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अन्तर्राष्ट्रीय

ताइवान को लेकर अमेरिका से जंग चीन के हित में नहीं, ज्यादा खोने का है डर

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वॉशिंगटन। ताइवान को लेकर चीन की तमाम चेतावनियों को नजरअंदाज कर अमेरिकी संसद की स्पीकर नैन्सी पेलोसी ने ताइवान का दौरा किया है। इस दौरान चीन के विमान ताइवान की सीमा में भी घुसे और उसके आसमान के आसपास मंडराते रहे। इतना ही नहीं, आगबबूला चीन ने अमेरिकी राजदूत को तलब कर इस हरकत पर ऐतराज जाहिर किया है। साफ है कि अमेरिका और चीन के बीच संबंध निचले स्तर पर पहुंच गए हैं और ताइवान दोनों के बीच झगड़े की जड़ बन गया है।

हालांकि इस बीच एक सवाल यह भी उठता है कि क्या यूक्रेन की तरह ताइवान को भी चीन से जंग में अकेला छोड़कर अमेरिका निकल जाएगा? यूक्रेन पर रूस के हमले से पहले भी अमेरिका की ओर से कई वादे किए गए थे, लेकिन युद्ध होने की स्थिति में उसने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने से इतर कोई बड़ा कदम नहीं उठाया।

ताइवान पहुंची नैन्सी पेलोसी ने कहा कि हम ताइवान के साथ हैं और उसे लेकर अपनी प्रतिबद्धता को नहीं छोड़ेंगे। हम ताइवान से किए वादों पर डटे रहेंगे और हर स्तर पर उसके साथ रहेंगे। ताइवान की नेता त्साई इंग वेंग ने कहा कि हम शांति और स्थिरता के लिए प्रतिबद्ध हैं।

वहीं संयुक्त राष्ट्र में चीन के प्रतिनिधि झांग जुन ने इसे उकसावे वाली कार्रवाई करार दिया है। उन्होंने कहा, ‘जैसा कि हम देख रहे हैं, यह दौरा बेहद खतरनाक है और उकसाने वाला है। यह चीन की संप्रभुता और अखंडता को नजरअंदाज करने वाला है।’

साफ है कि अमेरिका और चीन के बीच तनाव बढ़ गया है और ताइवान के युद्ध का मैदान बनने का खतरा मंडरा रहा है। हालांकि एक्सपर्ट्स का मानना है कि चीन शायद ही ताइवान पर हमला करेगा।

रूस के मुकाबले क्यों चीन को है ज्यादा खोने का डर

रूस के मुकाबले चीन को है ज्यादा खोने के डर की वजह यह है कि चीन आर्थिक तौर पर मजबूती के साथ आगे बढ़ रहा है और अमेरिका के मुकाबले चीन की जीडीपी उसके 76 फीसदी के बराबर है। इसके अलावा रूस की जीडीपी अमेरिका के 10 पर्सेंट के ही बराबर है।

ऐसे में युद्ध की स्थिति में अमेरिका ने जब रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए तो उस पर असर जरूर हुआ, लेकिन बहुत ज्यादा नहीं। चीन ऐसी स्थिति को संभालने में सक्षम नहीं होगा। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकॉनमी बना चीन महज ताइवान पर उकसावे में आकर ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहेगा, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था पर खतर मंडराने लगे।

चीन के आर्थिक पतन की होगी शुरुआत

चीन ने बीते कुछ दशकों में कृषि, मैन्युफैक्चरिंग, हाई-टेक इंडस्ट्री जैसे उद्योगों के जरिए विकास की नई कहानी लिखी है। इसमें अमेरिका के साथ उसके कारोबारी संबंधों और यूरोपीय देशों को होने वाले निर्यात का बड़ा योगदान है। युद्ध की स्थिति में अमेरिका और उसके सहयोगी देश चीन की इस कमजोर नस को दबा सकते हैं, जिससे निपटना उसके लिए मुश्किल होगा।

रूस की इकॉनमी में बड़ी हिस्सेदारी तेल और गैस की सप्लाई की ही है, जिसे उसने भारत जैसे देशों की मदद से संभाल लिया है लेकिन चीन के साथ ऐसा होने की स्थिति में उसका संभलना और कठिन होगा। इसका अर्थ यह हुआ कि चीन आर्थिक ग्रोथ के जिस पड़ाव पर है, वहां वह युद्ध में उतरने को समझदारी नहीं मानेगा।

चीन की नौसेना और एयरफोर्स भी अमेरिका के मुकाबले पीछे

इसके अलावा ताइवान को लेकर यदि जंग होती है तो फिर चीन को एयरफोर्स और नौसेना के बूते ज्यादा लड़ना होगा लेकिन इस मामले में वह अमेरिका को चुनौती देने की स्थिति में नहीं है। चीन ने अपनी एयरफोर्स और नौसेना के आधुनिकीकरण की शुरुआत ही 1990 के दशक से की थी। यह सही है कि ताइवान स्ट्रेट काफी संकरा है और इसकी चौड़ाई 100 मील से भी कम है।

चीन ने ताइवान के करीब समुद्र तट पर बड़ी संख्या में मिसाइलों को भी तैनात कर रखा है लेकिन इसके बाद भी उसके लिए ताइवान में लड़ना आसान नहीं होगा। भले ही अमेरिका इस जंग में न उतरे, लेकिन ताइवान को वह पहले ही बड़े पैमाने पर आधुनिक हथियार दे चुका है।

चीन के 10 बड़े ट्रेड पार्टनर में 8 अमेरिका और उसके दोस्त

चीन ने बीते दशकों में जो आर्थिक विकास किया है, उसमें अमेरिका और उसके सहयोगी देशों से कारोबार का बड़ा योगदान है। चीन फिलहाल इंपोर्ट और एक्सपोर्ट के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा कारोबारी देश है।

इस एक्सपोर्ट और इंपोर्ट में उसके 10 सबसे बड़े साझेदारों में 8 देश अमेरिका और उसके साझेदार हैं। ऐसे में चीन यदि ताइवान पर अटैक की ओर बढ़ता है तो अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के प्रतिबंध उसे बड़ा झटका देंगे। ऐसी स्थिति में चीन आर्थिक तौर पर गहरे संकट में जा सकता है। यह सबसे बड़ी वजह है जो चीन को ताइवान के मसले पर आगबबूला होने के बाद भी युद्ध से रोकती है।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इतालवी समकक्ष जियोर्जिया मेलोनी से की मुलाकात

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ब्राजील। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार (स्थानीय समय) को ब्राजील के रियो डी जनेरियो में जी20 शिखर सम्मेलन के मौके पर अपने इतालवी समकक्ष जियोर्जिया मेलोनी के साथ द्विपक्षीय बैठक की। बैठक के दौरान, दोनों नेताओं ने सांस्कृतिक और पब्लिक टू पब्लिक रिलेशन को मजबूत करने सहित व्यापार, निवेश और प्रौद्योगिकी में सहयोग बढ़ाने पर चर्चा की।

पीएम मोदी ने अपने एक्स अकाउंट पर लिखा कि, रियो डी जनेरियो जी20 शिखर सम्मेलन के मौके पर प्रधान मंत्री जियोर्जिया मेलोनी से मुलाकात करके खुशी हुई। हमारी बातचीत रक्षा, सुरक्षा, व्यापार और प्रौद्योगिकी में संबंधों को गहरा करने पर केंद्रित थी। हमने इस बारे में भी बात की कि संस्कृति, शिक्षा और ऐसे अन्य क्षेत्रों में सहयोग कैसे बढ़ाया जाए। भारत-इटली मित्रता एक बेहतर ग्रह के निर्माण में बहुत योगदान दे सकती है।

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