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आध्यात्म

वृंदावन के इस मंदिर में अशोभनीय वस्त्र पहनकर आने पर रोक, लगाया अपील का बोर्ड

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temple of Vrindavan

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मथुरा। उप्र की धर्मनगरी मथुरा के वृंदावन के सप्त देवालयों में शामिल ठाकुर राधा दामोदर मंदिर में अमर्यादित (छोटे कपड़े) वस्त्र पहनकर दर्शन करने आने वालों पर रोक लगा दी गई है। मंदिर के गेट पर पुरुष और महिलाओं से ऐसे वस्त्र न पहनकर आने की अपील का बोर्ड लगा दिया है। सेवायत पूर्ण चंद गोस्वामी ने अन्य मंदिर संचालकों से भी ऐसे वस्त्र पहनकर आने वाले श्रद्धालुओं पर रोक लगाने का आह्वान किया है।

सनातनी संस्कृति में ऐसे वस्त्र पहनकर आना निषेध

उन्होंने बताया कि हमारी संस्कृति और शास्त्रों में मंदिरों में ऐसे वस्त्र पहनकर आना निषेध बताया है। बता दें कि देश के अलग-अलग हिस्सों से मंदिरों में मर्यादित वस्त्र पहनकर आने का आह्वान हो रहा है। उधर, बांकेबिहारी मंदिर के प्रबंधक ने कहा है कि धार्मिक स्थलों पर अमर्यादित वस्त्र पहनकर नहीं आना चाहिए। मंदिर की परंपरा का ध्यान रखना चाहिए।

अशोभनीय वस्त्र नहीं पहनें

पंचायती मंदिर ठा. राधारमण लाल के पदाधिकारी अनुभूति गोस्वामी ने कहा कि लोगों को धार्मिक स्थल पर अशोभनीय वस्त्र नहीं पहनने चाहिए। बाकी वह स्वतंत्र हैं कि कब क्या पहनें। यह सनातन संस्कृति और परंपरा के खिलाफ है।

गोस्वामी ने की ये अपील

ठा. राधावल्लभ मंदिर के सेवायत मुकेश बल्लभ गोस्वामी ने अपील का समर्थन करते हुए कहा कि सभी मंदिरों में ऐसा होना चाहिए। मंदिर की अपनी वेशभूषा होती है, देखते जा रहे हैं कि यहां फूहड़पन फैलाया जाता है जिस पर रोक लगनी ही चाहिए।

आध्यात्म

जानें भगवान गणेश की पूजा में क्यों नहीं किया जाता तुलसी का प्रयोग

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लखनऊ। गणेश चतुर्थी के महापर्व की शुरुआत हो चुकी है। घर-घर में गणेश जी के आगमन से लोगों में काफी उत्साह छाया हुआ है। प्रथम पूज्य गणेश जी के भोग, और प्रसाद के बारे में तो सभी जानते हैं। यही नहीं हम सबने गणेश जी से सम्बंधित कई कथाएं भी सुनी है। लेकिन आज हम आपको ऐसी गणेश जी से संबंधित ऐसी कथा बतायेंगे जिसके बारे में शायद ही आप जानते हो। जी हाँ आज हम आपको बताएँगे की गणेश पूजन के दौरान तुलसी का प्रयोग क्यों नहीं किया जाता।

दरअसल, इसके पीछे एक पौराणिक कथा है। इस कथा के अनुसार एक बार गणपति जी गंगा किनारे तपस्या कर रहे थे। उसी गंगा तट पर धर्मात्मज कन्या तुलसी भी अपने विवाह के लिए तीर्थयात्रा करती  हुईं, वहां पहुंची थी। गणेश जी रत्नजड़ित सिंहासन पर बैठे थे और चंदन के लेपन के साथ उनके शरीर पर अनेक रत्न जड़ित हार में उनकी छवि बेहद मनमोहक लग रही थी।

तपस्या में विलीन गणेश जी को देख तुलसी का मन उनकी ओर आकर्षित हो गया। उन्होंने गणपति जी को तपस्या से उठा कर उन्हें विवाह का प्रस्ताव दिया। तपस्या भंग होने से गणपति जी बेहद क्रोध में आ गए। गणेश जी ने तुलसी देवी के विवाह प्रस्ताव को ठुकरा दिया। गणेश जी से ना सुनने पर तुलसी देवी बेहद क्रोधित हो गईं, जिसके बाद तुलसी देवी ने गणेश जी को श्राप दिया कि उनके दो विवाह होंगे।

वहीं गणेश जी ने भी क्रोध में आकर तुलसी देवी को श्राप दिया कि उनका विवाह एक असुर से होगा। ये श्राप सुनते ही तुलसी जी को अपनी भूल का एहसास हुआ और वह गणेश जी से माफी मांगने लगीं। तब गणेश जी ने कहा कि तुम्हारा विवाह शंखचूर्ण राक्षस से होगा, लेकिन इसके बाद तुम पौधे का रूप धारण कर लोगी। ना तुम्हारा शाप खाली जाएगा ना मेरा। मैं रिद्धि और सिद्धि का पति बनूंगा और तुम्हारा भी विवाह राक्षस से होगा। लेकिन अंत में तुम भगवान विष्णु और श्री कृष्ण की प्रिया बनोगी और कलयुग में भगवान विष्णु के साथ तुम्हें पौधेे के रूप में  पूजा जाएगा लेकिन मेरी पूजा में तुलसी का प्रयोग नहीं किया जाएगा।

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