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आध्यात्म

लखनऊ: ब्रह्मसागर महासंघ ने किया चिंतन शिविर का आयोजन, शंकराचार्य भी पधारे

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लखनऊ। भारत की सनातन संस्कृति, ज्ञान और गौरवशाली मूल्यों की पुनर्स्थापना के संकल्प के साथ धर्म नगरी एवं पुण्य तीर्थ नैमिषारण्य तथा मर्याद पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या धाम को केंद्र मे रखते हुए शेषावतार भगवान लक्ष्मण की नगरी लखनऊ में रामेश्वरम ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन, सीतापुर रोड परिसर में आज एक राष्ट्रीय चिंतन शिविर का आयोजन ब्रह्मसागर महासंघ द्वारा किया गया।

शंकराचार्य की अगुवाई में सनातन संस्कृति को पुनर्जीवित करने के लिया गया संकल्प

कार्यक्रम की शुरुवात दीप प्रज्वलन और वेद मन्त्रों की ऋचाओं स्वस्तिवाचन के साथ हुई। रामेश्वरम ग्रुप के मुखिया राजेंद्र शुक्ल द्वारा सभी मेहमानों को तिलक चन्दन अक्षत पुष्प द्वारा स्वागत किया गया। कश्मीर से पधारे शारदा पीठाधीश्वर आदि शंकराचार्य स्वामी अमृतानंद सरस्वती कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में ब्रह्मसागर की इस संकल्पना को पूरा सहयोग देने का आशीर्वाद दिया है।

शंकराचार्य की अगुवाई में इस ऐतिहासिक संगोष्ठी मे देश के कोने कोने से पधारे प्रख्यात आध्यात्मिक धर्मगुरु, चिंतक, वैज्ञानिक, शिक्षाविद, वैदिक मर्मज्ञ, ब्रह्मांडीय ऊर्जाशास्त्री, सनातनी इतिहासकार, तकनीकी विशेषज्ञ, प्रशासनिक अधिकारी, समाजसेवी आदि सहित मनीषा जगत की महान विभूतियों ने शिरकत की।

नैमिष और अयोध्या में ऋतंभरा प्रज्ञा पीठम विश्वविद्यालयों की स्थापना का संकल्प

इस अवसर पर ब्रह्मसागर महासंघ की लघु पुस्तिका (विवरणिका) का विमोचन भी किया गया। धन्यवाद ज्ञापन ब्रह्मसागर के उपाध्यक्ष पूर्व आईएएस चन्द्रिका प्रसाद तिवारी ने किया।

पश्चिम बंगाल के पुलिस महानिदेशक डॉ बी.एन. रमेश, भारतीय सेना के मेजर जनरल नरपति सिंह राज पुरोहित, श्री रविशंकर जी, गुजरात के डॉ. जयप्रकाश नारायण द्विवेदी निदेशक श्री द्वारकाधीश संस्कृत अकैडमी एंड इन्डोलोजिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट,

दिल्ली विश्वविद्यालय से डॉ अनुराग मिश्रा, करनाल से स्वामी संपूर्णानंद सरस्वती, अयोध्या से ज्योतिषाचार्य राकेश तिवारी, आईएएस अधिकारी और पूर्व विधायक देवमणि द्विवेदी, चिन्मय मिशन के आचार्य कौशिक चैतन्य सहित देश के अलग-अलग अंचलों से पधारे अध्यात्मिक जगत और मनीषा जगत सहित सभी विद्वतजनों ने शिक्षा और ज्ञान को केंद्र में रखकर भारत को विश्व स्तर पर पुनः उसके तीनों आयामों भौतिक, बौध्दिक और अध्यात्मिक उत्कृष्टता के साथ वैभवशाली-गौरवशाली मूल्यों मर्यादाओं को पुनर्जीवित करने पर अपने अपने विचार रखे।

ब्रह्मसागर महासंघ की पहल से भारत को पुनः विश्वगुरु बनाने की क़वायद

प्रख्यात अन्तरिक्ष वैज्ञानिक, भारत वैभव ग्रन्थ के लेखक और भारत के तीन तीन प्रधानमंत्रियों के सलाहकार रहे डॉ. ओम प्रकाश पाण्डेय ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारत के गौरवशाली इतिहास में अद्भुत भारतीय ब्रह्मांडीय ज्ञान, विज्ञान, कला, संगीत, त्याग, तपस्या, ऋषि- मुनि, सिद्ध, वीर योद्धाओं,स्थापत्य कला, आयुर्वेद सहित अनेक परा अपरा विद्याओं द्वारा हम विश्व में सर्वश्रेष्ठ और हर क्षेत्र में आत्म निर्भर हुआ करते थे। इसके पीछे प्रमुख कारण था हमारी भारतीय शिक्षा पद्धति।

हमें पुनः भारतीय शिक्षा पद्धति को पुनर्स्थापित करके मानव से महामानव बनाने का संकल्प लेकर परम वैभव से सुसज्जित, विश्व-वन्दित चिर-अखंडित राष्ट्र की संकल्पना को साकार करना होगा, इसके लिए हमारा अगला कदम होगा कि आगामी दो वर्षों में नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र में ऋतंभरा प्रज्ञा पीठम की स्थापना।

इस अवसर पर ब्रह्मसागर महासंघ के संस्थापक अध्यक्ष व सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी कैप्टेन संतोष कुमार द्विवेदी ने कहा कि हम सब अवगत हैं कि नालन्दा विवि,विक्रमशिला विवि व तक्षशिला विवि की शिक्षा पद्धति के चलते ही हमारी भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति चरमोत्कर्ष पर थी।

सम्पूर्ण विश्व मे हमारे देश को विश्वगुरु और सोने की चिड़िया आदि तमगों से नवाज़ा जाता था। इन्ही सपनों को पुनः साकार करने के लिए आइये हम सब मिलकर ऋषियों की पुण्य भूमि नैमिष और अयोध्या धाम में ऋतंभरा प्रज्ञा पीठम विश्वविद्यालयों की स्थापना के इस भगीरथ प्रयास मे अपना अपना समुचित योगदान देकर इस संकल्प को सिद्धि तक पहुंचाने मे भागीदार बनें।

राष्ट्रधर्म प्रकाशन के निदेशक और वरिष्ठ चिन्तक सर्वेश द्विवेदी ने बताया कि हमें पाश्चात्य जीवन दर्शन को छोड़कर भारतीय दृष्टिकोण और दर्शन को अंगीकृत करते हुए देश में शिक्षा ,चिकित्सा और न्याय व्यवस्था आदि में भारतीय आत्मा के प्रकाश में देश को गाँव से लेकर अंतरिक्ष तक आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास करने चाहिए।

चिंतन शिविर में पश्चिम बंगाल के पुलिस महानिदेशक डॉ बी.एन. रमेश, तिरुपति वैदिक विश्वविद्यालय के प्रो.एस सुदर्शन शर्मा, शारदा पीठ कश्मीर से स्वामी अमृतानंद सरस्वती, डॉ अनुराग मिश्रा दिल्ली विश्वविद्यालय,

आचार्य कौशिक चैतन्य, देवरहा बाबा आश्रम से स्वामी सौमित्रि प्रपन्नाचार्य जी,स्वामी अनुपम आनंद,स्वामी आत्मश्रृद्धानन्द रामकृष्ण मिशन कानपूर, प्रो. कीर्ति नारायण प्रख्यात लेखिका एवं इतिहासकार, शाश्वत तिवारी, प्रमिल द्विवेदी, के एन चौबे,कर्नल लक्ष्मी कान्त तिवारी आदि की गरिमामयी उपस्थिति रही।

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आध्यात्म

महाकुम्भ 2025: बड़े हनुमान मंदिर में षोडशोपचार पूजा का है विशेष महत्व, पूरी होती है हर कामना

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महाकुम्भनगर| प्रयागराज में संगम तट पर स्थित बड़े हनुमान मंदिर का कॉरिडोर बनकर तैयार हो गया है। यहां आने वाले करोड़ों श्रद्धालु यहां विभिन्न पूजा विधियों के माध्यम से हनुमान जी की अराधना करते हैं। इसी क्रम में यहां षोडशोपचार पूजा का भी विशेष महत्व है। षोडशोपचार पूजा करने वालों की हर कामना पूरी होती है, जबकि उनके सभी संकट भी टल जाते हैं। मंदिर के महंत और श्रीमठ बाघंबरी पीठाधीश्वर बलवीर गिरी जी महाराज ने इस पूजा विधि के विषय में संक्षेप में जानकारी दी और यह भी खुलासा किया कि हाल ही में प्रयागराज दौरे पर आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी मंदिर में षोडशोपचार विधि से पूजा कराई गई। उन्हें हनुमान जी के गले में पड़ा विशिष्ट गौरीशंकर रुद्राक्ष भी भेंट किया गया। उन्होंने भव्य और दिव्य महाकुम्भ के आयोजन के लिए पीएम मोदी और सीएम योगी का आभार भी जताया।

16 पदार्थों से ईष्ट की कराई गई पूजा

लेटे हनुमान मंदिर के महंत एवं श्रीमठ बाघंबरी पीठाधीश्वर बलवीर गिरी जी महाराज ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक यजमान की तरह महाकुम्भ से पहले विशेष पूजन किया। प्रधानमंत्री का समय बहुत महत्वपूर्ण था, लेकिन कम समय में भी उनको षोडशोपचार की पूजा कराई गई। पीएम ने हनुमान जी को कुमकुम, रोली, चावल, अक्षत और सिंदूर अर्पित किया। यह बेहद विशिष्ट पूजा होती है, जिसमें 16 पदार्थों से ईष्ट की आराधना की। इस पूजा का विशेष महत्व है। इससे संकल्प सिद्धि होती है, पुण्य वृद्धि होती है, मंगलकामनाओं की पूर्ति होती और सुख, संपदा, वैभव मिलता है। हनुमान जी संकट मोचक कहे जाते हैं तो इस विधि से हनुमान जी का पूजन करना समस्त संकटों का हरण होता है। उन्होंने बताया कि पीएम को पूजा संपन्न होने के बाद बड़े हनुमान के गले का विशिष्ट रुद्राक्ष गौरीशंकर भी पहनाया गया। यह विशिष्ट रुद्राक्ष शिव और पार्वती का स्वरूप है, जो हनुमान जी के गले में सुशोभित होता है।

सभी को प्रेरित करने वाला है पीएम का आचरण

उन्होंने बताया कि पूजा के दौरान प्रधानमंत्री के चेहरे पर संतों का ओज नजर आ रहा था। सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि उनमें संतों के लिए विनय का भाव था। आमतौर पर लोग पूजा करने के बाद साधु संतों को धन्यवाद नहीं बोलते, लेकिन पीएम ने पूजा संपन्न होने के बाद पूरे विनय के साथ धन्यवाद कहा जो सभी को प्रेरित करने वाला है। उन्होंने बताया कि पीएम ने नवनिर्मित कॉरिडोर में श्रद्धालुओं की सुविधा को लेकर भी अपनी रुचि दिखाई और मंदिर प्रशासन से श्रद्धालुओं के आने और जाने के विषय में जानकारी ली। वह एक अभिभावक के रूप में नजर आए, जिन्हें संपूर्ण राष्ट्र की चिंता है।

जो सीएम योगी ने प्रयागराज के लिए किया, वो किसी ने नहीं किया

बलवीर गिरी महाराज ने सीएम योगी की भी तारीफ की। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने प्रयागराज और संगम के विषय में जितना सोचा, आज से पहले किसी ने नहीं सोचा। संत जीवन में बहुत से लोगों को बड़े-बड़े पदों पर पहुंचते देखा, लेकिन मुख्यमंत्री जी जैसा व्यक्तित्व कभी नहीं देखने को मिला। वो जब भी प्रयागराज आते हैं, मंदिर अवश्य आते हैं और यहां भी वह हमेशा यजमान की भूमिका में रहते हैं। हमारे लिए वह बड़े भ्राता की तरह है। हालांकि, उनकी भाव भंगिमाएं सिर्फ मंदिर या मठ के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश के लिए हैं। वो हमेशा यही पूछते हैं कि प्रयागराज कैसा चल रहा है। किसी मुख्यमंत्री में इस तरह के विचार होना किसी भी प्रांत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

स्वच्छता का भी दिया संदेश

उन्होंने महाकुम्भ में आने वाले करोड़ों श्रद्धालुओं को संदेश भी दिया। उन्होंने कहा कि महाकुम्भ को स्वच्छ महाकुम्भ बनाने का जिम्मा सिर्फ सरकार और प्रशासन का नहीं है, बल्कि श्रद्धालुओं का भी है। मेरी सभी तीर्थयात्रियों से एक ही अपील है कि महाकुम्भ के दौरान स्नान के बाद अपने कपड़े, पुष्प और पन्नियां नदियों में और न ही तीर्थस्थल में अर्पण न करें। प्रयाग और गंगा का नाम लेने से ही पाप कट जाते हैं। माघ मास में यहां एक कदम चलने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। यहां करोड़ों तीर्थ समाहित हैं। इसकी पवित्रता के लिए अधिक से अधिक प्रयास करें। तीर्थ का सम्मान करेंगे तो तीर्थ भी आपको सम्मान प्रदान करेंगे। स्नान के समय प्रयाग की धरा करोड़ों लोगों को मुक्ति प्रदान करती है। यहां ज्ञानी को भी और अज्ञानी को भी एक बराबर फल मिलता है।

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