अन्तर्राष्ट्रीय
जी20 के घोषणा पत्र से गदगद है रूस, कहा- स्पष्ट मार्गदर्शक साबित हुआ यह सम्मेलन
मॉस्को। भारत में जी20 शिखर सम्मेलन का समापन हो गया। शनिवार को इस शिखर सम्मेलन का घोषणा पत्र जारी किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात का ऐलान किया कि इस घोषणा पत्र को सभी सदस्यों की मंजूरी मिल गई है। जहां यूक्रेन इस घोषणा पत्र से नाराज है तो वहीं रूस इससे काफी खुश है।
सम्मेलन के लिए भारत आए रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने भारत की अध्यक्षता में हुए सम्मेलन को एक मील का पत्थर करार दिया है। लावरोव ने सम्मेलन के समापन पर भारत की मीडिया से बात की और रूस की तरफ से आधिकारिक बयान जारी किया।
तय करना है लंबा सफर
रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा, ‘अभी एक लंबा सफर तय करना है लेकिन यह शिखर सम्मेलन मील का पत्थर रहा है। मैं भारत की अध्यक्षता की सक्रिय भूमिका का भी जिक्र करना चाहूंगा जिसने वास्तव में ग्लोबल साउथ से जी20 देशों को एकजुट किया है।’ उनकी मानें तो यह इतिहास में पहली बार हुआ है जब ग्लोबल साउथ के देश एक साथ आए हैं।
उन्होंने कहा कि ब्रिक्स में साथी ब्राजील, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका विशेष रूप से सक्रिय रहे हैं। लावरोव ने कहा, ‘अपने वैध हितों को बनाए रखने और उनकी रक्षा करने के लिए वैश्विक दक्षिण देशों की तरफ से जो स्थिति ली गई उसके लिए धन्यवाद।’
सम्मेलन को बताया मार्गदर्शक
लावरोव के मुताबिक यह शिखर सम्मेलन एक स्पष्ट मार्गदर्शक के तौर पर साबित हुआ है। लावरोव की मानें तो ब्रिक्स देशों ने जिस तरह से पश्चिमी देशों को एजेंडे का यूक्रेनीकरण करने में असमर्थ बनाया गया वह तारीफ की बात है।
लावरोव के शब्दों में, ‘जैसे ही हम यूक्रेन के बारे में बात करना शुरू करते हैं, पश्चिम एक तर्क वाली चर्चा को बनाए रखने में असमर्थ है। वह केवल यह मांग कर सकता है कि रूस अपनी आक्रामकता बंद करे और यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता को बहाल करे। लेकिन संयुक्त राष्ट्र चार्टर में भी समानता के सिद्धांत का भी उल्लेख किया।
यूक्रेन ने खुद खत्म की शांति
उन्होंने कहा कि यूक्रेन ने अपने देश की क्षेत्रीय अखंडता को अपने हाथों से नष्ट किया है। लावरोव ने कहा, ‘मेरा मानना है कि हमारे कुछ पश्चिमी सहयोगी भी इसे समझते हैं लेकिन आप अच्छी तरह जानते हैं कि वो रूस की रणनीतिक हार पर बाजी खेल रहे हैं।’
भारत में जारी घोषणा पत्र में युक्रेन युद्ध का जिक्र तो था लेकिन इसमें रूस का सीधे तौर पर जिक्र नहीं किया गया। भारत ने स्पष्ट कर दिया कि जी20 भू-राजनीतिक मुद्दों को हल करने का मंच नहीं है। घोषणापत्र में यह स्वीकार किया गया इन मुद्दों का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ सकता है।
अन्तर्राष्ट्रीय
अमेरिका ने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र समेत भारत के तीन शीर्ष परमाणु संस्थानों से हटाए प्रतिबंध
नई दिल्ली। अमेरिका ने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बार्क) समेत भारत के तीन शीर्ष परमाणु संस्थानों से बुधवार को प्रतिबंध हटा लिया। इससे अमेरिका के लिए भारत को असैन्य परमाणु प्रौद्योगिकी साझा करने का रास्ता साफ हो जाएगा। बाइडन प्रशासन ने कार्यकाल के आखिरी हफ्ते और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन की भारत यात्रा के एक हफ्ते बाद यह घोषणा की। 1998 में पोकरण में परमाणु परीक्षण करने और परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर न करने पर अमेरिका ने यह प्रतिबंध लगाया था।
अमेरिका के उद्योग और सुरक्षा ब्यूरो (बीआईएस) के अनुसार, बार्क के अलावा इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र (आईजीसीएआर) और इंडियन रेयर अर्थ्स (आईआरई) पर से प्रतिबंध हटाया गया है। तीनों संस्थान भारत के परमाणु ऊर्जा विभाग के अंतर्गत काम करते हैं और परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में किए जाने वाले कार्यों पर निगरानी रखते हैं। बीआईएस ने कहा, इस निर्णय का उद्देश्य संयुक्त अनुसंधान और विकास तथा विज्ञान व प्रौद्योगिकी सहयोग सहित उन्नत ऊर्जा सहयोग में बाधाओं को कम करके अमेरिकी विदेश नीति के उद्देश्यों का समर्थन करना है, जो साझा ऊर्जा सुरक्षा जरूरतों और लक्ष्यों की ओर ले जाएगा। अमेरिका व भारत शांतिपूर्ण परमाणु सहयोग और संबंधित अनुसंधान और विकास गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
परमाणु समझौते का क्रियान्वयन होगा आसान
प्रतिबंध हटाने के फैसले को 16 साल पहले भारत और अमेरिका के बीच हुए नागरिक परमाणु समझौते के कार्यान्वयन को सुविधाजनक बनाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। दोनों देशों में 2008 में तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह और अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के कार्यकाल के दौरान समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे।
भारत यात्रा पर सुलिवन ने प्रतिबंध हटाने की बात कही थी
अपनी भारत यात्रा के दौरान जैक सुलिवन ने कहा था, साझेदारी मजबूत करने के लिए बड़ा कदम उठाने का समय आ गया है। पूर्व राष्ट्रपति बुश और पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह ने 20 साल पहले असैन्य परमाणु सहयोग का दृष्टिकोण रखा था, लेकिन हम अभी भी इसे पूरी तरह से साकार नहीं कर पाए हैं।
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