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अन्तर्राष्ट्रीय

US ने ट्रूडो को दिया झटका, जयशंकर और ब्लिंकेन में निज्जर विवाद पर कोई बात नहीं

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no talk between Jaishankar and Blinken on Nijjar dispute

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वॉशिंगटन। वॉशिंगटन डीसी में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन के साथ मुलाकात की। इस दौरान दोनों देशों के बीच विभिन्न मुद्दों पर बात हुई लेकिन अमेरिका ने कनाडा को झटका देते हुए निज्जर हत्याकांड पर एस जयशंकर से कोई बात नहीं की।

बता दें कि कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो ने हाल ही में कहा था कि उन्होंने अमेरिका से अपील की है कि विदेश मंत्रियों की मुलाकात में अमेरिका निज्जर हत्याकांड का मुद्दा उठाए लेकिन अब अमेरिका ने साफ कहा है कि जयशंकर और एंटनी ब्लिंकेन की मुलाकात में भारत-कनाडा विवाद पर कोई बात नहीं हुई।

जयशंकर-ब्लिंकेन के बीच नहीं हुई कनाडा विवाद पर बात

अमेरिका के विदेश विभाग ने बताया कि भारतीय विदेश मंत्री और अमेरिकी विदेश मंत्री के बीच हुई मुलाकात में जी20 सम्मेलन से क्या हासिल हुआ, भारत-मध्य पूर्व के बीच बनाए जाने वाले आर्थिक कॉरिडोर जैसे मुद्दों पर बात हुई। मीडिया से बात करते हुए भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जी20 सम्मेलन में अमेरिका के सहयोग के लिए धन्यवाद दिया।

वहीं अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने कहा कि दोनों के बीच अच्छी बातचीत हुई, जिनमें जी20 सम्मेलन और संयुक्त राष्ट्र महासभा के इतर मुद्दों पर भी बात हुई। मीडिया को दोनों नेताओं से सवाल पूछने की इजाजत नहीं दी गई। कनाडा विवाद पर दोनों पक्षों ने चुप्पी साधे रखी।

भारत-कनाडा के बीच चल रहा तनाव

बता दें कि बीती जून में खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो ने इस हत्याकांड के पीछे भारतीय एजेंट्स का हाथ होने की आशंका जाहिर की थी और कहा था कि उनके पास इसकी खुफिया सूचना है।

हालांकि भारत ने कनाडा के आरोपों को बेतुका बताकर खारिज कर दिया। भारत ने कनाडा से खुफिया सूचना साझा करने और सबूत देने को कहा है लेकिन अभी तक कनाडा की तरफ से कोई जानकारी नहीं दी गई है। इस विवाद के चलते दोनों  देशों के संबंधों में खटास आ गई है।

कनाडा को लगा झटका

हाल ही में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कनाडा को मॉन्ट्रियल में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा था कि उन्होंने अमेरिका से अपील की है कि जब एंटनी ब्लिंकेन भारतीय समकक्ष एस जयशंकर से मुलाकात करें तो वह निज्जर हत्याकांड का मामला भी उनके सामने उठाए। हालांकि अब दोनों नेताओं की बैठक के बाद जो खबर सामने आई है कि उससे कनाडा को झटका लगना लाजमी है।

अन्तर्राष्ट्रीय

अमेरिका ने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र समेत भारत के तीन शीर्ष परमाणु संस्थानों से हटाए प्रतिबंध

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नई दिल्ली। अमेरिका ने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बार्क) समेत भारत के तीन शीर्ष परमाणु संस्थानों से बुधवार को प्रतिबंध हटा लिया। इससे अमेरिका के लिए भारत को असैन्य परमाणु प्रौद्योगिकी साझा करने का रास्ता साफ हो जाएगा। बाइडन प्रशासन ने कार्यकाल के आखिरी हफ्ते और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन की भारत यात्रा के एक हफ्ते बाद यह घोषणा की। 1998 में पोकरण में परमाणु परीक्षण करने और परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर न करने पर अमेरिका ने यह प्रतिबंध लगाया था।

अमेरिका के उद्योग और सुरक्षा ब्यूरो (बीआईएस) के अनुसार, बार्क के अलावा इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र (आईजीसीएआर) और इंडियन रेयर अर्थ्स (आईआरई) पर से प्रतिबंध हटाया गया है। तीनों संस्थान भारत के परमाणु ऊर्जा विभाग के अंतर्गत काम करते हैं और परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में किए जाने वाले कार्यों पर निगरानी रखते हैं। बीआईएस ने कहा, इस निर्णय का उद्देश्य संयुक्त अनुसंधान और विकास तथा विज्ञान व प्रौद्योगिकी सहयोग सहित उन्नत ऊर्जा सहयोग में बाधाओं को कम करके अमेरिकी विदेश नीति के उद्देश्यों का समर्थन करना है, जो साझा ऊर्जा सुरक्षा जरूरतों और लक्ष्यों की ओर ले जाएगा। अमेरिका व भारत शांतिपूर्ण परमाणु सहयोग और संबंधित अनुसंधान और विकास गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

परमाणु समझौते का क्रियान्वयन होगा आसान

प्रतिबंध हटाने के फैसले को 16 साल पहले भारत और अमेरिका के बीच हुए नागरिक परमाणु समझौते के कार्यान्वयन को सुविधाजनक बनाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। दोनों देशों में 2008 में तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह और अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के कार्यकाल के दौरान समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे।

भारत यात्रा पर सुलिवन ने प्रतिबंध हटाने की बात कही थी

अपनी भारत यात्रा के दौरान जैक सुलिवन ने कहा था, साझेदारी मजबूत करने के लिए बड़ा कदम उठाने का समय आ गया है। पूर्व राष्ट्रपति बुश और पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह ने 20 साल पहले असैन्य परमाणु सहयोग का दृष्टिकोण रखा था, लेकिन हम अभी भी इसे पूरी तरह से साकार नहीं कर पाए हैं।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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