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ज्ञानवापी परिसर में पाया गया शिवलिंग 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक: विहिप

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शिवलिंग

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वाराणसी। विश्व हिंदू परिषद (VHP) के प्रमुख आलोक कुमार ने ज्ञानवापी मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश से सहमति जताई और दावा किया कि हिंदू पक्ष यह साबित करने में सक्षम होगा कि पाया गया शिवलिंग 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।

उन्होंने कहा, “हम सुप्रीम कोर्ट से सहमत हैं कि यह मामला जटिल है और इसके लिए एक गंभीर और अनुभवी जज की जरूरत है। कोर्ट ने कहा है कि जिला अदालत इस पर गौर करेगी। हम सुप्रीम कोर्ट से सहमत हैं।” विहिप प्रमुख ने कहा कि वे यह साबित करने में सक्षम होंगे कि ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर पाया गया ‘शिवलिंग’ ज्योतिर्लिंगों में से एक है।

उन्होंने कहा, “हम मानते हैं कि यह शिवलिंग है क्योंकि नंदी इसे देख रहे हैं और स्थान से पता चलता है कि यह मूल ज्योतिर्लिंगों में से एक है। मुगलों ने मंदिर पर हमला किया। हम इसे अदालत में साबित करने में सक्षम होंगे और सुप्रीम कोर्ट इस मामले का फैसला करेगा। न्यायाधीश को स्थानीय आयुक्त की रिपोर्ट लेने के लिए अधिकृत किया गया है और हम साबित करेंगे कि यह मूल ज्योतिर्लिंग है।”

पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 पर विहिप नेता ने कहा, “मुझे विश्वास नहीं है कि 1991 अधिनियम इस पर लागू होगा। क्योंकि अधिनियम में कहा गया है कि यदि धार्मिक स्थान किसी अन्य अधिनियम पर काम करता है तो यह अधिनियम प्रभावी नहीं है।

काशी विश्वनाथ मंदिर के लिए पहले से ही एक अलग कानून है। आज सुप्रीम कोर्ट ने भी संकेत दिया है कि अधिनियम इस मामले की सुनवाई को नहीं रोकता है।”

इससे पहले शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद मामले को सिविल जज से जिला जज वाराणसी को ट्रांसफर करने का आदेश दिया था। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, सूर्यकांत और पीएस नरसिम्हा की पीठ ने आदेश दिया कि उत्तर प्रदेश उच्च न्यायिक सेवा के एक “वरिष्ठ और अनुभवी” न्यायिक अधिकारी को मामले की जांच करनी चाहिए।

पीठ ने कहा कि जिला जज को ज्ञानवापी-काशी विश्वनाथ में दीवानी मुकदमे की सुनवाई प्राथमिकता के आधार पर तय करनी चाहिए, जैसा कि प्रबंधन समिति अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद वाराणसी ने मांगा था।

नेशनल

ऑनलाइन फूड ऑर्डरिंग ऐप को मनमानी करने पर 103 के बदले देने पड़ेंगे 35,453 रु, जानें क्या है पूरा मामला

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हैदराबाद। ऑनलाइन फूड ऑर्डरिंग ऐप स्विगी को ग्राहक के साथ मनमानी करना भारी पड़ गया। कंपनी की इस मनमानी पर एक कोर्ट ने स्विगी पर तगड़ा जुर्माना ठोक दिया। हैदराबाद के निवासी एम्माडी सुरेश बाबू की शिकायत पर उपभोक्ता आयोग ने बड़ा फैसला सुनाया है। बाबू ने आरोप लगाया था कि स्विगी ने उनके स्विगी वन मेंबरशिप के लाभों का उल्लंघन किया और डिलीवरी Food Delivery की दूरी को जानबूझकर बढ़ाकर उनसे अतिरिक्त शुल्क वसूला

क्या है पूरा मामला ?

सुरेश बाबू ने 1 नवंबर, 2023 को स्विगी से खाना ऑर्डर किया था। सुरेश के लोकेशन और रेस्टॉरेंट की दूरी 9.7 किमी थी, जिसे स्विगी ने बढ़ाकर 14 किमी कर दिया था। दूरी में बढ़ोतरी की वजह से सुरेश को स्विगी का मेंबरशिप होने के बावजूद 103 रुपये का डिलीवरी चार्ज देना पड़ा। सुरेश ने आयोग में शिकायत दर्ज कराते हुए कहा कि स्विगी वन मेंबरशिप के तहत कंपनी 10 किमी तक की रेंज में फ्री डिलीवरी करने का वादा किया था।कोर्ट ने बाबू द्वारा दिए गए गूगल मैप के स्क्रीनशॉट्स और बाकी सबूतों की समीक्षा की और पाया कि दूरी में काफी बढ़ोतरी की गई है।

कोर्ट ने स्विगी को अनुचित व्यापार व्यवहार का दोषी पाया और कंपनी को आदेश दिया कि वे सुरेश बाबू को 9 प्रतिशत ब्याज के साथ 350.48 रुपये के खाने का रिफंड, डिलीवरी के 103 रुपये, मानसिक परेशानी और असुविधा के लिए 5000 रुपये, मुकदमे की लागत के लिए 5000 रुपए समेत कुल 35,453 रुपये का भुगतान करे।

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