उत्तराखंड
हल्द्वानी में बुलडोज़र चलने पर ‘सुप्रीम’ रोक, हाईकोर्ट के फैसले पर SC का स्टे
देहरादून/नई दिल्ली। उत्तराखंड के हल्द्वानी में रेलवे की 29 एकड़ जमीन पर बसी गफूर बस्ती के अतिक्रमण को हटाने के उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले पर सर्वोच्च अदालत ने रोक लगा दी है। अदालत ने उत्तराखंड सरकार को नोटिस भी जारी किया है।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से बस्ती में रहने वाले करीब 50 हजार लोगों को राहत मिली है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौराना गफूर बस्ती में दुआओं का दौर शुरू हो गया था। सड़क पर सैकड़ों की संख्या में बैठकर महिलाएं अपने हक में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने की दुआ कर रही थीं। अब इनकी दुआएं कुबूल हो गई हैं।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि गफूर बस्ती में अतिक्रमण हटाने से करीब 50 हजार परिवार प्रभावित होंगे। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक परिसर एक्ट के तहत यह कार्रवाई मान्य नहीं है। दूसरी ओर, उत्तराखंड सरकार का कहना है कि गफूर बस्ती रेलवे की जमीन पर बसी है। यहां रहने वाले लोगों ने रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण किया है।
सात दिन के भीतर कैसे हटेगा अतिक्रमण
सुनवाई के दौरान जस्टिस कौल ने कहा कि इस मामले को मानवीय नजरिए से देखना चाहिए। हम सात दिन के भीतर अतिक्रमण हटाने का आदेश कैसे दे सकते हैं। लोगों के घरों को ध्वस्त करने से पहले पुनर्वास का काम कराया जाना चाहिए। कुछ लोगों के पास 1947 के समय के जमीन पट्टे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि गफूर बस्ती की कितनी जमीन राज्य सरकार की है और कितनी रेलवे की?
27 दिसंबर को हाईकोर्ट ने अतिक्रमण हटाने का दिया था निर्देश
बता दें कि बीते 27 दिसंबर को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने हल्द्वानी के वनभूलपुरा क्षेत्र में स्थित गफूर बस्ती में रेलवे की भूमि पर हुए अतिक्रमण को हटाने के आदेश दिए थे। हाईकोर्ट ने एक हफ्ते के भीतर अतिक्रमण हटाने को कहा था।
हाईकोर्ट के फैसले के बाद से ही गफूर बस्ती में रहने वाले लोग धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। उनका कहना है कि उनका परिवार यहां परदादा और दादा के जमाने से रहता आया है। उत्तराखंड सरकार पहले उनके पुनर्वास की व्यवस्था करे, उसके बाद ही बस्ती खाली कराए। हाईकोर्ट ने गफूर बस्ती के लोगों से अपने लाइसेंसी हथियार भी जमा कराने का आदेश दिया था।
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उत्तराखंड
शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद
उत्तराखंड। केदारनाथ धाम में भाई दूज के अवसर पर श्रद्धालुओं के लिए शीतकाल का आगमन हो चुका है। बाबा केदार के कपाट रविवार सुबह 8.30 बजे विधि-विधान के साथ बंद कर दिए गए। इसके साथ ही इस साल चार धाम यात्रा ठहर जाएगी। ठंड के इस मौसम में श्रद्धालु अब अगले वर्ष की प्रतीक्षा करेंगे, जब कपाट फिर से खोलेंगे। मंदिर के पट बंद होने के बाद बाबा की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल की ओर रवाना हो गई है।इसके तहत बाबा केदार के ज्योतिर्लिंग को समाधिरूप देकर शीतकाल के लिए कपाट बंद किए गए। कपाट बंद होते ही बाबा केदार की चल उत्सव विग्रह डोली ने अपने शीतकालीन गद्दीस्थल, ओंकारेश्वर मंदिर, उखीमठ के लिए प्रस्थान किया।
बता दें कि हर साल शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद कर दिया जाते हैं. इसके बाद बाबा केदारनाथ की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ के लिए रवाना होती है. अगले 6 महीने तक बाबा केदार की पूजा-अर्चना शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में ही होती है.
उत्तरकाशी ज़िले में स्थिति उत्तराखंड के चार धामों में से एक गंगोत्री में मां गंगा की पूजा होती है। यहीं से आगे गोमुख है, जहां से गंगा का उदगम है। सबसे पहले गंगोत्री के कपाट बंद हुए हैं। अब आज केदारनाथ के साथ-साथ यमुनोत्री के कपाट बंद होंगे। उसके बाद आखिर में बदरीनाथ धाम के कपाट बंद किए जाएंगे।
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