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लश्‍कर सरगना हाफिज सईद का बेटा लापता, मोस्‍ट वॉन्‍टेड आतंकी का रो-रोकर बुरा हाल

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Hafiz saeed son missing

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पेशावर। मोस्‍ट वॉन्‍टेड आतंकी और मुंबई हमलों के मास्‍टरमाइंड हाफिज सईद के बेटे का कुछ दिनों से कोई अता-पता नहीं है। हाफिज सईद के बेटे कमालुद्दीन के बारे में कोई भी जानकारी फिलहाल सामने नहीं आई है। बाप की तरह बेटा भी मोस्‍ट वॉन्‍टेड आतंकवादी है।

हाफिज सईद अपने बेटे को लेकर बेचैन है। बताया जा रहा है कि उसका बेटा कमालुद्दीन सईद 26 सितंबर से गायब है और उसका कुछ पता नहीं चल रहा है। कहा जा रहा है कि पेशावर में उसे आखिरी बार देखा गया था। सूत्रों के मुताबिक कमालुद्दीन को कुछ बदमाशों एक कार में लेकर कहीं चले गए हैं। पाकिस्तान के कई सीनियर पत्रकारों ने दावा किया है कि इंटेलीजेंस एजेंसी ISI भी उसका पता नहीं लगा पाई है।

कहां गया कमालुद्दीन?

सूत्रों की तरफ से बताया जा रहा है कि कमालुद्दीन को कुछ लोग कार में लेकर कहीं चले गए हैं। उसकी गुमशुदगी की खबर से ISI में हड़कंप मच गया है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि बेटे के गायब होने के बाद से बाप हाफिज सईद का भी बुरा हाल है। वह बस रोए जा रहा है। पाकिस्‍तान की मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक कमालुउद्दीन को तीन लोग अपने साथ लेकर गए हैं।

जून 2021 में हाफिज के लाहौर के जौहर शहर में स्थित घर के बाहर एक ब्‍लास्‍ट हुआ था जिसमें तीन लोगों की मौत हो गई थी। मार्च, 2023 में पाकिस्तान की एक आतंकवाद विरोधी अदालत ने लाहौर में तीन लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

जेल में बंद हाफिज

पाकिस्‍तानी नागरिक हाफिज सईद इस समय पाकिस्तान की जेल में बंद है। हाफिज पाकिस्तान के आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा सरगना है। लश्‍कर को संयुक्त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद के साथ साथ भारत, अमेरिका, यूरोपियन यूनियन, रूस और ऑस्ट्रेलिया ने एक आतंकी संगठन घोषित किया हुआ है। वहीं हाफिज भी मोस्‍ट वॉन्‍टेड आतंकी है। सईद पर अमेरिका ने 10 मिलियन डॉलर का इनाम रखा है। वह जुलाई 2019 से ही पाकिस्‍तान की जेल में बंद है। सईद एक और आतंकी संगठन को चलाता है जिसे जमात-उद-दावा (JuD) के नाम से जाना जाता है।

एक के बाद एक ठिकाने लगते आ‍तंकी

ISI एक के बाद एक लश्‍कर के आतंकियों पर आती मुसीबतों से परेशान है। हाल ही में कराची के गुलिस्तान-ए-जौहर स्थित एक पार्क में मौलवी मौलाना जियाउर्रहमान की हत्या कर दी गई थी। रहमान की हत्या दो मोटरसाइकिल सवार अज्ञात बंदूकधारियों ने की।

उन्‍होंने रहमान पर कई राउंड गोलियां बरसाई। रहमान लश्कर का ही एक ऑपरेटिव था। उसकी हत्या खालिस्तान कमांडो फोर्स (KCF) के म‍ुखिया परमजीत सिंह पंजवार की तर्ज पर ही हुई। कुछ दिनों पहले पीओके में भी लश्‍कर के एक आतंकी अबु कासिम को ढेर कर दिया गया था।

अन्तर्राष्ट्रीय

अमेरिका ने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र समेत भारत के तीन शीर्ष परमाणु संस्थानों से हटाए प्रतिबंध

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नई दिल्ली। अमेरिका ने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बार्क) समेत भारत के तीन शीर्ष परमाणु संस्थानों से बुधवार को प्रतिबंध हटा लिया। इससे अमेरिका के लिए भारत को असैन्य परमाणु प्रौद्योगिकी साझा करने का रास्ता साफ हो जाएगा। बाइडन प्रशासन ने कार्यकाल के आखिरी हफ्ते और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन की भारत यात्रा के एक हफ्ते बाद यह घोषणा की। 1998 में पोकरण में परमाणु परीक्षण करने और परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर न करने पर अमेरिका ने यह प्रतिबंध लगाया था।

अमेरिका के उद्योग और सुरक्षा ब्यूरो (बीआईएस) के अनुसार, बार्क के अलावा इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र (आईजीसीएआर) और इंडियन रेयर अर्थ्स (आईआरई) पर से प्रतिबंध हटाया गया है। तीनों संस्थान भारत के परमाणु ऊर्जा विभाग के अंतर्गत काम करते हैं और परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में किए जाने वाले कार्यों पर निगरानी रखते हैं। बीआईएस ने कहा, इस निर्णय का उद्देश्य संयुक्त अनुसंधान और विकास तथा विज्ञान व प्रौद्योगिकी सहयोग सहित उन्नत ऊर्जा सहयोग में बाधाओं को कम करके अमेरिकी विदेश नीति के उद्देश्यों का समर्थन करना है, जो साझा ऊर्जा सुरक्षा जरूरतों और लक्ष्यों की ओर ले जाएगा। अमेरिका व भारत शांतिपूर्ण परमाणु सहयोग और संबंधित अनुसंधान और विकास गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

परमाणु समझौते का क्रियान्वयन होगा आसान

प्रतिबंध हटाने के फैसले को 16 साल पहले भारत और अमेरिका के बीच हुए नागरिक परमाणु समझौते के कार्यान्वयन को सुविधाजनक बनाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। दोनों देशों में 2008 में तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह और अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के कार्यकाल के दौरान समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे।

भारत यात्रा पर सुलिवन ने प्रतिबंध हटाने की बात कही थी

अपनी भारत यात्रा के दौरान जैक सुलिवन ने कहा था, साझेदारी मजबूत करने के लिए बड़ा कदम उठाने का समय आ गया है। पूर्व राष्ट्रपति बुश और पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह ने 20 साल पहले असैन्य परमाणु सहयोग का दृष्टिकोण रखा था, लेकिन हम अभी भी इसे पूरी तरह से साकार नहीं कर पाए हैं।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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