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प्रादेशिक

मप्र: भाजपा सरकार बनते ही पूरा हुआ बीजेपी नेता का संकल्प, पूर्व सीएम शिवराज ने पहनाए जूते

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former CM Shivraj wore shoes

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भोपाल। मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इन दिनों अमरकंटक के दौरे पर हैं। इस दौरान शिवराज ने अनूपपुर भाजपा जिला अध्यक्ष रामदास पुरी से मुलाकात की। दरअसल, रामदास पुरी ने संकल्प लिया था कि जब तक दोबारा भाजपा सरकार नहीं बन जाती, तब तक वह जूते-चप्पल नहीं पहनेंगे। पूर्व मुख्यमंत्री ने उनका संकल्प पूरा कराया है।

6 साल से रामदास पुरी ने नहीं पहनी चप्पल

मप्र में भाजपा की अनूपपुर जिला इकाई के प्रमुख रामदास पुरी ने 2017 में राज्य में पार्टी की सरकार बनने तक जूते नहीं पहनने की कसम खाई थी। उन्होंने पार्टी द्वारा विधानसभा चुनावों में शानदार जीत दर्ज करने के कुछ दिनों बाद शनिवार को इसे फिर से जूता पहनना शुरू कर दिया।

पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें खुद जूते पहनाकर अपना संकल्प पूरा किया है। चौहान ने कहा कि पुरी ने 2017 में जूते पहनना बंद कर दिया और फैसला किया कि जब तक राज्य में भाजपा सत्ता में नहीं आती, वह इसे नहीं पहनेंगे।

पूर्व सीएम ने किया पोस्ट

शिवराज सिंह चौहान ने अपने आधिकारिक एक्स अकाउंट पर पोस्ट किए गए एक वीडियो पोस्ट किया है। 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी सरकार बनाने में नाकाम रही, लेकिन 2020 में पार्टी के सत्ता में वापस आने के बाद भी पुरी ने जूते पहनना शुरू नहीं किया।

साथ ही उन्होंने लिखा, “पुरी जी एक मेहनती और समर्पित पार्टी कार्यकर्ता हैं, जिन्होंने 2017 से जूते-चप्पल पहनना छोड़ दिया था। छह साल तक वे हर मौसम – गर्मी, सर्दी या बारिश में नंगे पैर रहते थे। उनका संकल्प पूरा हो गया है। हम सभी ने अनुरोध किया था कि अब संकल्प पूरा हो गया है और आपको जूते पहनना शुरू कर देना चाहिए।”

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उत्तर प्रदेश

हर्षवर्धन और विक्रमादित्य जैसे प्रचंड पुरुषार्थी प्रशासक हैं योगी आदित्यनाथ : स्वामी अवधेशानंद गिरी

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महाकुम्भ नगर। जूना अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज ने महाकुम्भ 2025 के भव्य और सफल आयोजन के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तुलना प्राचीन भारत के महान शासकों हर्षवर्धन और विक्रमादित्य से की। उन्होंने कहा कि योगी आदित्यनाथ ने उन महान शासकों की परंपरा को नए युग में संवर्धित किया है। वे केवल एक शासक नहीं, बल्कि प्रचंड पुरुषार्थ और संकल्प के धनी व्यक्ति हैं। उनके प्रयासों ने महाकुम्भ को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है।

भारत की दृष्टि योगी आदित्यनाथ पर

स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज ने कहा कि भारत का भविष्य योगी आदित्यनाथ की ओर देख रहा है। भारत उनसे अनेक आकांक्षाएं, आशाएं और अपेक्षाएं रखे हुआ है। भारत की दृष्टि उनपर है। उनमें पुरुषार्थ और निर्भीकता है। वे अजेय पुरुष और संकल्प के धनी हैं। महाकुम्भ की विराटता, अद्भुत समागम, उत्कृष्ट प्रबंधन उनके संकल्प का परिणाम है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भारत का राष्ट्र ऋषि बताते हुए कहा कि उनके मार्गदर्शन और नेतृत्व में योगी जी ने महाकुम्भ को ऊंचाई पर पहुंचा दिया है। आस्था का यहां जो सागर उमड़ा है, इसके लिए योगी आदित्यनाथ ने बहुत श्रम किया है। चप्पे चप्पे पर उनकी दृष्टि है।

हम अभिभूत हैं ऐसे शासक और प्रशासक को पाकर

स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज ने कहा कि आज सनातन का सूर्य सर्वत्र अपने आलोक रश्मियों से विश्व को चमत्कृत कर रहा है। भारत की स्वीकार्यता बढ़ी है। संसार का हर व्यक्ति महाकुम्भ के प्रति आकर्षित हो रहा है। हर क्षेत्र में विशिष्ट प्रबंधन और उच्च स्तरीय व्यवस्था महाकुम्भ में दिख रही है। भक्तों के बड़े सैलाब को नियंत्रित किया जा रहा है। सुखद, हरित, स्वच्छ, पवित्र महाकुम्भ उनके संकल्प में साकार हो रहा है। हम अभिभूत हैं ऐसे शासक और प्रशासक को पाकर, जिनके सत्संकल्प से महाकुम्भ को विश्वव्यापी मान्यता मिली है। यूनेस्को ने इसे सांस्कृतिक अमूर्त धरोहर घोषित किया है। यहां दैवसत्ता और अलौकिकता दिखाई दे रही है। योगी आदित्यनाथ के प्रयास स्तुत्य और अनुकरणीय हैं तथा संकल्प पवित्र हैं। विश्व के लिए महाकुम्भ एक मार्गदर्शक बन रहा है, अनेक देशों की सरकारें सीख सकती हैं कि अल्पकाल में सीमित साधनों में विश्वस्तरीय व्यवस्था कैसे की जा सकती है।

आस्था का महासागर और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक

महामंडलेश्वर ने महाकुम्भ को सनातन संस्कृति का जयघोष और भारत की आर्ष परंपरा की दिव्यता का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि यह पर्व नर से नारायण और जीव से ब्रह्म बनने की यात्रा का संदेश देता है। महाकुम्भ को सामाजिक समरसता का प्रतीक बताते हुए उन्होंने कहा कि यह आयोजन दिखाता है कि हम अलग अलग जाति, मत और संप्रदाय के होने के बावजूद एकता के सूत्र में बंधे हैं। उन्होंने महाकुम्भ को गंगा के तट पर पवित्रता और संस्कृति का संगम बताया। गंगा में स्नान को आत्मा की शुद्धि और सामाजिक समरसता का प्रतीक बताया।

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