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आध्यात्म

Chaitra Navratri के दुसरे दिन होती है मां ब्रह्मचारिणी की पूजा, यूं करें माता की आराधना

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चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन विशेष रूप से माता की कृपा पाने के लिए भक्त तरह-तरह के जतन करते हैं, व्रत रखते हैं, मन्नत मांगते हैं और भोग आदि तैयार करते हैं। माना जाता है कि मां ब्रह्मचारिणी संसार में ऊर्जा का प्रवाह करती हैं और मनुष्य को उनकी कृपा से आंतरिक शांति प्राप्त होती है। मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप बेहद सादा है। वे अपनी सौम्यता, शांत चित्त और प्रसन्नता के लिए जानी जाती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी तप की देवी हैं जिस कारण उनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा था। मां ब्रह्मचारिणी अपने दाहिने हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमंडल धारण करती हैं।

मां का पसंदीदा रंग

मान्यतानुसार नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी को प्रसन्न करने के लिए उनका पसंदीदा रंग पहना जाता है। हरे रंग को मां ब्रह्मचारिणी का प्रिय रंग माना जाता है और इसीलिए दूसरे दिन नवरात्रि पर हरा रंग पहनने को प्राथमिकता दी जाती है।

माता की पूजा से मिलेगा ये फल

इनकी पूजा के दिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित होता है। इनकी आराधना से तप, संयम, त्याग व सदाचार जैसे गुणों की प्राप्ति होती है। मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से धैर्य प्राप्त होता है और मनुष्य कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी अपने कर्त्तव्य से विचलित नहीं होता है, उसे विजय की प्राप्ति होती है।

मां ब्रह्मचारिणी पूजा विधि

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने के लिए सुबह नहा-धोकर मंदिर सजाया जाता है। सर्वप्रथम देवी को पंचामृत से स्नान कराया जाता है। मान्यतानुसार पूजा में कुमकुम, चन्दन, गुड़हल या कमल के फूल और रोली आदि का प्रयोग होता है। इन्हें मिश्री या सफेद रंग की मिठाई का भोग लगाया जाता है। इसके साथ ही मां ब्रह्मचारिणी के मंत्र का जाप करना शुभ माना जाता है।

मां ब्रह्मचारिणी का मंत्र-

या देवी सर्वभेतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता.

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः..

दधाना कर मद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू.

देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा

व्रत एवं त्यौहार

CHHATH POOJA 2024 : जानें कब से शुरू होगी छठी मैया की पूजा, जानिए इसे क्यों मनाते हैं

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मुंबई। त्रेतायुग में माता सीता और द्वापर युग में द्रौपदी ने भी रखा था छठ का व्रत रामायण की कहानी के अनुसार जब रावण का वध करके राम जी देवी सीता और लक्ष्मण जी के साथ अयोध्या वापस लौटे थे, तो माता सीता ने कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को व्रत रखकर कुल की सुख-शांति के लिए षष्ठी देवी और सूर्यदेव की आराधना की थी।

छठ पूजा क्यों मनाते है ?

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा अर्चना और अर्घ्य देने से सुख-शांति, समृद्धि, संतान सुख और आरोग्य की प्राप्ति होती है। छठ पूजा को डाला छठ के नाम से भी जाना जाता है। यह चार दिनों तक चलने वाला त्योहार है, जो मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है। छठ पर्व के दौरान प्रकृति के विभिन्न तत्वों जैसे जल, सूर्य, चंद्रमा आदि की पूजा की जाती है. यह प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का एक तरीका है और हमें प्रकृति के संरक्षण का महत्व सिखाता है. छठ का व्रत बहुत कठिन होता है. व्रतधारी 36 घंटे तक बिना पानी पिए रहते हैं. साथ ही छठ पर्व सभी वर्गों और समुदायों के लोगों को एक साथ लाता है. इस पर्व के दौरान लोग मिलकर पूजा करते हैं, भोजन करते हैं और एक-दूसरे के साथ समय बिताते हैं. इससे सामाजिक एकता और भाईचारा बढ़ता है.

छठ पर्व के 4 दिन

छठ पूजा का पहला दिन, 5 नवंबर 2024- नहाय खाय.
छठ पूजा का दूसरा दिन, 6 नवंबर 2024- खरना.
छठ पूजा का तीसरा दिन, 7 नवंबर 2024-डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य.
छठ पूजा का चौथा दिन, 8 नवंबर 2024- उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण

 

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