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उत्तर प्रदेश

उप्र में घटी है बेरोजगारी दर, प्रति व्यक्ति आय में भी साल दर साल तेज हुई बढ़ोतरी 

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लखनऊ। बेरोजगारी के मुद्दे पर बेशक विपक्ष उप्र की योगी सरकार पर हमलावर रहा हो लेकिन केंद्र सरकार के सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार बीते छह वर्षों के दौरान प्रदेश में बेरोजगारी दर घटी है। विकास के कुछ अन्य संकेतकों में भी प्रदेश ने जबरदस्त बढ़ोतरी की है।

साल 2017 से प्रदेश में बेरोजगारी दर में लगातार गिरावट दर्ज की गई है। वर्ष 2017-18 में प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्र में बेरोजगारी दर प्रति हजार जनसंख्या पर 55 थी तो 2018-19 में यह घटकर 43 हुई और 2019-20 में 32 हो गई। 2020-21 में भी बेरोजगारी दर 32 पर स्थिर रही। आंध्र प्रदेश (33), हरियाणा (54), राजस्थान (36), तमिलनाडु (48) और तेलंगाना (34) जैसे राज्यों की तुलना में यह काफी कम है।

प्रदेश के नगरीय क्षेत्र में वर्ष 2017-18 में बेरोजगारी दर प्रति हजार जनसंख्या पर 97 थी, जबकि 2019-20 में यह 88 और 2020-21 में 80 पर आ गई। कांग्रेस शासित राजस्थान (102) की तुलना में यह काफी कम है।

प्रति व्यक्ति आय में भी साल दर साल तेज बढ़ोतरी हुई है। 2017-18 में उप्र में प्रति व्यक्ति आय 57944 रुपये थी जो 2018-19 में 62350 रुपये, 2019-20 में 65666 रुपये, 2020-21 में 61666 रुपये और 2021-22 में 68810 रुपये पहुंच गई। प्रदेश में कारखानों की संख्या में भी वृद्धि हुई है।

2017-18 में जहां 15830 कारखाने थे, वहीं 2019-20 यह संख्या 16184 पर पहुंच गई। हरियाणा, कर्नाटक, मप्र, राजस्थान, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य कारखानों की संख्या के मामले में उप्र से पीछे हैं।

प्रदेश में ऊर्जा की उपलब्धता में भी वृद्धि हुई है। 2017-18 में 11830 करोड़ यूनिट की तुलना में 2021-22 में यह 12831 करोड़ यूनिट पहुंच गई। बिजली उत्पादन की क्षमता में भी प्रदेश आगे बढ़ा है। 2017-18 में जहां उप्र में बिजली उत्पादन क्षमता 24909 मेगावाट थी, वहीं 2021-22 में यह 29230 मेगावाट पहुंच गई है।

राष्ट्रीय राजमार्ग की लंबाई में भी उप्र ने उल्लेखनीय प्रगति की है। 2017-18 में प्रदेश में राष्ट्रीय राजमार्ग की लंबाई 9017 किमी थी जो 2021-22 में 12245 किमी. तक पहुंच गई।

शिक्षा, लोक स्वास्थ्य और परिवार कल्याण पर भी राज्य सरकार ने खर्च बढ़ाया है। वर्ष 2017-18 में इन सेक्टरों पर कुल व्यय का बजट का 5.3 प्रतिशत था जो 2021-22 में 5.9 प्रतिशत हो गया।

यह गुजरात, हरियाणा, महाराष्ट्र समेत कई राज्यों से बेहतर है। प्रदेश सरकार ने सामाजिक सेक्टर में भी अच्छी खासी बढ़ोतरी की है। 2019-20 में जहां योगी सरकार ने इस सेक्टर पर 142287.7 करोड़ रुपये खर्च किए थे तो वहीं 2021-22 में यह खर्च 211660.8 करोड़ रुपये हो गया। यह सभी प्रमुख राज्यों में सबसे ज्यादा है।

उत्तर प्रदेश

हर्षवर्धन और विक्रमादित्य जैसे प्रचंड पुरुषार्थी प्रशासक हैं योगी आदित्यनाथ : स्वामी अवधेशानंद गिरी

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महाकुम्भ नगर। जूना अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज ने महाकुम्भ 2025 के भव्य और सफल आयोजन के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तुलना प्राचीन भारत के महान शासकों हर्षवर्धन और विक्रमादित्य से की। उन्होंने कहा कि योगी आदित्यनाथ ने उन महान शासकों की परंपरा को नए युग में संवर्धित किया है। वे केवल एक शासक नहीं, बल्कि प्रचंड पुरुषार्थ और संकल्प के धनी व्यक्ति हैं। उनके प्रयासों ने महाकुम्भ को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है।

भारत की दृष्टि योगी आदित्यनाथ पर

स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज ने कहा कि भारत का भविष्य योगी आदित्यनाथ की ओर देख रहा है। भारत उनसे अनेक आकांक्षाएं, आशाएं और अपेक्षाएं रखे हुआ है। भारत की दृष्टि उनपर है। उनमें पुरुषार्थ और निर्भीकता है। वे अजेय पुरुष और संकल्प के धनी हैं। महाकुम्भ की विराटता, अद्भुत समागम, उत्कृष्ट प्रबंधन उनके संकल्प का परिणाम है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भारत का राष्ट्र ऋषि बताते हुए कहा कि उनके मार्गदर्शन और नेतृत्व में योगी जी ने महाकुम्भ को ऊंचाई पर पहुंचा दिया है। आस्था का यहां जो सागर उमड़ा है, इसके लिए योगी आदित्यनाथ ने बहुत श्रम किया है। चप्पे चप्पे पर उनकी दृष्टि है।

हम अभिभूत हैं ऐसे शासक और प्रशासक को पाकर

स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज ने कहा कि आज सनातन का सूर्य सर्वत्र अपने आलोक रश्मियों से विश्व को चमत्कृत कर रहा है। भारत की स्वीकार्यता बढ़ी है। संसार का हर व्यक्ति महाकुम्भ के प्रति आकर्षित हो रहा है। हर क्षेत्र में विशिष्ट प्रबंधन और उच्च स्तरीय व्यवस्था महाकुम्भ में दिख रही है। भक्तों के बड़े सैलाब को नियंत्रित किया जा रहा है। सुखद, हरित, स्वच्छ, पवित्र महाकुम्भ उनके संकल्प में साकार हो रहा है। हम अभिभूत हैं ऐसे शासक और प्रशासक को पाकर, जिनके सत्संकल्प से महाकुम्भ को विश्वव्यापी मान्यता मिली है। यूनेस्को ने इसे सांस्कृतिक अमूर्त धरोहर घोषित किया है। यहां दैवसत्ता और अलौकिकता दिखाई दे रही है। योगी आदित्यनाथ के प्रयास स्तुत्य और अनुकरणीय हैं तथा संकल्प पवित्र हैं। विश्व के लिए महाकुम्भ एक मार्गदर्शक बन रहा है, अनेक देशों की सरकारें सीख सकती हैं कि अल्पकाल में सीमित साधनों में विश्वस्तरीय व्यवस्था कैसे की जा सकती है।

आस्था का महासागर और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक

महामंडलेश्वर ने महाकुम्भ को सनातन संस्कृति का जयघोष और भारत की आर्ष परंपरा की दिव्यता का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि यह पर्व नर से नारायण और जीव से ब्रह्म बनने की यात्रा का संदेश देता है। महाकुम्भ को सामाजिक समरसता का प्रतीक बताते हुए उन्होंने कहा कि यह आयोजन दिखाता है कि हम अलग अलग जाति, मत और संप्रदाय के होने के बावजूद एकता के सूत्र में बंधे हैं। उन्होंने महाकुम्भ को गंगा के तट पर पवित्रता और संस्कृति का संगम बताया। गंगा में स्नान को आत्मा की शुद्धि और सामाजिक समरसता का प्रतीक बताया।

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