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प्रादेशिक

‘गैर हिंदू’ का प्रवेश वर्जित मंदिर में मुस्लिम मंत्री के साथ घुसे नीतीश कुमार, बवाल

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पटना। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ अल्पसंख्यक मंत्री मोहम्मद इसराइल मंसूरी के बोधगया के प्राचीन विष्णुपद मंदिर के गर्भगृह में घुसने पर बवाल मच गया। भाजपा और मंदिर प्रशासन दोनों ने कार्रवाई की बात कही है।

बताया जा रहा है कि मंदिर के बाहर पोस्टर में साफ लिखा है कि गैर-हिंदुओं का प्रवेश वर्जित लेकिन फिर भी इस्माइल मंसूरी प्रवेश कर गए। गर्भ गृह के अंदर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ मंसूरी खड़े होने के सबूत के तौर पर वीडियो और तस्वीरें सामने आईं।

भाजपा ने कहा है कि विष्णुपद मंदिर में इस तरह से मुस्लिम नेताओं के प्रवेश ने हिंदू भावनाओं को आहत किया है। वहीं मंदिर प्रशासन ने कहा कि पहली बार ऐसा हुआ है कि कोई मुस्लिम मंदिर में जानबूझकर प्रवेश कर गया। इतना ही नहीं सोशल मीडिया पर भी लोगों का आक्रोश भड़क गया है।

विधर्मियों ने मंदिर को किया अपमानित

विष्णुपद मंदिर में मंत्री इसराइल मंसूरी के जाने पर भाजपा हमलावर हो गई है। भाजपा के विस्फी विधायक और बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड के सदस्य हरिभूषण ठाकुर बचौल ने मंत्री के मंदिर में प्रवेश पर सवाल उठाते हुए कहा कि विधर्मियों ने मंदिर को अपमानित किया। जब मंदिर में लिखा हुआ है गैर हिंदू का प्रवेश वर्जित है, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हिंदूओं की भावना को आहत किया है।

नीतीश कुमार ने करोड़ों हिंदुओं की भावनाओं को पहुंचाई ठेस

विष्णुपद मंदिर के सचिव गजधर लाल पाठक ने कहा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मुस्लिम मंत्री मंसूरी के साथ मंदिर का दौरा किया जो हमारे कानून के खिलाफ है। इसमें साफ-साफ लिखा है कि मंदिर परिसर के अंदर किसी गैर-मुस्लिम को जाने की इजाजत नहीं है। नीतीश कुमार ने करोड़ों हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है। वह सभी से माफी मांगें, आगे की कार्रवाई मंदिर समितियों के साथ बैठक के बाद होगी।

मोहम्मद इसराइल मंसूरी ने दी सफाई

मीडिया से बात करते हुए, मोहम्मद इसराइल मंसूरी ने नीतीश कुमार के साथ मंदिर का दौरा करना स्वीकार किया। मंसूरी ने कहा कि यह महज एक संयोग है कि मैं मुख्यमंत्री के साथ विष्णुपद मंदिर के ‘गर्भगृह’ में प्रवेश किया और मुझे पूजा करने का अवसर मिला।

उत्तर प्रदेश

हर्षवर्धन और विक्रमादित्य जैसे प्रचंड पुरुषार्थी प्रशासक हैं योगी आदित्यनाथ : स्वामी अवधेशानंद गिरी

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महाकुम्भ नगर। जूना अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज ने महाकुम्भ 2025 के भव्य और सफल आयोजन के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तुलना प्राचीन भारत के महान शासकों हर्षवर्धन और विक्रमादित्य से की। उन्होंने कहा कि योगी आदित्यनाथ ने उन महान शासकों की परंपरा को नए युग में संवर्धित किया है। वे केवल एक शासक नहीं, बल्कि प्रचंड पुरुषार्थ और संकल्प के धनी व्यक्ति हैं। उनके प्रयासों ने महाकुम्भ को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है।

भारत की दृष्टि योगी आदित्यनाथ पर

स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज ने कहा कि भारत का भविष्य योगी आदित्यनाथ की ओर देख रहा है। भारत उनसे अनेक आकांक्षाएं, आशाएं और अपेक्षाएं रखे हुआ है। भारत की दृष्टि उनपर है। उनमें पुरुषार्थ और निर्भीकता है। वे अजेय पुरुष और संकल्प के धनी हैं। महाकुम्भ की विराटता, अद्भुत समागम, उत्कृष्ट प्रबंधन उनके संकल्प का परिणाम है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भारत का राष्ट्र ऋषि बताते हुए कहा कि उनके मार्गदर्शन और नेतृत्व में योगी जी ने महाकुम्भ को ऊंचाई पर पहुंचा दिया है। आस्था का यहां जो सागर उमड़ा है, इसके लिए योगी आदित्यनाथ ने बहुत श्रम किया है। चप्पे चप्पे पर उनकी दृष्टि है।

हम अभिभूत हैं ऐसे शासक और प्रशासक को पाकर

स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज ने कहा कि आज सनातन का सूर्य सर्वत्र अपने आलोक रश्मियों से विश्व को चमत्कृत कर रहा है। भारत की स्वीकार्यता बढ़ी है। संसार का हर व्यक्ति महाकुम्भ के प्रति आकर्षित हो रहा है। हर क्षेत्र में विशिष्ट प्रबंधन और उच्च स्तरीय व्यवस्था महाकुम्भ में दिख रही है। भक्तों के बड़े सैलाब को नियंत्रित किया जा रहा है। सुखद, हरित, स्वच्छ, पवित्र महाकुम्भ उनके संकल्प में साकार हो रहा है। हम अभिभूत हैं ऐसे शासक और प्रशासक को पाकर, जिनके सत्संकल्प से महाकुम्भ को विश्वव्यापी मान्यता मिली है। यूनेस्को ने इसे सांस्कृतिक अमूर्त धरोहर घोषित किया है। यहां दैवसत्ता और अलौकिकता दिखाई दे रही है। योगी आदित्यनाथ के प्रयास स्तुत्य और अनुकरणीय हैं तथा संकल्प पवित्र हैं। विश्व के लिए महाकुम्भ एक मार्गदर्शक बन रहा है, अनेक देशों की सरकारें सीख सकती हैं कि अल्पकाल में सीमित साधनों में विश्वस्तरीय व्यवस्था कैसे की जा सकती है।

आस्था का महासागर और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक

महामंडलेश्वर ने महाकुम्भ को सनातन संस्कृति का जयघोष और भारत की आर्ष परंपरा की दिव्यता का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि यह पर्व नर से नारायण और जीव से ब्रह्म बनने की यात्रा का संदेश देता है। महाकुम्भ को सामाजिक समरसता का प्रतीक बताते हुए उन्होंने कहा कि यह आयोजन दिखाता है कि हम अलग अलग जाति, मत और संप्रदाय के होने के बावजूद एकता के सूत्र में बंधे हैं। उन्होंने महाकुम्भ को गंगा के तट पर पवित्रता और संस्कृति का संगम बताया। गंगा में स्नान को आत्मा की शुद्धि और सामाजिक समरसता का प्रतीक बताया।

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