अन्तर्राष्ट्रीय
कनाडा में इंदिरा गांधी की हत्या की झांकी निकालने पर मेयर बोले- यह कोई अपराध नहीं
टोरंटो। कनाडा के टोरंटो में पूर्व भारतीय पीएम इंदिरा गांधी की हत्या की झांकी निकाले का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। कनाडाई कानून प्रवर्तन एजेंसी ने कहा कि भारत की पूर्व पीएम की हत्या की झांकी निकाले जाने का मामला कानूनी रूप से घृणा अपराध की श्रेणी में नहीं आता है। यह बयान ब्रैम्पटन शहर के मेयर पैट्रिक ब्राउन के कार्यालय ने जारी किया।
कनाडाई मेयर का बयान
मामले पर ध्यान देते हुए मेयर पैट्रिक ब्राउन ने कहा कि कनाडाई कानून के तहत यह नहीं माना जा सकता कि ग्रेटर टोरंटो क्षेत्र में एक परेड के दौरान दिखा यह दृश्य घृणा अपराध है। उन्होंने कहा कि वह कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए थे और न ही यह सिटी ऑफ ब्रैम्पटन समारोह था।
बयान में कहा गया है कि वह कनाडा का कानून कनाडाई लोगों का विचार, विश्वास और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है। इससे संबंधित कानून को बदलने का कोई भी निर्णय संघीय स्तर पर होता है। पुलिस कानून लागू करती है, न कि उन्हें बनाती है।
चार जून को निकाली थी झांसी
गौरतलब है, ऑपरेशन ब्लू स्टार की 39वीं बरसी से दो दिन पहले चार जून को एक परेड के दौरान विवादित झांकी निकाली गई थी। खालिस्तान समर्थकों की इस झांकी में दो सिख गनमैन पूर्व पीएम को गोली मारते दिखाई दिए।
साथ ही पोस्टर लगाए गए थे, जिसमें लिखा था कि ये बदला है। अन्य झांकी में 1984 के सिख विरोधी दंगों का जिक्र करते हुए बैनर भी लगे थे। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था।
जयशंकर ने चेताया
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने गुरुवार को सख्त लहजे में कहा था कि ये आपसी रिश्तों और कनाडा के लिए ठीक नहीं है। जबकि घटना के तुरंत बाद भारत में कनाडा के उच्चायुक्त कैमरन मैके ने ट्वीट कर खेद जताया। उन्होंने कहा था कि कनाडा में नफरत या हिंसा के महिमामंडन के लिए कोई जगह नहीं है।
यह स्वीकार्य नहीं
एक वरिष्ठ भारतीय अधिकारी ने इस घटना को लेकर कहा है कि यह स्वीकार्य नहीं है। आप इस तरह से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अतिक्रमण नहीं कर सकते। एक लोकतांत्रिक देश के नेता की हत्या का महिमामंडन कर रहे हैं।
अन्तर्राष्ट्रीय
अमेरिका ने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र समेत भारत के तीन शीर्ष परमाणु संस्थानों से हटाए प्रतिबंध
नई दिल्ली। अमेरिका ने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बार्क) समेत भारत के तीन शीर्ष परमाणु संस्थानों से बुधवार को प्रतिबंध हटा लिया। इससे अमेरिका के लिए भारत को असैन्य परमाणु प्रौद्योगिकी साझा करने का रास्ता साफ हो जाएगा। बाइडन प्रशासन ने कार्यकाल के आखिरी हफ्ते और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन की भारत यात्रा के एक हफ्ते बाद यह घोषणा की। 1998 में पोकरण में परमाणु परीक्षण करने और परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर न करने पर अमेरिका ने यह प्रतिबंध लगाया था।
अमेरिका के उद्योग और सुरक्षा ब्यूरो (बीआईएस) के अनुसार, बार्क के अलावा इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र (आईजीसीएआर) और इंडियन रेयर अर्थ्स (आईआरई) पर से प्रतिबंध हटाया गया है। तीनों संस्थान भारत के परमाणु ऊर्जा विभाग के अंतर्गत काम करते हैं और परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में किए जाने वाले कार्यों पर निगरानी रखते हैं। बीआईएस ने कहा, इस निर्णय का उद्देश्य संयुक्त अनुसंधान और विकास तथा विज्ञान व प्रौद्योगिकी सहयोग सहित उन्नत ऊर्जा सहयोग में बाधाओं को कम करके अमेरिकी विदेश नीति के उद्देश्यों का समर्थन करना है, जो साझा ऊर्जा सुरक्षा जरूरतों और लक्ष्यों की ओर ले जाएगा। अमेरिका व भारत शांतिपूर्ण परमाणु सहयोग और संबंधित अनुसंधान और विकास गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
परमाणु समझौते का क्रियान्वयन होगा आसान
प्रतिबंध हटाने के फैसले को 16 साल पहले भारत और अमेरिका के बीच हुए नागरिक परमाणु समझौते के कार्यान्वयन को सुविधाजनक बनाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। दोनों देशों में 2008 में तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह और अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के कार्यकाल के दौरान समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे।
भारत यात्रा पर सुलिवन ने प्रतिबंध हटाने की बात कही थी
अपनी भारत यात्रा के दौरान जैक सुलिवन ने कहा था, साझेदारी मजबूत करने के लिए बड़ा कदम उठाने का समय आ गया है। पूर्व राष्ट्रपति बुश और पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह ने 20 साल पहले असैन्य परमाणु सहयोग का दृष्टिकोण रखा था, लेकिन हम अभी भी इसे पूरी तरह से साकार नहीं कर पाए हैं।
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