अन्तर्राष्ट्रीय
UPI के जरिए श्रीलंका में भी होगा भुगतान: भारत व SL ने स्वीकार किया दृष्टिपत्र
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे की उपस्थिति में भारत और श्रीलंका के बीच कई समझौतों का आदान-प्रदान किया गया। इनमें से एक समझौता श्रीलंका में UPI स्वीकृति के लिए नेटवर्क-टू-नेटवर्क डील के लिए भी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे के बीच व्यापक बातचीत के बाद भारत और श्रीलंका ने आर्थिक साझेदारी को विस्तार देने के लिए शुक्रवार को एक महत्वाकांक्षी दृष्टिपत्र स्वीकार किया। इस दौरान पीएम ने कहा, “आज हमने हमारी आर्थिक साझेदारी के लिए एक विज़न डॉक्यूमेंट अपनाया है। यह विजन है- दोनों देशों के लोगों के बीच समुद्री, हवाई, ऊर्जा और पीपल-टू-पीपल कनेक्टिविटी को मजबूती देने का।”
पीएम मोदी ने पिछले साल श्रीलंका में आई आर्थिक कठिनाइयों का जिक्र करते हुए अपने बयान में कहा कि भारत संकट के दौरान एक करीबी दोस्त के रूप में द्वीपीय राष्ट्र के लोगों के साथ ‘कंधे से कंधा’ मिलाकर खड़ा रहा। प्रधानमंत्री ने कहा कि श्रीलंका में यूपीआई भुगतान प्रणाली शुरू करने के लिए एक समझौते को अंतिम रूप देने से दोनों पक्षों के बीच फिनटेक कनेक्टिविटी होगी।
उन्होंने कहा कि पिछला एक साल श्रीलंका के लोगों के लिए चुनौतियों से भरा रहा है और एक करीबी दोस्त होने के नाते हमेशा की तरह भारत श्रीलंका के लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है। मोदी ने अपनी टिप्पणियों में कहा कि भारत और श्रीलंका के सुरक्षा हित और विकास एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और एक दूसरे के सुरक्षा हितों और संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए मिलकर काम करना जरूरी है। मोदी ने कहा कि आर्थिक साझेदारी के लिए एक दृष्टि पत्र स्वीकार किया गया है।
उन्होंने कहा कि पर्यटन, बिजली, व्यापार, उच्च शिक्षा, कौशल विकास और कनेक्टिविटी के क्षेत्रों में आपसी सहयोग में तेजी लाने का दृष्टिकोण है। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के लोगों के बीच समुद्री, वायु, ऊर्जा और लोगों के बीच संपर्क को मजबूत करने का दृष्टिकोण है।
pm मोदी ने यह भी कहा कि यह तय किया गया कि आर्थिक और तकनीकी सहयोग पर एक समझौते पर जल्द ही बातचीत शुरू होगी। उन्होंने यह भी उम्मीद जताई कि श्रीलंका सरकार तमिल समुदाय की आकांक्षाओं को पूरा करेगी।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत-श्रीलंका पेट्रोलियम पाइपलाइन पर व्यवहार्यता का अध्ययन किया जाएगा। मछुआरों के मुद्दे पर प्रधानमंत्री ने कहा कि इसे मानवीय दृष्टिकोण के तहत संभाला जाना चाहिए। श्रीलंका के राष्ट्रपति ने कहा, ‘हमारा मानना है कि भारत का विकास इसके पड़ोस और हिंद महासागर क्षेत्र के लिए फायदेमंद होगा।
अन्तर्राष्ट्रीय
अमेरिका ने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र समेत भारत के तीन शीर्ष परमाणु संस्थानों से हटाए प्रतिबंध
नई दिल्ली। अमेरिका ने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बार्क) समेत भारत के तीन शीर्ष परमाणु संस्थानों से बुधवार को प्रतिबंध हटा लिया। इससे अमेरिका के लिए भारत को असैन्य परमाणु प्रौद्योगिकी साझा करने का रास्ता साफ हो जाएगा। बाइडन प्रशासन ने कार्यकाल के आखिरी हफ्ते और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन की भारत यात्रा के एक हफ्ते बाद यह घोषणा की। 1998 में पोकरण में परमाणु परीक्षण करने और परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर न करने पर अमेरिका ने यह प्रतिबंध लगाया था।
अमेरिका के उद्योग और सुरक्षा ब्यूरो (बीआईएस) के अनुसार, बार्क के अलावा इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र (आईजीसीएआर) और इंडियन रेयर अर्थ्स (आईआरई) पर से प्रतिबंध हटाया गया है। तीनों संस्थान भारत के परमाणु ऊर्जा विभाग के अंतर्गत काम करते हैं और परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में किए जाने वाले कार्यों पर निगरानी रखते हैं। बीआईएस ने कहा, इस निर्णय का उद्देश्य संयुक्त अनुसंधान और विकास तथा विज्ञान व प्रौद्योगिकी सहयोग सहित उन्नत ऊर्जा सहयोग में बाधाओं को कम करके अमेरिकी विदेश नीति के उद्देश्यों का समर्थन करना है, जो साझा ऊर्जा सुरक्षा जरूरतों और लक्ष्यों की ओर ले जाएगा। अमेरिका व भारत शांतिपूर्ण परमाणु सहयोग और संबंधित अनुसंधान और विकास गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
परमाणु समझौते का क्रियान्वयन होगा आसान
प्रतिबंध हटाने के फैसले को 16 साल पहले भारत और अमेरिका के बीच हुए नागरिक परमाणु समझौते के कार्यान्वयन को सुविधाजनक बनाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। दोनों देशों में 2008 में तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह और अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के कार्यकाल के दौरान समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे।
भारत यात्रा पर सुलिवन ने प्रतिबंध हटाने की बात कही थी
अपनी भारत यात्रा के दौरान जैक सुलिवन ने कहा था, साझेदारी मजबूत करने के लिए बड़ा कदम उठाने का समय आ गया है। पूर्व राष्ट्रपति बुश और पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह ने 20 साल पहले असैन्य परमाणु सहयोग का दृष्टिकोण रखा था, लेकिन हम अभी भी इसे पूरी तरह से साकार नहीं कर पाए हैं।
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