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उत्तर प्रदेश

युवक ने बनवाया सीएम योगी का मंदिर, लगाई धनुषधारी योगी की मूर्ति

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अयोध्या। धर्मनगरी अयोध्या के राम जन्मभूमि से लगभग 25 किलोमीटर दूर प्रयागराज हाईवे पर भरतकुंड के पास सीएम योगी का मंदिर बनाया गया है। यहां पूजा-अर्चना भी शुरू हो गई है। सुबह शाम आरती भी होती है और प्रसाद भी चढ़ाया जा रहा है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का यह मंदिर अयोध्या गोरखपुर हाईवे पर बनाया गया है। विशेष बात यह है कि यह मंदिर उस स्थान पर बनाया गया है जहां कभी भगवान श्रीराम के वनवास जाने पर उनके अनुज भरत ने भाई की खड़ाऊं रखी थी। इस स्थान का काफी महत्व है।

योगी का यह मंदिर उनके भक्त प्रभाकर मौर्य ने बनवाया है। अब इसके चर्चे दूर-दूर तक हो रहे हैं। आसपास के इलाकों से लोग मंदिर देखने आ रहे हैं। प्रभाकर मौर्य ने कहा कि जो राम का मंदिर बनवाया है हमने उनका मंदिर बनवाया है।

उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यों से वह बेहद प्रभावित हैं। मुख्यमंत्री ने जिस तरह से लोक कल्याण के काम किए हैं उससे उन्होंने भगवान जैसा स्थान हासिल कर लिया है। इसीलिए उनके मन में मुख्यमंत्री का मंदिर बनाने का विचार आया।

मंदिर में धनुषधारी योगी की लगाई गई मूर्ति

भरत की तपोस्थली भरत कुंड से 3 किलोमीटर दूर मसौधा ब्लाक के मौर्या का पुरवा में रहने वाला  प्रभाकर मौर्य ने अपने ही गांव में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का मंदिर बना दिया है। मंदिर में योगी आदित्यनाथ की आदमकद की मूर्ति बनाई है, जिसे धनुषधारी का अवतार रूप दिया है।

यही नहीं इस मंदिर बाकायदा भजन के साथ आरती, पूजन उसके बाद भोग भी लगाया जा रहा है। मंदिर का नाम भी योगी मंदिर रखा है और उनके कार्यों से प्रसन्न होकर उनके नाम से भजन भी तैयार कर रहा है।

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का था संकल्प

योगी प्रचारक प्रभाकर मौर्या ने कहा कि अयोध्या में भगवान श्री राम के भव्य मंदिर का निर्माण कराने वाले का मंदिर अपने गांव में बनवाने का संकल्प लिया था। आज श्री रामलला के भव्य मंदिर का निर्माण हो रहा है। इसलिए आमजन के संकल्प को पूरा करते हुए योगी आदित्यनाथ के नाम पर श्री योगी मंदिर का निर्माण कराया है।

उत्तर प्रदेश

हर्षवर्धन और विक्रमादित्य जैसे प्रचंड पुरुषार्थी प्रशासक हैं योगी आदित्यनाथ : स्वामी अवधेशानंद गिरी

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महाकुम्भ नगर। जूना अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज ने महाकुम्भ 2025 के भव्य और सफल आयोजन के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तुलना प्राचीन भारत के महान शासकों हर्षवर्धन और विक्रमादित्य से की। उन्होंने कहा कि योगी आदित्यनाथ ने उन महान शासकों की परंपरा को नए युग में संवर्धित किया है। वे केवल एक शासक नहीं, बल्कि प्रचंड पुरुषार्थ और संकल्प के धनी व्यक्ति हैं। उनके प्रयासों ने महाकुम्भ को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है।

भारत की दृष्टि योगी आदित्यनाथ पर

स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज ने कहा कि भारत का भविष्य योगी आदित्यनाथ की ओर देख रहा है। भारत उनसे अनेक आकांक्षाएं, आशाएं और अपेक्षाएं रखे हुआ है। भारत की दृष्टि उनपर है। उनमें पुरुषार्थ और निर्भीकता है। वे अजेय पुरुष और संकल्प के धनी हैं। महाकुम्भ की विराटता, अद्भुत समागम, उत्कृष्ट प्रबंधन उनके संकल्प का परिणाम है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भारत का राष्ट्र ऋषि बताते हुए कहा कि उनके मार्गदर्शन और नेतृत्व में योगी जी ने महाकुम्भ को ऊंचाई पर पहुंचा दिया है। आस्था का यहां जो सागर उमड़ा है, इसके लिए योगी आदित्यनाथ ने बहुत श्रम किया है। चप्पे चप्पे पर उनकी दृष्टि है।

हम अभिभूत हैं ऐसे शासक और प्रशासक को पाकर

स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज ने कहा कि आज सनातन का सूर्य सर्वत्र अपने आलोक रश्मियों से विश्व को चमत्कृत कर रहा है। भारत की स्वीकार्यता बढ़ी है। संसार का हर व्यक्ति महाकुम्भ के प्रति आकर्षित हो रहा है। हर क्षेत्र में विशिष्ट प्रबंधन और उच्च स्तरीय व्यवस्था महाकुम्भ में दिख रही है। भक्तों के बड़े सैलाब को नियंत्रित किया जा रहा है। सुखद, हरित, स्वच्छ, पवित्र महाकुम्भ उनके संकल्प में साकार हो रहा है। हम अभिभूत हैं ऐसे शासक और प्रशासक को पाकर, जिनके सत्संकल्प से महाकुम्भ को विश्वव्यापी मान्यता मिली है। यूनेस्को ने इसे सांस्कृतिक अमूर्त धरोहर घोषित किया है। यहां दैवसत्ता और अलौकिकता दिखाई दे रही है। योगी आदित्यनाथ के प्रयास स्तुत्य और अनुकरणीय हैं तथा संकल्प पवित्र हैं। विश्व के लिए महाकुम्भ एक मार्गदर्शक बन रहा है, अनेक देशों की सरकारें सीख सकती हैं कि अल्पकाल में सीमित साधनों में विश्वस्तरीय व्यवस्था कैसे की जा सकती है।

आस्था का महासागर और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक

महामंडलेश्वर ने महाकुम्भ को सनातन संस्कृति का जयघोष और भारत की आर्ष परंपरा की दिव्यता का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि यह पर्व नर से नारायण और जीव से ब्रह्म बनने की यात्रा का संदेश देता है। महाकुम्भ को सामाजिक समरसता का प्रतीक बताते हुए उन्होंने कहा कि यह आयोजन दिखाता है कि हम अलग अलग जाति, मत और संप्रदाय के होने के बावजूद एकता के सूत्र में बंधे हैं। उन्होंने महाकुम्भ को गंगा के तट पर पवित्रता और संस्कृति का संगम बताया। गंगा में स्नान को आत्मा की शुद्धि और सामाजिक समरसता का प्रतीक बताया।

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