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OMG! विमान उड़ाते समय सो जाते हैं 66 फीसदी भारतीय पायलट

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नई दिल्ली। सोचिए अगर विमान में बैठे हुए हैं और आपको पता चल जाय कि विमान का पायलट सो रहा है तो आप पर क्या बीतेगी। एक हालिया अध्ययन में पाया गया है कि भारतीय एयरलाइन में काम करने वाले ज्यादातर पायलट नींद मार लेते हैं और अपने साथी क्रू मेंबर को इस बात की जानकारी भी नहीं देते हैं।

इस सर्वे में 542 पायलटों को शामिल किया गया था जिनमें से 358 (लगभग 66 प्रतिशत) ने यह बात स्वीकार की है। उन्होंने कहा है कि थकान की वजह से वह कॉकपिट में सो जाते हैं।

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यह सर्वे एक एनजीओ ‘सेफ्टी मैटर्स फाउंडेशन’ ने करवाया जिसमें घरेलू उड़ान के लिए काम करने वाले पायलटों को शामिल किया गया। आम तौर पर ये  पायलट 4 घंटे के लिए उड़ान भरते हैं। उनकी प्रतिक्रिया के मुताबिक 54 प्रतिशत पायलटों को दिन में सोने की जबरदस्त आदत है। वहीं 41 फीसदी वैसे हैं जो कि कभी-कभार सो जाते हैं।

विमान दुर्घटना के पीछ सबसे बड़ी वजह थकान

इस स्टडी में दावा किया गया है कि विमान दुर्घटना के पीछे मुख्य वजह भी यही होती है। बहुत सारे पायलट अपने जॉब के प्रेशर के साथ तालमेल नहीं बैठा  पाते हैं। आजकल यह ट्रेंड देखा जा रहा है कि एयरलाइन्स कम वर्कफोर्स में काम करवाना चाहती हैं। ऐसे में पायलटों के लिए काम के घंटे भी बढ़ गए हैं।

पहले पायलटों को हफ्तेभर में 30 घंटे की उड़ान भरनी होती थी। हालांकि अब प्रेशर इतना ज्यादा है कि हफ्तेभर बैक टु बैक फ्लाइट ले जानी पड़ती हैं। ऐसे में पायलट ज्यादा तनाव और थकान में रहते हैं। अगर कोई पायलट बैक टु बैक मॉर्निंग फ्लाइट लेकर जाता है तो वह अक्सर कॉकपिट में सो जाता है। स्टडी में यह भी कहा गया है कि सुबह की फ्लाइट ले जाने के लिए पायलट को 2 बजे रात में ही जागना पड़ता है।

जानकारों का कहना है कि सेफ्टी कल्चर को सुधारने की जरूरत है। यह एक सामान्य बात है कि वर्कफोर्स कम करके सुरक्षा के साथ समझौता नहीं किया जा सकता है। डीजीसीए ने फटिग रिस्क मैनेजमेंट सिस्टम को अब तक अनिवार्य नहीं किया है। डीजीसीए ने जो नियम बनाए भी हैं उनका भी पालन एयरलाइन्स नहीं करती हैं।

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बिहार का ‘उसैन बोल्ट’, 100 किलोमीटर तक लगातार दौड़ने वाला यह लड़का कौन

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चंपारण। बिहार का टार्जन आजकल खूब फेमस हो रहा है. बिहार के पश्चिम चंपारण के रहने वाले राजा यादव को लोगों ने बिहार टार्जन कहना शुरू कर दिया है. कारण है उनका लुक और बॉडी. 30 मार्च 2003 को बिहार के बगहा प्रखंड के पाकड़ गांव में जन्मे राज़ा यादव देश को ओलंपिक में गोल्ड मेडल दिलाना चाहते हैं.

लिहाजा दिन-रात एकक़र फिजिकल फिटनेस के साथ-साथ रेसलिंग में जुटे हैं. राज़ा को कुश्ती विरासत में मिली है. दादा जगन्नाथ यादव पहलवान और पिता लालबाबू यादव से प्रेरित होकर राज़ा यादव ने सेना में भर्ती होने की कोशिश की. सफलता नहीं मिली तो अब इलाके के युवाओं के लिए फिटनेस आइकॉन बन गए हैं.

महज 22 साल की उम्र में राजा यादव ‘उसैन बोल्ट’ बन गए. संसाधनों की कमी राजा की राह में रोड़ा बन रहा है. राजा ने एनडीटीवी से कहा कि अगर उन्हें मौका और उचित प्रशिक्षण मिले तो वे पहलवानी में देश का भी प्रतिनिधित्व कर सकते हैं. राजा ओलंपिक में गोल्ड मेडल लाने के लिए दिन रात मैदान में पसीना बहा रहे हैं. साथ ही अन्य युवाओं को भी पहलवानी के लिए प्रेरित कर रहे हैं.

’10 साल से मेहनत कर रहा हूं. सरकार ध्यान दे’

राजा यादव ने कहा, “मेरा जो टारगेट है ओलंपिक में 100 मीटर का और मेरी जो काबिलियत है उसे परखा जाए. इसके लिए मैं 10 सालों से मेहनत करते आ रहा हूं तो सरकार को भी ध्यान देना चाहिए. मेरे जैसे सैकड़ों लड़के गांव में पड़े हुए हैं. उन लोगों के लिए भी मांग रहा हूं कि उन्हें आगे बढ़ाने के लिए सुविधा मिले तो मेरी तरह और युवक उभर कर आएंगे.”

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