्हें भी कर लो, जो लौट के घर न आए

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नई दिल्ली। आज 26 जुलाई है आज ही के दिन कारगिल युद्ध को हुए 23 साल पूरे हो गए हैं, पूरा देश इस दिन को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाता है। आज भी भारत के जांबाज सपूतों के वीरता की दास्तान हमारे जेहन में ताजा है।

इस युद्ध में भारत माता के वीर सपूत कैप्टन विक्रम बत्रा ने अद्वितीय शौर्य और रणकौशल का परिचय दिया था। उनके दोस्त और दुश्मन उन्हें ‘शेरशाह’ के नाम से पुकारते थे। बत्रा ने न केवल सामरिक रुप से महत्वपूर्ण कई चोटियों पर कब्जा किया बल्कि पाक सेना के मनोबल को भी कुचलकर रख दिया।

बत्रा के नेतृत्व में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी घुसपैठियों से प्वाइंट-5140 छीन लिया था। कारगिल युद्ध के दौरान लड़ाई की भीषणता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पाक सेना पहाड़ों के ऊपर बने बंकरों में छिपी थी जबकि भारतीय सेना नीचे खुली जगह से हमला कर रही थी। इसी कारण भारत को पाक सेना के मजबूत प्रतिरोध का सामना करना पड़ा।

विज्ञान में स्नातक विक्रम बत्रा की सेना में ज्वॉइनिंग सीडीएस के जरिए सेना में हुई थी। जुलाई 1996 में उन्हें भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून में प्रवेश मिला और 6 दिसंबर 1997 को 13 सेना में लेफ्टिनेंट के पद पर उन्हें नियुक्ति मिली। जिसके बाद उन्होंने कमांडो ट्रेनिंग भी ली।

तारीख एक जून 1999

विक्रम बत्रा की कमांडो टुकड़ी को कारगिल युद्ध में भेजा गया। हम्प व राकी नाब को जीतने के बाद उन्हें पदोन्नति देकर कैप्टन बना दिया गया। इसके बाद श्रीनगर-लेह मार्ग के ठीक ऊपर सामरिक रूप से सबसे महत्त्वपूर्ण चोटी संख्या-5140 को पाक सेना से मुक्त करवाने की जिम्मेदारी कैप्टन बत्रा की टुकड़ी को मिली।

बेहद दुर्गम क्षेत्र और प्रतिकूल परिस्थिति होने के बावजूद विक्रम बत्रा ने अपने साथियों के साथ 20 जून 1999 को सुबह तीन बजकर 30 मिनट पर इस चोटी पर तिरंगा फहरा दिया। इसके बाद विक्रम बत्रा ने इस चोटी से रेडियो के जरिए अपने कमांड को विजय उद्घोष ‘ये दिल मांगे मोर’ कहा।

चोटी 5140 में भारतीय झंडे के साथ विक्रम बत्रा और उनकी टीम की फोटो पूरी दुनिया ने देखी जो कारगिल युद्ध की पहचान बनी। उनका ये उद्घोष केवल सेना ही नहीं बल्कि पूरे भारत में लोगों के दिलों में आज भी ताजा है। इसी दौरान विक्रम बत्रा को ‘शेरशाह’ के साथ ही ‘कारगिल का शेर’ का नाम मिला।

इसके बाद सेना ने विक्रम बत्रा और उनकी टीम को चोटी 4875 को भी कब्जे में लेने की जिम्मेदारी सौंपी। जान की परवाह न करते हुए लेफ्टिनेंट अनुज नैय्यर और अपने साथियों के साथ कैप्टन बत्रा इस चोटी को जीतने में लग गए। यह चोटी समुद्र तल से 17 हजार फीट की ऊंचाई पर थी और 80 डिग्री की चढ़ाई पर पड़ती थी।

7 जुलाई 1999 को एक जख्मी ऑफिसर को बचाते हुए कैप्टन विक्रम बत्रा शहीद हो गए। उनके अद्मय शौर्य और पराक्रम को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत अगस्त 1999 में सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया।

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उत्तर प्रदेश

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और डॉ. कुमार विश्वास ने संगम में लगाई डुबकी, गौतम अदानी ने की श्रद्धालुओं की सेवा

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महाकुम्भ नगर। महाकुम्भ 2025 के तहत संगम घाट पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रख्यात कवि डॉ. कुमार विश्वास ने औद्योगिक विकास मंत्री नंद गोपाल गुप्ता नंदी के साथ संगम के पवित्र जल में पुण्य की डुबकी लगाई। वहीं, देश के शीर्ष उद्योगपति गौतम अदानी ने श्रद्धालुओं के लिए चल रहे भंडारे में सेवा की और फिर बड़े हनुमान मंदिर में पूजन अर्चन किया।

रामनाथ कोविंद ने सपरिवार किया स्नान

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपनी पत्नी और पुत्री के साथ संगम की पवित्र त्रिवेणी में स्नान किया। इस दौरान मंत्री नंदी ने स्वयं उनका हाथ पकड़कर स्नान में सहयोग किया। स्नान के बाद मंत्रोच्चार के बीच उन्होंने सपरिवार मां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती की पूजा-अर्चना की। उन्होंने महाकुम्भ की भव्यता और दिव्यता की सराहना करते हुए कहा कि यह आयोजन भारत की आध्यात्मिक धरोहर और सांस्कृतिक समृद्धि का उत्कृष्ट उदाहरण है। पूर्व राष्ट्रपति ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ की अवधारणा को देश के आर्थिक विकास के लिए गेम चेंजर बताया। उन्होंने कहा कि इससे देश की जीडीपी और आर्थिक स्थिति में व्यापक सुधार होगा।

कुमार विश्वास बोले- सामाजिक समरसता का परिचायक है महाकुम्भ

डॉ. कुमार विश्वास ने मां गंगा का जयकारा लगाते हुए स्नान किया। उन्होंने गंगा के महात्म्य पर अपनी कविता से सबको मंत्रमुग्ध करते हुए कहा कि
“तपस्वी राम के चरणों चढ़ी उपहार तक आई,
हमारी मां हमारे लोक के स्वीकार तक आई।”
उन्होंने कहा कि महाकुम्भ का यह आयोजन 144 वर्षों के बाद आया दुर्लभ संयोग है, जो भारत को विश्व गुरु बनाने की दिशा में प्रेरणा देगा। उन्होंने सभी से राजनीतिक भेदभाव भूलकर इस सर्वसमावेशी आयोजन में भाग लेने का आह्वान किया। डॉ. कुमार विश्वास ने कहा कि गंगा केवल एक नदी नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति का सार है। उन्होंने कहा कि यह आयोजन न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक समरसता का परिचायक है, जो पूरे विश्व को एक नई दिशा देगा।

गौतम अदानी ने सेवा में तत्पर शासन-प्रशासन, सफाई कर्मियों और सुरक्षा बलों को कहा धन्यवाद

उद्योगपति गौतम अदानी ने इस्कॉन द्वारा संचालित इस्कॉन रसोई में सेवा की और श्रद्धालुओं को खाना खिलाया। उन्होंने महाकुम्भ को अद्भुत, अद्वितीय, एवं अलौकिक कहा। उन्होंने कहा कि प्रयागराज आकर ऐसा लगा मानो पूरी दुनिया की आस्था, सेवाभाव और संस्कृतियां यहीं मां गंगा की गोद में आकर समाहित हो गयी हैं। कुम्भ की भव्यता और दिव्यता सजीव बनाए रखने वाले सभी साधु, संत, कल्पवासी एवं श्रद्धालुओं की सेवा में तत्पर शासन-प्रशासन, सफाई कर्मियों और सुरक्षा बलों को मैं हृदय से धन्यवाद देता हूँ। मां गंगा का आशीर्वाद हम सभी पर बना रहे। गौतम अदानी संगम और हनुमान जी के दर्शन करते हुए शंकर विमान मंडपम पहुंचे, जहां मुख्य द्वार पर 21 वैदिक ब्राह्मणों ने ‘वैदिक वेलकम’ किया। उन्होंने विमान मंडपम मंदिर प्रांगण में मौजूद गीता प्रेस की आरती संग्रह पगोडा पर श्रद्धालुओं बातचीत भी की।

राज्यसभा सांसद सुधा मूर्ति ने दूसरे दिन भी किया पवित्र स्नान

उधर, राज्यसभा सांसद सुधा मूर्ति ने अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हुए तीन दिन तक पवित्र स्नान और तर्पण करने का संकल्प लिया है। उन्होंने कहा, “मैंने कल पवित्र स्नान किया, आज भी करूंगी और कल फिर करूंगी। मेरे नाना, नानी, दादा-दादी यहां नहीं आ सके, इसलिए उनकी ओर से तर्पण कर रही हूं। यह मेरे लिए गर्व और खुशी की बात है।” सुधा मूर्ति ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में किए गए कार्यों की सराहना की। उन्होंने कहा, “योगी जी और उनकी टीम ने यहां बहुत अच्छा काम किया है। मैं उनके लंबे जीवन की कामना करती हूं।”

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